Balika vadhu [65]

न जाने लोग, कैसे होते जा रहे हैं, कैसे रिश्ते हो रहे हैं ? दो अजनबी जब मिलते थे। उन्हें लगता था, जैसे- जन्मों का नाता है और वह प्रेम के बंधन में बंधकर, विवाह तक अपने प्रेम की यात्रा पूर्ण करते थे। इस यात्रा में इन्हे जीवन भर जो साथ में रहना था। सुख -दुख में साथ निभाने के वादे, प्रेम से रहने की बातें , सब कुछ एक सम्मोहन की तरह लगता था। एक दूसरे को जानने और समझने में ही एक -दो वर्ष निकल जाते थे  और धीरे-धीरे,जब  एक दूसरे को जानने और समझने लगते थे। तब तक उनका प्रेम बहुत गहरा हो जाता था।एक -दूसरे से बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। 


 किंतु आज न जाने क्या होता जा रहा है ? कैसे लोग होते जा रहे हैं ? कैसे रिश्ते बन रहे हैं ? एक दूसरे के प्रति त्याग प्यार की भावना तो रही ही नहीं। रिश्तों में , जैसे सौदेबाजी हो गयी  है, कहीं पर लड़का गलत है तो कहीं पर लड़की गलत हो जाती है और कहीं तो परिवार ही, उन्हें एक साथ रहने नहीं देता,उन्हें लगता,विवाह होने के पश्चात- कहीं बेटा हाथ से न निकल जाये ? कहीं ना कहीं उनके प्रेम में भी तो,कोई कमी नहीं रह गयी होगी ।उनके प्रेम में ,उतनी गहराई नहीं होती,जो किसी के कहने -सुनने से भी उस रिश्ते पर कोई असर ही न पड़े और ये सब किससे आता है ?प्यारऔर विश्वास से,अब इन रिश्तों में इन दोनों की कमी ही तो आ गयी है। असुरक्षा की भावना घेर लेती है ,तभी तो एक दूसरे से, शीघ्र दूर हो जाते हैं। प्रेम तो लैला -मजनू ने भी किया था, शीरी - फरहाद ने भी किया था। राधा -कृष्ण का प्रेम इन सबसे ऊपर है, उनके प्यार में गहराई थी , तमाम समाज के लोग मिलकर भी, उनके प्रेम का अहित न कर सके। उनके अटूट प्रेम को तोड़ न सके किंतु आज प्रेम रिश्तों से, मुंह छुपाता घूम रहा है। 

आज परिणीति ने , अपने पति वीरेंद्र को एक नया रिश्ता और बताया'' सिंगल मदर'' इस शब्द को पहले कोई नहीं जानता था। हालांकि जिनके पति समय से पूर्व, इस दुनिया को ही छोड़ कर चले गए, तो वह अकेली ही उस परिवार को ,अपने बच्चों को पालती थी किंतु आज यदि पति ने धोखा दे दिया, उससे तलाक हो गया, उससे विचार नहीं मिल रहे हैं कारण कोई भी हो सकता है , बड़े गर्व से कहती हैं -मैं'' सिंगल मदर'' हूं।

 तब वीरेंद्र ने बताया -कभी-कभी इन रिश्तों में मायके वाले, अपने परिवार के लोग ही, रिश्ते के टूटने में सहायक होते हैं। इस बात पर एक परिणीति को विश्वास नहीं हुआ किंतु जब वीरेंद्र कह रहे हैं, तो वह सोचने पर मजबूर हो गई, क्या ऐसा भी हो सकता है ? तब वह अपने पति से पूछती है- वे कैसे अलग हुए ?

वीरेंद्र,परिणीति  से अपने दोस्त की एक रिश्तेदार की बेटी के विषय में बताता है -उनकी बेटी नौकरी करती थी, परिवार वालों ने उसके मन में एहसास कराया हुआ था- कि वह किसी से कम नहीं है, यदि लड़का कमाता है, तो तुम भी उससे कम नहीं कमाती हो। यह बात, बेटी के हृदय में घर कर गई ,इस भावना ने  उसके मन में अहंकार का रूप ले लिया। हो सकता है, उस समय माता-पिता, ने उसके अंदर आत्मविश्वास पैदा करने के लिए, ऐसा कहा हो। किंतु आज वही शब्द उसके अहंकार का कारण बन गए।

 किसी भी बात में वह बराबरी करती। अपने पति से बहस भी करती। कभी-कभी दोनों में झगड़ा भी कई बार लड़का सही होता किंतु अपने घर- परिवार के लिए शांत रहता। जब उसने, उसके परिवार के सामने यह बात करने का सोचा , ताकि उस लड़की के अंदर उसके मन में जो भावना बलवती हो रही है वह किसी भी तरह की गलतफहमी न बन जाये।  यही सोचकर, उसने कभी अपने रिश्तों की उलझन को सुलझाने का प्रयास किया तो उसके परिवार वालों ने अपनी बेटी का ही साथ दिया। उन्होंने कभी उनके रिश्तों को, और उन्हें समझाने का प्रयास ही नहीं किया और न ही, अपनी बेटी को समझाने  का  प्रयास किया। 

तुम्हें किसी से दबकर नहीं रहना है ,'' मुंह तोड़ जवाब देना है। ''तुम क्या किसी से कम हो ? अच्छा खासा कमाती हो, तुम उससे दब कर क्यों रहोगी ? यही बातें, उसके गृहस्थ  जीवन को बर्बाद कर रही थीं। पहले समय में क्या होता था ? माता-पिता, बेटी को समझाते थे, अगला घर ही तुम्हारा अपना घर है, वहीं पर प्रेम से रहना है, बड़ों का मान- सम्मान बनाकर रखना है। पति से प्रेम करना है, यह मायका तुम्हारा है, यहां भी तुम्हारा अधिकार है, तुम आ सकती हो किंतु कभी भी, लड़कर यहां मत आना।जब भी आना , दामाद जी को साथ लेकर आना। ऐसे शब्द मन में सकारात्मकता भरते हैं। बेटी को एहसास होता है कि वह उसका अपना घर है।

 हालांकि उस समय भी नारी अवहेलना की शिकार भी हुई है, अधिकतर महिलाओं में लड़ाई- झगड़े भी हुए हैं किंतु तब भी वह अधिकार के साथ वहीं [ससुराल में ] रहती थी। किंतु आज, लड़कर अपने मायके  जाने के लिए, तैयार रहती है। क्यों ? क्योंकि अब मायके वाले भी जानते हैं , उनकी बेटी कमा रही है, पैसे की कोई दिक्कत नहीं होगी। उस समय पर बेटी, आत्मनिर्भर नहीं थी, तब  उसमें यह विद्रोही भावना भी उत्पन्न नहीं होती थी। पति-पत्नी में झगड़ा, उस समय बल्कि अबकी अपेक्षा कम ही होते थे , आज उससे अधिक होने लगे हैं। शायद उस समय महिलाएं इसलिए भी दब जाती थीं  कि उस समय में वह आत्मनिर्भर नहीं थीं 

इसका मतलब ,आजकल बेटियों का आत्मनिर्भर होना भी क्या उनके परिवार के टूटने का कारण भी कह सकते हैं ,परिणीति ने वीरेंद्र से पूछा। 

मेरे विचार से यह होना नहीं चाहिए ,बेटियों को आत्मनिर्भर इसीलिए तो बनाया जाने लगा ,इस महंगाई में पति -पत्नी जो गाड़ी के दो पहिये के समान हैं ,बराबर मिलकर उस गाड़ी को चला सकें किन्तु आज की परिस्थितियों को देखते हुए ,लगता है ,ये भी एक कारण हो सकता है। पहले समय यदि लड़की  कमाती नहीं थीं इसका अर्थ यह तो नहीं कि उनका सम्मान नहीं होता था संपूर्ण जीवन उसी चौखट पर गुजार देती थीं। तीन -तीन, चार- चार बच्चों की मां भी बन जाती थी उनके लालन -पालन में अधिकतर समय  व्यतीत हो जाता था। 

वीरेंद्र और परिणीति आजकल की परिस्थितियों को समझने का प्रयास कर रहे हैं ,आज के समय में जो कुछ भी हो रहा है। उसका ज़िम्मेदार आखिर कौन है ?आज की परिस्थितियां ,लोगों की सोच ,या उनका स्वार्थ या फिर एक -दूजे पर विश्वास न होना। देखते हैं ,वे किस नतीज़े पर पहुंचते हैं ?आइये आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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