आज वीरेंद्र बड़ी तन्मयता से, समाचार पत्र पढ़ रहे थे, परिणीति अपने घर के कार्य निपटा रही थी। परिणीति अब तक वीरेंद्र को दो बार चाय बनाकर दे आई थी किन्तु वीरेंद्र अभी तक नहाने नहीं गए। परिणीति इस बात से चिढ गयी और बोली -आज इस अख़बार में ऐसा क्या लिखा है ?जो इतनी तन्मयता से आप पढ़ रहे हैं किन्तु वीरेंद्र ने कोई जबाब नहीं दिया। तब वो टेलीविजन चलाकर बोले -जरा,इधर आओ !
मुझे बहुत काम है ,अभी आप नहाने भी नहीं गए ,नाश्ता भी नहीं किया।
अरे, तुम आओ !तो सही ,तुम्हारे कई सवालों के जबाब तुम्हें मिलेंगे। तभी परिणीति के कानों में आवाज आई ,देखिये इस शख़्स को, इसने अपनी पत्नी के कारण ,अपनी मौत को गले लगा लिया। कहने को तो ये एक इंजीनियर है ,किन्तु इसने आत्महत्या कर ली और आत्महत्या से पहले ,इसने एक वीडियो बनाया है जिसमें इसने बताया है कि उसकी पत्नी उसे तंग करती थी ,उससे पैसे मांगती थी ,उससे तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली।
हे ,भगवान !ये सब क्या हो रहा है ?बताइये ! किसी का जवान बालक चला गया ,दुःखी होते हुए परिणीति बोली।
आज इसी ख़बर से तमाम अख़बार भरा हुआ है ,इसलिए इसे पढ़ रहा था। चलो !अब मैं नहाकर आता हूँ।
परांठे बनाते हुए ,परिणीति मन ही मन उस इंजीनियर के लिए परेशान हो रही थी। उसने मेज पर नाश्ता लगाया। तब तक वीरेंद्र नहाकर आ चुके थे तब वो बोली -उसकी पत्नी स्वयं भी नौकरी करती थी। उसे इतने अधिक पैसे की आवश्यकता कैसे आन पड़ी ? उसका पति अपने परिवार के लिए ही तो कमा रहा था। तब इतना अत्याचार क्यों ?
तुम अभी भी उसके विषय में सोच रही हो ,सच्चाई क्या है ?कौन जानता है ?उसकी पत्नी से बात करेंगे तो वो अपने को सही बताएगी।
वो कैसे सही हो सकती है ? उस लड़के ने आत्महत्या की है ,इतना बड़ा निर्णय कोई यूँ ही नहीं लेगा। दिल पर बड़ा जोर पड़ता है ,या फिर उसे मानसिक रूप से बहुत सताया गया है।
तुम्हारा भावुक होना स्वाभाविक है ,तुम माँ की दृष्टि से और इंसानियत के नाते यही अब सोच रही हो। कल तुमने मुझसे एक प्रश्न पूछा था -क्या लड़कियों का आत्मनिर्भर होना ,भी परिवारों के टूटने का कारण हो सकता है ? उसका जबाब यही हो सकता है ,आज के समय में, वह आत्मनिर्भर है,तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह अब किसी से दबकर नहीं रहेगी, दबकर रहना भी क्यों है ?यहाँ कोई किसी को दबाना नहीं चाहता। ये रिश्ते [पति -पत्नी ]प्यार के होते हैं ,प्यार के लिए ही, उन्हें साथ होना चाहिए।
किन्तु मेरे सवाल का ये जबाब नहीं है ,परिणीति झट से बोली।
हाँ -हाँ समझा रहा हूँ अगर अलग होने की बात भी आती है, तो लड़की आत्मनिर्भर है ही ,आजकल देरी से विवाह होते हैं ,जब विवाह होते हैं ,तो अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं, एक या दो बच्चे होते हैं, एक- दूसरे को समझने का समय भी नहीं मिलता।गहरी स्वांस लेते हुए वीरेंद्र बोले - एक- दूसरे को तो क्या समझेंगे ? अपने आप को ही समझने का मौका नहीं मिलता, जिंदगी में इतनी व्यस्तता आ गई है। हम अभी, दोस्त के रिश्तेदार की बेटी की बात कर रहे थे , उनके दामाद ने परिस्थितियों को समझने के लिए अपनी पत्नी को समझाना चाहा। ऐसे में तीसरा व्यक्ति होता है, उसका कार्य है दोनों की बातों को सुनकर , उस रिश्ते में नई ताजगी भरना, उसे प्रगाढ़ बनाना ,गलतफ़हमियों को दूर कर ,उन्हें करीब लाना।
उनकी बेटी के एक बेटा हो गया था । अब जब भी दोनों पति-पत्नी में झगड़ा हुआ, और बात परिवार वालों तक पहुंची ,तब उसके माता-पिता ने अपनी बेटी का ही समर्थन किया। जिनकी सह पाकर बेटी रुष्ट होकर वापस अपने घर आ गयी। वह पहले से ही , नौकरी करती थी। एक भाई था, वह पढ़ना ही नहीं चाहता था , सारा दिन आवारा गर्दी करता था। माता-पिता सारा दिन उसे पढ़ने और नौकरी के लिए कहते रहते थे। देखा जाए तो उनका घर भी बर्बाद भी हो रहा था। बेटा सुनता नहीं, और बेटी ससुराल से वापस आ गई। किंतु उन्होंने अपनी बेटी को अपने पास रखा , क्यों ?क्योंकि अब उस घर के सारे खर्चे तो वही उठा रही थी। उसके एक बेटा था, उससे उन्हें कोई आपत्ती नहीं थी।
उसके पति ने उसको, दो-चार बार फोन भी किया, कि वह वापस आ जाए किंतु घर वालों ने तो उसे और भड़का दिया। देखा जाए तो, हर माता-पिता यह नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी का घर टूट जाए किंतु उन्हें लगता था उन्होंने उसका विवाह अपना उत्तरदायित्व पूर्ण किया है। अब उसका भी अपने परिवार के प्रति कोई उत्तरदायित्व बनता है उन्होंने भी कभी, सीधे मुंह दामाद से कोई बात नहीं की। इस तरह धीरे-धीरे वे लोग दूर होते चले गए। उस लड़की का पति चाहता था ,उसकी पत्नी घर वापस आ जाये किन्तु उसे उधर से कोई सकारात्मक जबाब नहीं मिलता ,अंत में उसने प्रयास करना छोड़ दिया।
आगे क्या हुआ ?
अब आगे क्या होना था ?वही हुआ जो ऐसे में होना चाहिए था,लड़के को भी ज़िद हो गयी ,उनका तलाक का केस चला ,माता -पिता के साथ वो तारीख़ पर जाती ,उसे लगता सम्पूर्ण परिवार मेरा अपना है। ये ही मेरे अपने हैं मेरे साथ खड़े हैं ,किन्तु उसने यह नहीं सोचा ,इस सबका उसके बच्चे पर क्या असर हो रहा है ,वो उस घर में अपने को उपेक्षित महसूस करता ,सारा दिन अपने पिता की बुराई सुनकर आहत होता। इस बीच उसके पति ने उसे समझाना चाहा ,तुम क्यों इन लोगों के कहे में अपना परिवार तोड़ती हो ?
मैं इनके बहकाये में नहीं आ रही हूँ ,ये मेरे अपने हैं ,मेरे अच्छे के लिए ही सोच रहे हैं। तुम मेरे कौन हो ?
तुम मुझे अपना कुछ भी न समझो !कम से कम अपने बच्चे का पिता तो समझ ही सकती हो।
यही तो गलती हो गयी ,अब उसी गलती को सुधारने का प्रयास कर रही हूँ। जब वह दफ्तर जाती और बेटा स्कूल में चला जाता ,वहां से आने के पश्चात उसे स्वयं ही भोजन लेकर खाना पड़ता। उस घर में उसका दम घुटता किन्तु उसकी व्यथा सुनने वाला कौन था ?किसी ने यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि वो क्या चाहता है ?आये दिन नानी की डांट सुनने को मिलती ,उसे अपने पिता की औलाद होने का ताना मिलता। कुछ महीनों पश्चात उनका तलाक हो गया।