Balika vadhu [64]

परिणीति को अब नई पड़ोसन मिल गयी थी जिसका नाम' सावित्री 'था ,वह अपनी बेटी बबली के साथ, चौथी बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर रह रही थी। एक दिन उनका आपस में मिलना हो ही जाता है। तब परिणीति  को, सावित्री के जीवन की सच्चाई का पता चलता है , जिसे सुनकर वह हतप्र्भ  रह जाती है। न जाने कैसे-कैसे लोग हैं ? अपनी ही बेटी को ठुकरा कर चला गया , कितना कठोर पिता था ? विवाह के पश्चात उसे अपने जीवन को संवारना चाहिए था किंतु वह तो पहले से ही भटका हुआ था। उसने अपने साथ-साथ, सावित्री की जिंदगी भी बर्बाद कर दी, उसने माता-पिता के दबाव में आकर विवाह तो कर लिया, किंतु विवाह को निभाना नहीं चाहता था। अनेक प्रश्न इस तरह से मन में आते हैं, यदि उसे विवाह करना ही नहीं था , तब उसने उस लड़की के जीवन के साथ क्यों अन्याय किया ? इस लड़की के साथ-साथ अपनी बेटी के साथ भी अन्याय कर गया। 


कहीं सास- बहू की लड़ाई हो, कहीं पति-पत्नी में नहीं बन रही है, ऐसे अनेक कारण होते हैं,  जिनके कारण घर टूट जाते हैं, जीवन बर्बाद हो जाते हैं लेकिन यहां तो कारण ही अलग था। 'पराई स्त्री' उनके जीवन में, आ गई थी, आई नहीं थी बल्कि वह पहले से ही आई हुई थी।  उस व्यक्ति का लालच इतना बढा  हुआ था उसने सावित्री से पहले इनकार नहीं किया बल्कि उसके साथ कुछ रातें बिता कर,जब उसे गर्भवती बना दिया , तब सच्चाई को सामने लाया। न जाने, इस दुनिया में कैसे-कैसे लोग हैं ? अपने बनकर भी, धोखा देते हैं परिणीति यह सच सुनकर बहुत ही दुखी होती है। उसने आगे पूछा -कि आगे क्या हुआ था ? क्या तुमने उसे तलाक दे दिया ?

नहीं, मैंने उसे तलाक नहीं दिया।  उसने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी, न ही  मैं कुंवारों में रही और न ही मैं ब्याहता रही, तो मैं ही उसे कैसे छोड़ देती ? मैंने भी उससे कह दिया -कितना भी जोर लगा ले, तलाक नहीं दूंगी। पापा ने पुलिस में रिपोर्ट कराई थी , लेकिन वह मैं जाने कहां जाकर छुप गया ? यहां भी नहीं आता, उस लड़की के पास मैं उसे जाने नहीं दूंगी क्योंकि मैंने उस लड़की के विरुद्ध भी पुलिस में रिपोर्ट कर दी थी। किसी की जिंदगी के साथ खेलना कोई हंसी- खेल नहीं है ,कम से कम उसे एहसास तो होना चाहिए।

 बेटी होने के पश्चात, मैंने अपनी नौकरी दोबारा आरंभ कर दी। माता-पिता भी कब तक मेरी  जिम्मेदारियां  उठाते रहेंगे ? पापा ने इतना पैसा लगाकर, मेरा विवाह किया था। अब दूसरी बेटी की तैयारी कर रहे हैं। मेरी नौकरी से, कभी-कभी पूरा नहीं पड़ता, तब पापा ही खर्चा देते हैं। अपनी बेटी को ऐसी - वैसी जगह नहीं रहने देंगे, इसलिए किराया भी महंगा पड़ जाता है।

 मेरे साथ तो दोहरी मेहनत हो गई, छोटी बच्ची को अपने साथ रखना, और रात में नौकरी करना मेरे लिए बहुत कठिन था, मुझे ही मालूम है मैंने  कैसे यह दिन बीताएँ हैं ?कभी -कभी इसे बुखार हो जाता ,ठंड में इसे छोड़कर जाती।तब वे लड़कियां इसे संभालतीं, घर आकर दिनभर की थकी मैं, बेटी को संभालती उसे दवाई देती और उसे साथ लेकर सो जाती।  

उस समय तुम्हारा कौन सा महीना चल रहा था ?जब उसने ये सब बताया। 

तीसरा महीना था ,जब उसे इस बच्चे की आवश्यकता ही नहीं थी और वो अपनी ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार ही नहीं था ,तो तुमने इस बच्ची को इस दुनिया में आने ही क्यों दिया ?तुमने  अपना 'गर्भपात 'क्यों नहीं करवा लिया ?इस झंझट से मुक्त रहतीं ,फिर से कोई अच्छा सा लड़का देखकर,दुबारा विवाह कर लेतीं। 

ये आंटीजी !आप क्या कह रहीं हैं ?उसने मुझे धोखा दिया मैंने नहीं ,उसके किये की सजा मेरी बेटी क्यों भुगतेगी ?हालाँकि अभी मुझे उसके कारण थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, किन्तु मैं भी उसे चैन से जीने नहीं दूंगी। वो कई बार यहाँ आ चुका है ,फोन पर धमकी दे चुका है किन्तु मैं उसे इतनी आसानी से नहीं छोडूंगी, वह ढृढ़ संकल्प से बोली। उसकी नजरों में अपने उस पति लिए क्रोध था और वो बदले की भावना से धधक रही थी।

परिणीति ने उसे और छेड़ना मुनासिब नहीं समझा और अपने घर  लौट चली ,रास्ते में सोच रही थी -हे प्रभु !तेरी इस दुनिया में ये क्या हो रहा है ?''कुछ लोग सच्चे प्यार को तरसते हैं और जिन्हे सच्चा प्यार मिलता  है ,वे उसकी क़द्र नहीं करते।''जितना इसने उसे प्यार किया होगा ,उतनी ही नफ़रत लिए घूम रही है। क्या कभी इसने ऐसा सोचा भी होगा कि उसकी ज़िंदगी इतनी बदल जाएगी। ऐसे में यदि लड़की ऐसा करती तो न जाने कितने लोग उसे लानत भेजते ?जो समय उन्हें आपस में प्रेम से बिताना चाहिये था ,उस समय को ये लोग बदले की भावना में झुलसकर बिता रहे हैं। 

घर आकर परिणीति , वीरेंद्र से सब बताती है -' गलती तो गलती ही है ,लड़की करे या लड़का ,यदि उसे ये विवाह नहीं करना था तो धीरे से सावित्री से ही कह सकता था -मुझ पर दबाब है ,तुम इस रिश्ते से इंकार कर दो !किन्तु सोचा होगा, दोनों हाथों में लड्डू हैं तो क्यों न खाये जाएँ ?ऐसी स्थिति में इस बच्ची का क्या होगा ?जो बिना पिता के ,माँ को संघर्ष करते देखेगी ,बाप के प्रति उसकी नफ़रत देखेगी तो इसके जीवन पर क्या असर होगा ? क्या सीखेगी ? वीरेंद्र उसकी बातें सुनकर कहते हैं। 

ऐसे रिश्ते में  ,अभी नहीं तो भविष्य में माँ किसी और से विवाह के लिए मान भी जाये। तब इसका अपना कौन होगा ?किस तरह से ये घर टूट रहे हैं। पहले इतने बड़े परिवार होते थे ,बच्चा दादी -बाबा ,बुआ,चाचा  इत्यादि रिश्तों के साथ रह अपने को सुरक्षित महसूस करता था किन्तु आज परिवार के नाम पर पति -पत्नी और हमारा एक या दो बच्चे !वो भी संग नहीं रह पा रहे हैं। गलती किसी की भी हो ,किन्तु अब'' सिंगल मदर ''का जैसे फैशन सा चल गया है।''

तुम कुछ अधिक ही सोचने लगी हो ,मेरे दोस्त की एक रिश्तेदार की बेटी भी है ,जो ''सिंगल मदर ''है। 

हाय ,राम !अब उसे क्या हुआ ?क्या उसके पति ने भी उसे छोड़ दिया ?

उसने बताया -'उनके घर टूटने का कारण उसके अपने माता -पिता है'। 

ये आप क्या कह रहे हैं ?भला कौन माता -पिता ऐसा चाहेगा कि उसकी बेटी का घर टूटे। 

कुछ लोग स्वार्थी हो जाते हैं,गहरी स्वांस लेते हुए वीरेंद्र बोले।

वो कैसे ?      

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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