Kash, who din phir aa jayen

काश ! वो दिन, फिर से आ  जाएं। 

सखियों संग बैठ,हंसे खिलखिलाएं । 

बातें करते,भावी सपनों में खो जाएं। 

 फिर सेभावी दूल्हे की छवि सजायें।

 मन ही मन सोच उसको ,शरमायें।


 अल्हड़ उम्र,भिन्न सपनों में खो जाए? 

 युवावस्था का जीवन,फिर से जी  जाएं । 

उम्मीदों की एक नवीन पतंग, उड़ायें । 

काश !वो अल्हड़पन,वो मासूमियत !

वो बेफ़िक्री का दौर, फिर से आ जाए।

 इरादों की एक मजबूत दीवार बनाएं। 

लिखूं तुम्हें प्रेम पत्र औ मुस्कान आ जाए।

बिखरे जीवन को समेट,स्याने हो जाएँ।

 याद मेंतुम्हारी ,आंसू आये, होंठ मुस्कुराएं । 

गोलगप्पे की एक-एक पारी फिर से हो जाए।

 काश ! वो दिन ,फिर से आ जाएं । 

 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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