वीरेंद्र परिणीति को समझाना चाहता है कि वह जो कदम जो भी कदम उठा रही है वह सोच समझ कर उठाये इसके लिए वह कुछ उसे तर्क भी देता है। जिस तर्क को सुनकर, परिणीति बोला जाती है और नाराज होते हुए वीरेंद्र से कहती है - अच्छा !लड़कियों को ज्ञान कम होना चाहिए ,आप लोग तो यही चाहते हैं ,कि महिलाएं पुरुषों से दबकर रहें ,उनके पैर की जूती बनकर रहें।
वीरेंद्र की बात सुनकर परिणीति भड़क गयी ,उसे भड़कते देखकर बोला -अभी तुमने पूरी बात कहाँ सुनी,इसीलिए तो कहते हैं -'अधूरा ज्ञान भी हानि ही पहुंचाता है' फिर से मुस्कुराया ,परिणीति को लग रहा था ये मुझ पर व्यंग्य कर रहे हैं ,इससे पहले कि वह कुछ कह पाती ,वीरेंद्र बोला -अब यह उस मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह क्या ग्रहण करता है?अच्छे या बुरे विचार! इससे शिक्षा का कोई लेना- देना नहीं है। माना कि कई बार परिस्थितियाँ बदल जाती है, किंतु इतनी विकृत भी नहीं होतीं कि आदमी उनसे जूझ ना सके। अपने जीवन में हर इंसान को संघर्ष करना पड़ता है, वह संघर्ष और परिश्रम न करके, आसान रास्ता चुनता है, तब ऐसी स्थितियाँ आ जाती है।
परिणीति का हाथ थाम ,वीरेंद्र उसे अपने समीप बिठाता है और कहता है - अब तुम ही देख लो! इन लड़कियों में से कुछ लड़कियां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आई हैं। उनके माता-पिता ने कितने संघर्ष करके जोखिम उठाकर ? उनके भविष्य के लिए अच्छा सोचकर , इन्हें यहां पढने के लिए भेजा और ये यहाँ ,'बॉय फ्रेंड ,बॉयफ्रेंड ''खेल रहीं हैं। तो क्या यह माता-पिता की गलती है ? या उन्होंने इन्हें यही संस्कार दिए थे, कि वहां जाकर अपने संस्कारों को भूलकर' बॉयफ्रेंड' बनाना। आजकल तो लड़कियां या लड़के का भी आपस में, लड़कियों का साथ रहना भी संदेहास्पद हो गया है। नए-नए रिश्ते देखने और सुनने में आ रहे हैं। जो कभी हमने सोचा भी नहीं था।''लिव इन '' क्या होता है ? क्या तुम इससे पहले जानती थीं ? खैर अब तो तुम जान ही गई होगी पर क्या पहले कभी सोचा होगा ?
वीरेंद्र के कुछ तर्क परिणीति को सही भी लगे, वह मन ही मन सोच रही थी- सच ही तो कह रहे हैं, नई पीढ़ी ने न जाने, क्या-क्या रिश्ते बना दिए ? जो कभी हमने सोचा भी नहीं था, इसे ही तो' नई पीढ़ी' कहते हैं। पीढ़ियों में टकराव आना स्वाभाविक है किंतु क्या ये परिवर्तन उचित है ? इस परिवर्तन से हमारी आने वाली कहां से कहां जा रही है ?क्या इसे ही ,'उन्नति' कहते हैं ? पहले जो लोग रहते थे ,क्या वे बिल्कुल सही थे। कमियां तो हर जगह होती हैं, टकराव भी पैदा होते हैं। उस समय भी ,महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच उचित नहीं थी तभी तो महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए ,ये सभी परिवर्तन करना आवश्यक हो गया किंतु इस परिवर्तन का परिणाम कुछ अच्छा नहीं निकला। यह परिवर्तन भी ठीक नहीं है तो अवश्य ही इसमें कुछ न कुछ बदलाव तो होंगे ही, इस बदलाव को यदि हम लोग न कर पाए तो, आने वाली पीढ़ी को देखकर, यही पीढ़ी परिवर्तन चाहेगी ,किन्तु इस बीच उनके मन में एक ज्योत जलानी आवश्यक है।
अगले दिन ,परिणीति पुलिस थाने पहुंची।
आप यहाँ, इंस्पेक्टर उसे वहां देखकर ,अचम्भित हुआ।
जी, मैं उन लड़कियों से मिलना चाहती थी। जिन्हे आप कल लेकर आये।
क्यों ?
मैं जानना चाहती थी ,क्या सच में ही ,अपनी इच्छा से वो ये सब कार्य कर रहीं थीं या कोई मजबूरी उनसे ये कार्य करा रही है।
अजी ,आप क्यों परेशान होती हैं ? यह तो इनका रोज का काम है ,ये इतनी भी अबोध नहीं हैं, सब जानती हैं, उनकी कोई मजबूरी नहीं है, यह सब तो अपने शौक पूरे करने के लिए कर रहीं हैं।
यह आप क्या कह रहे हैं ? मैं उनसे मिलना चाहूंगी।आप क्या जाने किसी की मजबूरी ?बेचारी ! किसी मजबूरी या दबाब में ये कार्य कर रहीं होगीं वरना ऐसा शर्मिंदगी पूर्ण कार्य अपने मन से कौन करना चाहेगा ?आप लोगों को तो लगता है ,औरत की कोई इज्जत ही नहीं।
देखिये !आप इतने तैश में मत आइये !उनके बारे में आप जानती ही कितना है ?हमारा यहाँ दिन में न जाने कितने मक्कार लोगों से पाला पड़ता है ?वैसे आप ,किनसे मिलना चाहती हैं ? वे लोग तो कब की जा चुकी हैं ? जमानत पर रिहा हो गई हैं।
उनकी जमानत हो गयी ,आश्चर्य से परिणीति ने पूछा -किसने ज़मानत करवाई ?
इन लोगों के बड़े-बड़े लोगों से संबंध होते हैं , मेरी प्रार्थना आपसे यही है, कि आप इन पचड़ों में न ही पड़ें तो अच्छा हैं। दुनिया न जाने, कहां से कहां पहुंच गई ? आप अभी इन्हें छोटी बच्चियाँ समझकर समझाने चली हैं। इंस्पेक्टर की यह बातें सुनकर, परिणीति को अपने पति वीरेंद्र की बातें स्मरण हो आईं , अब उसे भी लगा, दुनिया न जाने कहां से कहां पहुंच गई ? और मैं अभी भी उन्हीं विचारों, और संस्कारों को ढूंढ रही हूं। क्या इससे हमारे देश की उन्नति हो रही है, या हमारी आने वाली पीढ़ी उन्नति कर रही है ?
कुछ दिनों पश्चात ,सब्ज़ी लेते हुए परिणीति को एक महिला मिली ,उसके साथ में उसकी बेटी थी। जो बार -बार अपनी माँ से जूस पीने की मांग कर रही थी किन्तु वो महिला उसकी बातों पर ध्यान न देकर ,तरकारी खरीदने में व्यस्त थी।
तब परिणीति बोली -बड़ी प्यारी बच्ची है ,तब बच्ची से बोली -क्या नाम है तुम्हारा ?
बबली !धीमे स्वर में वो बोली।
जूस पियोगी ,बबली ने अपनी माँ की तरफ देखा ,तब उसकी मम्मी बोली -आंटीजी !ये तो ऐसे ही ज़िद करती रहती है ,कहते हुए उसका हाथ पकड़कर बोली -चलो !घर शाम को, जूस पिलाकर लाऊंगी।
क्या तुम यहीं रहती हो ?परिणीति उसे पहचानने का प्रयास करते हुए पूछा।
जी ,वो जो चौथे नंबर वाली बिल्डिंग है ,मैं उसी में रहती हूँ।
अच्छा ,आंटीजी !अभी मैं चलती हूँ ,मुझे देर हो रही है ,ऑफिस भी जाना है ,कहते हुए, बेटी का हाथ पकड़ आगे बढ़ते हुए बोली -कभी मिलने आइयेगा। परिणीति उन दोनों को जाते हुए देखती रही ,सोच रही थी -ये हैं ,हमारे देश की नारी ,कितना काम करना पड़ जाता है ?बेटी को भी सम्भाल रही है ,नौकरी भी करती है और घर भी...... ऐसे में भी पुरुष जाति हम लोगों में ही दोष ढूंढती नजर आती है।