Gar tum sath ho

 बेफिक्री का आलम हो,ग़र तुम साथ हो। 

मोहब्बत में ,नादानियों का सिलसिला हो।  

छेड़ तुम्हें छुप जाउं ,मन ही मन मुस्कुराऊँ।

महक़ उठे ,घर -आंगन मेरा, ग़र तुम साथ हो।


  

ज़िंदगी की दोपहर में, छाया बन छा जाउं। 

तुम संग प्यार के झूले में झूल मस्त हो जाऊँ।

झूलूं तेरी बांहों के झूले में सपनों में खो जाऊँ।  

ज़िंदगी हमारी स्वप्निल हो, ग़र तुम साथ हो। 

  

चुलबुली हिरणिया मैं,तेरेआंगन को सजाऊँगी।

प्रसन्नताके हिलोरों में,कुसुम सी खिल जाऊँगी। 

गूंजे तेरा आंगन मेरी हंसी की प्यारी खनक हो। 

महक उठे ,घर का हरकोना ,ग़र तुम साथ हो।

 

 घर में, तेरी  मोहब्बत के दिए जलाऊं !

 प्यार की रंगो से तेरा,आंगन - द्वार सजाऊँ !

 गेशुओं की बूंदों सी, खुशबू बन बिखर जाऊं !

जीवन की चांदनी बन जाऊँ ,ग़र तुम साथ हो !

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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