Balika vadhu [60]

सुनीता की बातें सुनकर परिणीति सोच में पड़ गई, क्या वह सही कह रही है ? क्या मुझे ऐसा करना चाहिए ? सच्चाई का पता तो लगाना ही होगा। यह सोचते हुए, वह अपने मन के डर को कम करती है, और मन ही मन एक निश्चय करती है। अब वह, इन लड़कियों के विषय में जानकारी लेकर रहेगी। जब तक किसी के विषय में विस्तार से और उसके अच्छे- बुरे पहलू पर ध्यान न दिया जाये ,तब तक हम किसी को सही या गलत नहीं ठहरा सकते हैं। ये बात तो अवश्य है। आजकल जो भी ये सब चल रहा है। देखने से तो लग ही रहा है ,मर्यादाओं का उलंघन हो रहा है किन्तु यह बात कहाँ तक सही है ?ये तो जानना ही होगा। 

वह तैयार होती है किन्तु अब उसे किससे और कैसे मिलना है ?यह तय नहीं कर पा रही थी। इसी परेशानी में चाय बनाकर ले आई तभी उसके पति बाहर से आये ,परिणीति को तैयार देखकर बोले -क्या कहीं जा रही हो ?


हाँ ,वो जो पड़ोस में [किसी अनजान की तरह वीरेंद्र उसे देखने लगा ] अरे, वही तिवारी जी के घर में जो लड़कियां रहती थीं ,उन्हीं के विषय में कुछ जानकारी लेने जा रही हूँ। 

क्यों, तुम्हें इसकी क्या आवश्यकता है ?पुलिस सब संभाल लेगी वीरेंद्र बोला।

वो सब तो ठीक है ,किन्तु हमारा भी तो कुछ कर्त्तव्य बनता है। 

तुम्हारा क्या कर्त्तव्य है ?मुझे मत बतलाओ ! ये  लोग, इसी तरह आवारागर्दी करती रहती हैं , उनसे तुम्हें क्यों हमदर्दी हो रही है? वीरेंद्र ने नाराज होते हुए पूछा। 

वे भी किसी की बालक हैं ,ऐसे शब्दों का प्रयोग तो मत कीजिये। मुझे उनसे कोई हमदर्दी नहीं है, किंतु कई बार ऐसा होता है कि'' गेहूं के साथ, घुन्न भी पिस जाता है।'' माना कि यहाँ जो कुछ भी हो रहा था, वह गलत था किंतु मेरा मानना है, सभी इसमें शामिल नहीं होंगीं और कई बार ऐसा भी होता है कि उनकी परिस्थितियाँ आडे आ जाती है। 

परिस्थितियाँ ' माय फुट' , तुम्हें यहां कोई भी ऐसी लग रही थी जो दुखी और परेशान हो , अरे खूब मौज मस्ती कर रही थीं । दोस्तों को बुला रही थी, और पार्टी कर रही थीं। 

 वह सब तो मैंने भी देखा है ,गहरी स्वांस लेते हुए परिणीति बोली -लीजिये चाय पीजिये !  

जब तुमने भी देखा है, तो फिर वहां क्या लेने जा रही हो ? आजकल की पीढ़ी ऐसे ही बर्बाद हो रही है, न कोई शर्म लिहाज है ,न ही बड़ों का सम्मान ! इस कॉलोनी में अच्छे परिवार रहते हैं उन्होंने इस कॉलोनी की प्रतिष्ठा को भी हानि पहुंचाई है। अब कोई अच्छा व्यक्ति, इधर कि तरफ रुख नहीं करेगा। तुम उनके विषय में क्या जानना चाहती हो ? थोड़ा सहज होकर वीरेंद्र कुर्सी पर बैठा और परिणीति से पूछा। 

मैं यही पूछना चाहती थी, जो भी रिश्ते उन्होंने यहां पर बनाए हैं, क्या उनके लिए वह गंभीर थीं  ? या सिर्फ यहाँ समय बर्बाद ही कर रही थीं या उन्होंने जिंदगी को खेल समझ रखा था। माता-पिता ने कितने अरमानों से उन्हें पढ़ने के लिए भेजा होगा ?किंतु वह यहां क्या कर रही है ,क्या कभी उन्होंने अपने जीवन के विषय में सोचा है ? कि यह सब गलत है या सही है इस बात का उन्हें एहसास भी है।  

समझाया उन्हें जाता है, जो नासमझ हो, अरे ये लोग इतने बड़े हो गए हैं, तुम्हें बात बना देंगीं ।

मैं मानती हूं, कानूनी तौर पर ये लोग बालिग़ हैं  किंतु माँ -बाप की नजर में बच्चा तो बच्चा ही रहता है कई बार समझाने से, कुछ स्थितियाँ हम  सुलझा भी सकते  हैं। हाँ, हो सकता है इनमें कोई एक दो लड़की ही ऐसी हो बाकी अपनी परेशानी में आगे बढ़ रही हों या जीवन में कुछ करना चाहती हैं। 

वह लोग कुछ नहीं करना चाहती हैं, इस शहर में न जाने कितने लड़के और लड़कियां यहां पर रहते हैं। तुम किस-किस से यह सब पूछताछ करती  फिरोगी, किस-किस का हृदय परिवर्तन करोगी ? आजकल कोई किसी की नहीं सुनता है।  आजकल बच्चे मां-बाप की ही नहीं सुनते हैं, फिर तुम उनकी कौन लगती  हो ?

यह सब बातें मैं भी समझती और जानती हूं, किंतु मुझे लगता है, मेरे समझाने से या कहने से, हो सकता है एक -दो की भलाई हो जाए। अब हम यह सोचकर तो नहीं बैठ सकते कि  एक -दो कोई हमारे समझाने से समझ भी गया तो क्या होगा ?'' बूंद- बूंद से ही तो, सागर भरता है।'' यदि मेरे कारण किसी एक का भी भला हो जाता है तो मुझे अच्छा लगेगा। 

मुझे नहीं लगता, और लगता है कहीं तुम ही ,किसी गलत जगह न फंस जाओ ! ये  चक्कर बहुत गंभीर होते हैं। अभी तुमने सुनीता के गांव में उस पर एक लेख लिखा था जिसके कारण सुनीता को जवाब देना पड़ गया। 

जवाब ही तो ,मैं भी मांगने जा रही हूँ , जो भी हो रहा है, वह कहां तक सही और गलत है ? गलत है, तो क्यों हो रहा है ? इसका कारण क्या है ? उस पुनिया गांव में ''बाल विवाह'' हो रहे हैं, तो क्या वह सही है ?

वह सही नहीं है, किंतु ऐसे में सुनता कौन है ?

कोई न सुने, किंतु उस बात को हमें उन लोगों के कान में डालना आवश्यक है। आज नहीं तो कल, इसका असर अवश्य होगा, किसी को तो शुरुआत करनी होगी।इतने बड़े -बड़े ''समाज -सुधारक ''हुए हैं ,लेखक हैं ,समाचार पत्र ''वाले हैं ,सभी का कार्य लोगों का घटना अथवा दुर्घटना की तरफ ध्यान आकर्षित करना। यदि वे लोग ऐसा सोचेें ,तो समाज में इतना बड़ा बदलाव आया है,जैसे -बाल विवाह ,विधवा विवाह ,नारी शिक्षा इत्यादि सुधार न होते।    

उस दिन तो तुम बड़ा घबरा गई थीं , हां, जब हम सुनते हैं, देखते हैं तो गलत लगता है किंतु अचानक इतना बड़ा सच सामने आ जाएगा यह विश्वास नहीं था। देखने में और कहने- सुनने में बहुत अंतर होता है इसीलिए मैं उस समय पर घबरा गई थी। 

ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा ! कहकर वीरेंद्र ने अपनी सहमति जतला दी।

चलिए ! मैं आपसे ही पूछता हूं , यहाँ जो भी कारण रहें , क्या इन सब का कारण शिक्षा ही है ?या' शिक्षा प्रणाली ! या लोगों का नई पीढ़ी का'' पाश्चात्य संस्कृति ''की ओर, रुझान होना। आपको क्या लगता है ?

शिक्षित होने से, विचार परिष्कृत होते हैं, अच्छे विचार आते हैं, तो बुरे विचार भी आ ही जाते हैं इसलिए तो पहले समय में लड़कियों को ज्यादा पढ़ने नहीं दिया जाता था। जितना कम ज्ञान होगा ,उतनी ही जीवन में समस्याएं कम होंगीं कहते हुए वीरेंद्र मुस्कुराने लगे।


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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