बेफिक्री का आलम हो,ग़र तुम साथ हो।
मोहब्बत में ,नादानियों का सिलसिला हो।
छेड़ तुम्हें छुप जाउं ,मन ही मन मुस्कुराऊँ।
महक़ उठे ,घर -आंगन मेरा, ग़र तुम साथ हो।
ज़िंदगी की दोपहर में, छाया बन छा जाउं।
तुम संग प्यार के झूले में झूल मस्त हो जाऊँ।
झूलूं तेरी बांहों के झूले में सपनों में खो जाऊँ।
ज़िंदगी हमारी स्वप्निल हो, ग़र तुम साथ हो।
चुलबुली हिरणिया मैं,तेरेआंगन को सजाऊँगी।
प्रसन्नताके हिलोरों में,कुसुम सी खिल जाऊँगी।
गूंजे तेरा आंगन मेरी हंसी की प्यारी खनक हो।
महक उठे ,घर का हरकोना ,ग़र तुम साथ हो।
घर में, तेरी मोहब्बत के दिए जलाऊं !
प्यार की रंगो से तेरा,आंगन - द्वार सजाऊँ !
गेशुओं की बूंदों सी, खुशबू बन बिखर जाऊं !
जीवन की चांदनी बन जाऊँ ,ग़र तुम साथ हो !