सितारों की चुनर ओढ़ वो चली आ रही थी।
देख, उसे सोचा, न जाने किधर जा रही थी ?
करीब आई तो पता चला, मेरे संग चल रही थी।
मुस्कुरा कर देख उसे, पूछा नाम क्या है ?तुम्हारा।
वो मुस्कुराई और बोली-अपनी चांदनी को न पहचाना।
संग तुम्हारे रहती सदैव ही,चमक उसकी बतला रही थी।
हसती, खिलती रही आसमानी फरिश्ते सी बढ़ती जा रही थी।
कहीं से कोई बादल मुझे ले, अपने आप में समेट गया।
इधर-उधर, यहां-वहां ढूंढा उसे, वो मेरी चांदनी कहां ?
बुरा साया,मुझसे जो लिपट गया, चांदनी मेरी खो गई।
बुरे वक्त की साथी न बन सकी, अफ़सोस से चाँद !
चांदनी बग़ैर चाँद घबराया ,जीवन में उसके अँधेरा छाया।
नजरें झुकाये, उदास बैठा, ,देखा, उसकी चांदनी उसी में ,
समाई थी, दिखी नहीं बाहर,अंतस में चेतना जगा रही थी।
बुरा साया भी बीत जाएगा, चांदनी फिर खिल मुस्कुराएगी।
मैं तो तुममें ही थी, जब वह अपना राज चांद को बताएगी।