आज मौसम कुछ ठंडा है, तो साथ ही, ठंडी हवाएं भी चल रहीं हैं किन्तु इन ठंडी हवाओं के कारण ,बच्चों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है।आज प्रधानाध्यापक ने बच्चों को पढ़ाई से छुट्टी दे दी है ,अब बच्चे भी प्रसन्न हैं। लड़कों के लिए अलग खेल हैं और लड़कियों के अलग खेल हैं। प्रतियोगिता गांव के खुले मैदान में हो रही है। सबसे पहले दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की गयी, लड़कियों के लिए रस्साकसी , कोई भी किसी भी खेल में अपना नाम लिखवा सकता है। बाधा दौड़ ! निशानेबाज़ी ,कबड्डी इत्यादि खेल खिलाये गए ,सबसे बाद में पतंग प्रतियोगिता आयोजित की गयी। इसमें लड़कियों को हिस्सा नहीं लेना था किन्तु तब एक लड़की ने ज़िद की कि मुझे भी पतंग उड़ानी है।
नहीं, चुपचाप बैठो !लड़कियां पतंग नहीं उड़ाती हैं।
क्यों ? लड़कियां पतंग क्यों नहीं उड़ा सकती हैं ?वह बोली।
अध्यापक ने उसकी बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया और बोले -कैसे उड़ाएंगी ?कभी पतंग उड़ानी सीखी है ,कभी पतंग उड़ाई है।
हाँ ,मैं उड़ा सकती हूँ ,वह विश्वास से बोली।
अध्यापक ने उसका दिल दुखाना नहीं चाहा और बोले -इन लड़कियों को देखो !इनमें से किसी को भी पतंग उड़ाना नहीं आता क्योंकि यह लड़कियों का खेल नहीं है। मान लो !तुम उड़ा भी लेती हो ,तो प्रतियोगिता के लिए कम से कम तुम्हें एक साथी तो चाहिए। वो उदास होकर बैठ गयी।
आज भी ,उसी लड़की ने पतंग उड़ाने के लिए प्रधानाध्यापक से कहा -मुझे भी, पतंग उड़ानी है।
अध्यापक ने ,उसकी तरफ घूरकर देखा उससे पूछा -तुमने तो पिछले वर्ष भी पतंग उड़ाने की ज़िद की थी।
जी हाँ ,
तब तुम्हें मना कर दिया गया था न...... ,आज फिर वही बात ! यह खेल लड़कों का है।
मुँह बनाते हुए ,वो बोली -मुझे तो पतंग उड़ाना आता है।
क्यों ? क्या तुम्हारी कोई साथी बन सकती है ? उन्होंने लड़कियों की तरफ देखकर पूछा -तुम्हें पतंग उड़ाना आता है।
उन्हें उम्मीद थी कि सभी पहले की भांति सभी चुप रहेंगी किन्तु उनकी उम्मीद के विपरीत' हाँ', में उन लड़कियों ने अपनी गर्दन हिलाई और बोलीं -हम ,सभी को पतंग उड़ानी आती है ,कहते हुए उसने अपनी सखियों की तरफ इशारा किया।
अध्यापक ने उस तरफ देखा ,वो उनकी तरफ ऐसे देख रहीं थीं ,जैसे -उनकी इजाज़त की प्रतीक्षा में ही हों।
अध्यापक ने सभी की तरफ देखा और उससे बोले -तुम यहीं ठहरो ! मैं अभी आता हूँ ,उठकर ,प्रधानाध्यापक के समीप गए और उन्हें सारी बातें बतलाईं।
वह लड़की कौन है ?अविश्वास से प्रधानाध्यापक ने पूछा।
वह' चौधरी अतर सिंह जी' की बेटी' दृष्टि' है ,उसने पिछले वर्ष भी इसने यही कहा था -'उसे पतंग उड़ाना पसंद है ,और वह पतंग उड़ाना जानती है किन्तु उसकी कोई सहयोगी नहीं थी , आज उसका साथ देने के लिए ,आठ -दस लड़कियां हो गयीं हैं।
चौधरी साहब ! तो अच्छे इंसान हैं ,बहु -बेटियों को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं ,बेटी का विवाह तो करा दिया किन्तु अब उसे यहीं घर में लाकर पढ़ा रहे हैं ,ताकि उनकी बेटी अनपढ़ न रहे किन्तु गांव के कुछ नियम हैं। मुझे पहले प्रधान जी से बात करनी होगी ,उनसे पूछना होगा। कहते हुए ,प्रधानाचार्य जी ,प्रधान जी से बात करते हैं।
अरे !मासाब !ये क्या बात कर रहे हैं ?यह लड़कियों का काम नहीं है ,ये सब लड़के ही करते हैं ,उन्हें ही करने दीजिये !
मैं जानता हूँ कि इस गांव के कुछ नियम हैं किन्तु मेरा विचार है ,यह प्रतियोगिता हमारे गांव में ही तो हो रही है ,इसमें कोई बुराई भी नहीं है। मैं सोच रहा था ,लड़कियाँ अलग हैं और लड़कों का समूह अलग है क्यों न लड़के- लड़कियों की पतंग की प्रतियोगिता की जाये। पतंग ही तो यहाँ वहां जाएगी ,वे लोग अपनी -अपनी पतंगें उड़ायेंगे ,देखते हैं ,दोनों में से कौन जीतता है ?एक रोमांचक खेल हो जायेगा।
हालाँकि प्रधानजी लड़कियों के पतंग उड़ने के पक्ष में नहीं थे किन्तु प्रधानाचार्यजी की बातें सुनकर वे भी उत्साहित हो गए।
प्रधान जी,अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए और गांव वालों को सम्बोधित करते हुए बोले -सम्मानीय मित्रगणों !और इस प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल के सदस्यों से मेरा अनुरोध है , गांव में आज ऐसा कुछ किया जाये ,जो आज तक किसी ने ,या किसी भी गांव में ऐसा न हुआ होगा।
सभी की दृष्टि ,प्रधान जी पर जाकर टिक गयी ,न जाने वे, क्या कहना चाहते हैं ?तब प्रधान जी बोले -हम मानते हैं, पतंग उड़ाना लड़कों का ही खेल है अधिकतर लड़के ही पतंग उड़ाते हैं किंतु आज हमें हमारे गांव की ही बच्ची ने, बताया कि वह भी पतंग उड़ा सकती है। सभी की निगाहें इधर-उधर घूमने लगे, न जाने प्रधान जी क्या कह रहे हैं ? वह बच्ची मानती है, कि पतंग उड़ाना कोई लड़कों का ही खेल नहीं, लड़कियां भी उड़ा सकती हैं। तब हमारे मन में एक विचार आया क्यों न ? हम इस प्रतियोगिता के कुछ नियम बदल दें और यह प्रतियोगिता लड़कों के मध्य ना होकर, लड़के और लड़कियों के बीच होनी चाहिए। यह खेल काफी दिलचस्प होगा एक तरफ लड़कियां पतंग उड़ा रही हैं और दूसरी तरफ लड़के ! खेल के कुछ नियम बना दिए जाएंगे उसके आधार पर, उन्हें पतंग उड़ाना होगा कम से कम 10 पतंगों की प्रतियोगिता होगी, जिसके पास एक भी पतंग नहीं होगी वही समूह जीतेगा।
तभी भीड़ में से एक आवाज आई-प्रधान जी यह क्या कर रहे हैं ? लड़कियां तो हारेंगी ही, उन्हें तो पतंग उड़ाना आता ही नहीं।
आपकी यह बात मैं भी मानता हूं, किंतु जिस बेटी ने इन लड़कों को चुनौती दी है, वह तो यह बात मानती है हम उसकी बात का मान रखते हुए यह प्रतियोगिता आरंभ करते हैं। मैदान के एक छोर पर, लड़के होंगे और दूसरे छोर पर लड़कियां ! एक सीमा रेखा तय की जाएगी, उसके अंदर ही उन सब को पतंग उड़ानी होगी हमारे गांव की बच्चियाँ हैं हमें उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए। अब लड़कियां जीतती हैं या लड़के, यह तो खेल समाप्त होने के पश्चात ही पता चल पाएगा।
प्रधान जी ! लड़कियों इतना बढ़ावा मत दीजिए।
छोटी बच्चियाँ हैं, अपने ही गांव की हैं, किसी दूसरी जगह नहीं जा रही हैं कम से कम अपने गांव के आंगन में तो खुलकर खेल ही सकती हैं ना...... प्रधान जी ने समर्थन किया। उनकी बात सुनकर, उसके पश्चात किसी ने कुछ नहीं कहा और तालियां बजने लगी। प्रतियोगिता का आयोजन आरंभ हो गया।
तब अध्यापिका सुनीता ने दृष्टि से आकर पूछा -बेटा !यह प्रतियोगिता है , तुमने कभी पतंग उड़ाई है।
हां, मैं अपने घर की छत पर खूब पतंग उड़ाती थी।
घर पर पतंग उड़ाना एक अलग बात है, और यहाँ मैदान में पतंग उड़ाना दूसरी बात है, तभी उसके साथ ही लड़कियों से पूछा -तुमने भी कभी पतंग उड़ाई है या नहीं।
सभी ने हमें गर्दन हिलाई, किसी को भी, उन पर विश्वास नहीं था कि वह जीत जाएंगी जो लड़के खाली समय में रात- दिन पतंग उड़ाते रहते हैं , उनके लिए भी एक चुनौती बन जाता है और यह लड़कियां तो गृह कार्यों में पढ़ाई में व्यस्त रहती हैं यह क्या जीत पाएंगीं ?
पिछली बार तो मेरी बात मानी नहीं थी, किंतु अबकी बार में आप लोगों को निराश नहीं करूंगी दृष्टि बोली।