रिश्ते अपने भी होते हैं और पराये भी ! कई बार अपने ही रिश्ते, पराये बन जाते हैं ,अजनबी नजर आने लगते हैं। अजनबी से हो जाते हैं। कई बार अनजान लोगों से ऐसे रिश्ते बन जाते हैं, जो तमाम उम्र स्मरण रहते हैं।एक अनजानी डोर से बंध जाते हैं। ये दो अजनबी जब मिलते हैं तो पति -पत्नी का रिश्ता भी बन जाता है। कुछ अज़नबी , उनकी यादें ,उनकी बातें, याद रह जाती हैं और कई बार कुछ अनजान रिश्ते, जिंदगी में एक हलचल मचा देते हैं। वह अजनबी अपने बनकर आते हैं, किन्तु जीवन को तहस -नहस भी कर जाते हैं।
ऐसे ही एक अज़नबी से दीपा की मुलाक़ात एक विवाह में हुई ,वह बार -बार दीपा को देख रहा था। पहले तो दीपा ने जाने दिया किन्तु उसकी हरकतों को ज्यादा नजरअंदाज न कर सकी। तब वह उसके करीब गयी और बोली -क्या मैं तुम्हें जानती हूँ ?
नहीं ,मुझे कैसे जानेंगी ? हम आज ही पहली बार मिले हैं।
ओह !मैंने सोचा आप मुझे इस तरह देख रहे हैं,जैसे जानते हों।
नहीं जानते हैं तो जान जायेंगें ,कहते हुए उसने दीपक की आंखों में देखा। दीपा को उसकी आंखों में आंखों में अजीब सी गहराई नजर आई , न जाने क्यों ? उसका मन, उसकी तरफ देखने के लिए करने लगा। तब वह दीपा से बोला -तुम मुझे अपना फोन नंबर दे सकती हो।
न चाहते हुए भी, दीपा ने अपना फोन नंबर दिया। बड़ी ही अजीब सी अनुभूति हो रही थी , उसे पहली बार मिल रही थी किंतु उससे बात करने का दिल कर रहा था। जब वह लोग, अपने घर जा रहे थे। तब दीपा हो उसकी बातें याद आ रही थी। उसके पति ने दीपा से पूछा - क्या हुआ है ? तुम बड़ा मुस्कुरा रही हो।
पता नहीं क्यों ? उस अजनबी ने कहा था -हमें हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए , इसीलिए मुस्कुराने का दिल कर रहा है , कहते हुए गुनगुनाने लगी।
दीपा का 5 साल पहले, संजीव से विवाह हुआ था, दीपा समझदार और सुलझी हुई लड़की है। हमेशा शांत रहती है, किसी भी परेशानी में वह और गंभीर हो जाती है। यही उसका नेचर है आज वह अपनी प्रकृति के विरुद्ध मुस्कुरा रही थी। संजीव को भी अच्छा लगा, संजीव ने दीपा से पूछा -वह व्यक्ति कौन था ?
नहीं, जानती हूँ , था कोई ,अजनबी !
धीरे-धीरे, दीपा अपने घर में व्यस्त हो गई, एक दिन दीपा को फोन आया बड़ी प्यारी सी आवाज थी , उस आवाज को सुनते ही, दीपा चहक उठी , जैसे किसी अपने प्रिय का फोन आया है। और आप कैसे हैं ? दोनों ने की बहुत सारी बातें की , जब भी उसका फोन आता दीपा बहुत खुश हो जाती। अब तो अपने पति संजीव से भी उसकी बातें करती। संजीव को बड़ा अजीब लगता, न जाने इसका व्यवहार, कैसे इतना बदल जाता है ?
संजीव ने दीपा से फिर पूछा -वह व्यक्ति कौन है ?
यह बात मैंने पूछी थी , उसने बताया डॉक्टर हूँ।
उसका कोई नाम तो होगा।
उसने कहा -दिल का डॉक्टर हूँ ,
ओह ! हार्ट स्पेशलिस्ट है।
जब भी वह दीपा से बातें करता , दीपा को अच्छा लगता। उसका पति संजीव जब बातें करता, तो दीपा को क्रोध आता वह जानती थी कि कुछ तो गलत हो रहा है लेकिन उसके बस में नहीं था। उसने दीपा को अपना दोस्त बना लिया बहुत बातें करती। जब तक दीपा उससे बातें करती रहती, उसके कानों में एक घंटी सी बजती रहती। दीपा और संजीव को लगता कि उस अजनबी का फोन आना उनके लिए सही नहीं है। दीपा के व्यवहार में काफी परिवर्तन आने लगा था। अब उसने दीपा से उस अजनबी का फोन उठाने के लिए मना कर दिया। उसने दीपा को समझाना चाह कि तीसरा व्यक्ति हमारी जिंदगी में, हलचल मचाने आया है। किंतु जब भी फोन की घंटी बजती , न चाहते हुए भी दीपा, फोन उठा लेती , उससे बातें करने लगती,चैट करती।
अब दीपा को भी लगने लगा ,ये अजनबी मेरी ज़िंदगी में क्यों है ?इससे मेरा क्या रिश्ता है ?एक दिन उसने दीपा को मिलने के लिए बुलाया ,इससे पहले की दीपा इंकार करती,बोला -तुम्हें आना ही होगा ,वो उसके कहे को इंकार न कर सकी। तुरंत ही तैयार हुई और चल दी। उसके पति संजीव ने एक बार उससे पूछा भी ,दीपा तुम कहाँ जा रही हो ?किन्तु दीपा का ध्यान उस ओर गया ही नहीं ,वह आगे बढ़ती चली गयी तब संजीव ने उसका पीछा किया।
एक रेस्टोरेंट में दीपा एक व्यक्ति से मिलती है,वह आगे बढ़कर उसका स्वागत करता है। दीपा उसके साथ खुश थी। तब संजीव को एहसास हुआ कि मेरी पत्नी का इस अजनबी से संबंध है। यह सोचकर वह उदास हो गया। दोनों ने साथ में भोजन किया खूब बातें की, अभी संजीव बैठा हुआ उनकी हरकतों को देख ही रहा था तभी उसका एक दोस्त आ गया और उसने पूछा -अरे यहां क्या कर रहे हो ? संजीव ने बताना उचित नहीं समझा और बोला -ऐसे ही आया हूं , इसी बहाने उसने दोनों के लिए चाय भी मंगवा ली। तभी संजीव के दोस्त की दृष्टि, दीपा और उस व्यक्ति पर पड़ी ,वह दीपा को नहीं जानता था किंतु उस व्यक्ति को अवश्य जानता था और बोला -यह व्यक्ति !इसके साथ यह कौन है ?
संजीव को उसकी बातों से लगा शायद वह उस व्यक्ति को जानता है तब संजीव ने उससे पूछा -क्या तुम इसे जानते हो ?
बहुत अच्छी तरह से, यह इंसानों को सम्मोहित कर देता है, और फिर जो भी उससे करवाना होता है, करवाता है। खास कर ये महिलाओं को' हिप्नोटाइज' करता है। इंसान को पता भी नहीं चलेगा कि , वह सम्मोहित है उसे लगेगा कि वह प्रतिदिन की तरह जीवन जी रहा है किंतु यह नहीं जानता कि वह किसी और के इशारे पर चल रहा है। वह जानता है कि वह गलत है या उसके साथ गलत हो रहा है किंतु चाह कर भी कुछ कह नहीं सकता।
क्या बात कर रहा है ?
हां, यह ऐसा ही सरफिरा व्यक्ति है, यह डॉक्टर है,' डॉक्टर अस्थाना '!
मुझे तो लगता है, इसके साथ जो महिला बैठी है......
इससे पहले कि वह कुछ कहता ,संजीव बोल उठा -मेरी पत्नी है।
क्या???? आश्चर्य से उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
तो यह बात है, तब उसने सारी बातें अपने दोस्त को बताईं।
तब उसका सम्मोहन कैसे टूटेगा ? संजीव ने अपने दोस्त से पूछा। तब तुम ही सोच कर बताओ ! कि तुम्हारी पत्नी इसे कब और कहां मिली थी ?
हम लोग किसी शादी में गए थे वहां इससे परिचय हुआ था। तब से ही दीपा कुछ अजीब सा व्यवहार कर रही थी। वह नॉर्मल तरीके से रहना चाहती थी किंतु कुछ ना कुछ ऐसा कर रही थी जिससे मुझे शक हुआ। इसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? और चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही है।
ठीक है, मैं कुछ दिनों पश्चात तुमसे बात करता हूं , अब अपनी पत्नी को ले जाओ ! और जो कुछ भी उसे सुनाई देता है दिखाई देता है उसे पता करने का प्रयास करो।
घर जाकर संजीव ने दीपक से पूछा -तुम्हें किसने बुलाया था ? वही अजनबी! जब तुम्हें फोन करता है तो क्या तुम्हें कुछ और भी सुनाई देता है।
हां, मुझे घंटी की आवाज सुनाई देती है।
अब से तुम उसका फोन नहीं सुनोगी , संजीव ने कहा -संजीव ने अपने दोस्त को भी यह बात बताइ , एक दिन उसका दोस्त घर पर आया और उसने, बड़े जोर से घर में शंख बजाया शंख़ के बजते ही, दीपा का सम्मोहन टूट गया। उसका सम्मोहन टूटते ही, वह पूछने लगी- यह सब क्या हो रहा है ? तब संजीव ने उसे बताया -कि तुम्हारे साथ उस अजनबी ने क्या-क्या किया था ?जिसे सुनकर दीपा बहुत दुखी हुई और संजीव से माफी मांगने लगी। आज दीपा को बहुत हल्का महसूस हो रहा था वरना उसके सिर पर हमेशा बोझ सा रहता था। कुछ अजनबी अच्छे होते हैं तो कुछ, जिंदगी में हलचल मचा जाते हैं वह हलचल अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी।