Balika vadhu[54]

 सुनीता के लिए यह चिंता का विषय बन गया है ,यहां वह विद्यालय में, बच्चों के कार्यक्रम की तैयारी में लगी हुई है , उधर उसके बच्चों की परीक्षाएं, नजदीक ही हैं। परेशानी तो रहती ही है और क्या कर सकती है ? सरकारी नौकरी है, छोड़ना नहीं चाहती। इधर संदीप भी परेशान रहते हैं, सुबह बच्चों को तैयार करना, उन्हें स्कूल के लिए भेजना और स्वयं तैयार होकर जाते हैं। कभी-कभी तो, उन्हें झुंझलाहट होती है और गुस्सा भी आता है, कई बार कह भी  चुके हैं -क्या मैंने इसीलिए विवाह किया था ?तुम वहां और मैं यहाँ , तुम नौकरी छोड़कर यहां चली आओ ! तुम्हारे कारण घर की संपूर्ण व्यवस्था अस्त व्यस्त हो रही है।


उनकी इसी परेशानी को देखते हुए, एक दिन तो सुनीता की मम्मी ने ही उसे,फोन किया था और वह कह रही थीं -' तुम्हारी अपने परिवार के प्रति कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं, बच्चों की देखभाल करना, घर संभालना और नौकरी पर जाना। क्या यह सब उनकी ही जिम्मेदारी है ? पति-पत्नी गाड़ी के दो पहिए होते हैं जो मिलकर उस घर- गृहस्थी को संभालते हैं किंतु मैं देख रही हूं , तुम्हारी गृहस्थी का एक पहिया इधर है, और दूसरा, दूसरी तरफ, एक पर दबाव ज्यादा है।  क्या इस तरह से गृहस्थी चलती है ?

मां की बातें सुनकर सुनीता को लगा था, कि शायद उनसे संदीप ने कुछ शिकायत की है, इसीलिए वह बोली -यह सब आपसे किसने कहा ? क्या संदीप जी ने आपसे मेरी शिकायत की ?

वह क्यों शिकायत करने लगा, जब उसने तुझसे वादा किया है तो अपना वादा निभा रहा है किंतु क्या हमें नहीं दिखता ? कि उस पर, दोगुना भार है, चलो ! उसे छोड़ो ! क्या तुम्हें अपने बच्चों की भी परवाह नहीं है।  बच्चों की ऐसी उम्र है, जिसमें उनके साथ एक जिम्मेदार व्यक्ति को होना चाहिए। ऐसे समय में ही बच्चे, बहक जाते हैं।इस उम्र में ,उनको सही राह दिखाने के लिए ,एक जिम्मेदार व्यक्ति का होना आवश्यक है।  

मम्मी ! यह सब तो मैं भी समझती  हूं, किंतु आप यह तो सोचो! कि मैंने इस नौकरी के लिए कितनी मेहनत की है ? जब मैं गर्भवती थी तब भी ,मैंने रात-दिन पढ़-पढ़कर मेहनत की है। उठते- बैठते पढ़ती ही रहती थी अब मैं इस नौकरी को इस तरह, छोड़ तो नहीं सकती हूं। 

ठीक बात है, तुमने भी परिश्रम किया है किंतु अपने उस परिश्रम का लाभ ,अपने बच्चों को देतीं तो शायद उनकी परीक्षा का परिणाम ज्यादा अच्छा होगा। वहां भी तो तुम बच्चों को ही पढ़ा रही हो ,बदले में तुम्हें अच्छा वेतन मिल जाता है किंतु बेटा ! घर - परिवार के प्रति भी तुम्हारी कुछ जिम्मेदारियां होनी चाहिए। यदि दामाद जी नहीं कहते हैं, तो क्या हमें समझना नहीं चाहिए ? कि उन्हें कितनी परेशानी होती होगी ?उनकी कमाई भी कम नहीं है,वे आसानी से तुम लोगों का खर्चा उठा सकते हैं। 

मैं आपकी बात समझ रही हूं, किसी तरह बस ये 2 वर्ष कट जाएं , तब मैं उधर ही जाने का प्रयास करूंगी वरना आगे क्या करना है ? वह मैं सोचती हूं। ऐसे समय में ,अपने ही याद आते हैं ,आज उनकी दादी जिन्दा होती तो ,आप ही की तरह वे भी मेरे बच्चों का ख्याल रखतीं, जिस तरह आप भाई के बच्चों की देखरेख करती हैं। 

हाँ ,वो बात तो ठीक है ,किन्तु जब साथ होते हैं ,तब उन रिश्तों की क़द्र कोई नहीं करता,तेरी भाभी के जाने के पश्चात ,घर के सभी कार्य संभालती हूँ। बच्चों को समय पर भोजन देना ,उनके कपड़े बदलवाकर ट्यूशन भेजना ,झाड़ू -पोछे वाली से कार्य करवाना किन्तु तब भी तेरी भाभी त्योरियाँ चढ़ी रहती हैं,तेरे पिता  के जाने के पश्चात,उसे लगता है -वो मुफ़्त में ही ,मेरा खर्चा उठा रही है ,उसे मेरा काम नजर नहीं आता कहते हुए उनकी ऑंखें नम हो आई ,बेटी को इस बात का पता न चले, इसीलिए आंसू पोंछकर बोलीं -तू अपनी गृहस्थी को संभाल !जीवन में ये समस्याएं तो आती -जाती रहती ही हैं। 

 ठीक है ,कुछ न कुछ सोचती हूँ ,कहकर उसने फोन काट दिया। उसने माँ से कह तो दिया किंतु इसका कुछ भी परिणाम उसे नजर नहीं आ रहा था या तो वह अपनी इच्छाओं को अपने सपनों को छोड़कर बच्चों के सपनों के पीछे लग जाए या फिर सभी अपनी -अपनी, भाग -दौड़ करते रहें ,जिसको जहां पहुंचना होगा, पहुंच जाएगा,उसने अपने आप को ही जवाब दिया, किंतु वह उस जवाब से स्वयं ही ,संतुष्ट नहीं थी। 

 सुनीता जानती है ,जब उसने यह कार्य किया है तो यह समस्याएं तो उसे झेलनी ही होगीं। वह बच्चों के पास रहना चाहती है किंतु यहां गांव में वो नहीं रह पाएंगे।वहां उनकी शिक्षा ही अलग है। दूसरी तरफ संदीप भी नौकरी करते हैं। वह भी अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकते , कुछ दिनों तक तो वह लोग साथ में रहे थे किंतु जब से उसका स्थानांतरण, इस गांव में हुआ है तब से कुछ ज्यादा ही परेशानी हो रही है। सोच रही थी ,धीरे-धीरे समय कट ही जाएगा, पर क्या करें ? सोचने और करने में बहुत अंतर होता है।

जब उसका विवाह संदीप के साथ तय हुआ था तब सुनीता ने संदीप से पहले ही कह दिया था कि मैं पढ़ी - लिखी हूं घर के कार्य करने में मेरी ज्यादा रुचि नहीं है। मैं इतनी पढ़ी -लिखी हूं ,मेरा सपना है ,मुझे आगे बढ़ना है ,नौकरी करनी है घर के कार्य इतने अच्छे तरीके से नहीं आते हैं। 

उस समय तो संदीप ने भी उत्साह से कह दिया था,' जो तुम्हारी जो इच्छा हो ,कर लेना,' लेकिन क्या कर सकती थी ? विवाह के कुछ दिनों पश्चात, बेटी उसके गर्भ में आ गयी। परेशानी  तो हुई, किंतु घर वालों ने समझाया -यह ज़िम्मेदारी भी निभानी होती है , तो पहले इसी उत्तरदायित्व को पूर्ण कर लो ! उसके पश्चात निश्चिंत होकर, अपनी नौकरी के लिए, समय देना। सरकारी नौकरी मिलना भी इतना सरल भी नहीं है। उसके लिए तैयारी करनी पड़ती है। बेटी होने के पश्चात,सुनीता ने परीक्षा की तैयारी की किंतु वह परीक्षा में सफल न हो सकी उसे इस बात का बहुत ही दुख हुआ। तब संदीप ने उसे समझाया , कि बेटी का ध्यान रखो ! और अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करो ! तैयारी करोगी तो,अवश्य ही सफल होगी।  संदीप उस समय, उसके लिए एक बड़ा सहारा बन गए थे,हताश होती सुनीता को, मानसिक रूप से, बड़ा सहारा दिया था। जैसे ही बेटी 3 वर्ष की हुई , दादी को खुश करने के लिए पोता आ गया। 

मन ही मन सुनीता परेशान हो रही थी, उसे लग रहा था वह घर गृहस्थी  के चक्कर में फंसती  जा रही है , जो उसकी आगे बढ़ने की इच्छा थी ,वह कभी पूर्ण नहीं हो पाएगी। अब उसे लग रहा था -संदीप भी, उसे बहला -फुसलाकर यहीं पर रोक लेंगे और उसे आगे नहीं बढ़ने देंगे। अब उसके कंधों पर दो-दो बच्चों की जिम्मेदारियां थी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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