बबली के साथ खेलते हुए परिणीति को,अब बहुत देर हो गई थी किंतु बबली की मां अभी तक नहीं आई थी। तब परिणीति बोली-बेटा !बहुत देर हो गयी ,अब हमें घर चलना चाहिए, तुम्हारी मम्मी न जाने कहाँ रह गयीं ? चलो ! तुम्हें भी, तुम्हारे घर छोड़ देती हूं। कहते हुए, उसका हाथ पकड़ कर वह उसके घर की तरफ चल दी। वह नहीं जानती थी कि चौथी बिल्डिंग में वह कौन सी मंजिल पर वह रह रही है ? आगे का रास्ता उसे बबली ने ही दिखाया। बबली को साथ लेकर परिणीति तीसरी मंजिल पर पहुंची , उसने उनके घर का दरवाजा खटखटाया।
सावित्री अंदर रसोई घर में खाना बना रही थी और वह जो लोग आए हुए थे वे वहां बैठे हुए, भोजन कर रहे थे। परिणीति को देखकर, सावित्री को स्मरण हुआ, कि बबली तो बहुत देर से उनके साथ थी। उन्हें देखकर बोली -सॉरी आंटी जी ! यहां आकर मैं घर के कामों में व्यस्त हो गई , मैं भूल ही गई थी, आईये , बैठिए !
भोजन करते हुए, लोगों की तरफ परिणीति ने देखा और बोली -अभी मैं चलती हूं, लगता है, तुम व्यस्त हो !
नहीं, बस हो गया, आप बैठियें ! मैं आपके लिए चाय बना कर लाती हूं, कहते हुए रसोई घर में चाय बनाने चल दी। तभी उनमें से एक व्यक्ति को देखकर, बबली चहक उठी,-मामा !आप कब आये ?
ओह !ये लोग सवित्री के मायकेवाले हैं ,ठीक है ,अपनी बेटी से मिलने आये होंगे। परिणीति को वहां बैठना अच्छा नहीं लग रहा था किंतु सावित्री के कहने पर बैठ गई वे लोग भोजन करके उठे और बोले -अभी हम जा रहे हैं, कुछ खरीददारी भी करनी है, वहां से हम सीधे ही घर चले जाएंगे, यह कहकर वे लोग निकल गए।
उनके जाने की पश्चात सावित्री ने, परिणीति को चाय दी और अपनी बेटी को दूध दिया और स्वयं भी अपनी चाय लेकर साथ में कुछ बिस्किट लेकर आई और परिणीति के पास आकर बैठ गई। परिणीति इतनी देर से देख रही थी, कि घर में और कोई दिखलाई ही नहीं दे रहा था , उससे रहा नहीं गया और उसने पूछा -क्या घर में और कोई नहीं है ?
हां, आपको बताया तो था, दो लड़कियां रहती हैं, आज वो भी अपने घर गई हुई हैं।
नहीं, मेरा मतलब था, तुम्हारे पति और तुम्हारे सास -ससुर !
परिणीति के इस प्रश्न पर, सावित्री उदास हो गई, उसके खिलते चेहरे का जैसे रंग उतर गया वह गंभीर हो गई और बोली -मैं'' सिंगल मदर'' हूं।
यह शब्द'' सिंगल मदर'' परिणीति ने कई बार सुना है, किंतु आज देख भी रही है। बोली-मैं कुछ समझी नहीं, क्या तुम्हारा विवाह ?
हुआ था, यह जो आए थे ,ये मेरे पापा और मेरा भाई था, मेरी छोटी बहन के रिश्ते की बात चल रही है उसकी शादी की तैयारी में ही लगे हुए हैं।
यदि तुम्हारा विवाह हुआ था, तो तुम्हारे पति कहां है ? परिणीति ने स्पष्ट रूप से पूछा -उन्हें क्या हुआ ?
यह प्रश्न पूछते ही जैसे, सावित्री को क्रोध आया हो, वह बोली -उसे प्यार हुआ था ?
मैं कुछ समझी नहीं ,
मैं भी नहीं समझी थी, जब मेरे साथ इतना बड़ा धोखा हुआ था , मैं भी परेशान थी , जो कुछ भी मैंने झेला , मैं ही जानती हूं। उन बातों को स्मरण कर जैसे, उसकी आंखें नम हों आईं।
वैसे तो मेरा अधिकार नहीं बनता है,किन्तु एक पड़ोसी होने के नाते क्या हुआ था ?मुझे कुछ बतलाओगी।
मेरे पापा ने, मेरे लिए लड़का ढूंढा अच्छी शादी की थी लड़का भी अच्छी जॉब करता था। हम लोग खुश थे ,बाहर घूमने भी गए ,जब मेरी बेटी मेरे गर्भ में आई ,मेरे पति का व्यवहार धीरे -धीरे बदलने लगा।
क्यों, ऐसा क्या हुआ था ?
जिस समय मुझे उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, उस समय ही वह पीछे हट गए ,पहले तो उसने कहा -तुम इस बच्चे को गिरा दो !मैंने इस बात से इंकार किया ,यह आप क्या कह रहे हैं ?ये हमारे प्यार की निशानी है ,अब हम माता -पिता बनने वाले हैं ,ये हमारे लिए ख़ुशी की बात होनी चाहिए। किन्तु वो नहीं माना क्योंकि वह अपने दफ्तर की किसी लड़की से प्यार करता था ।
ये क्या बात हुई ?हां, कभी-कभी मनुष्य भटक जाता है किंतु अपनी बेटी का चेहरा देखकर तो वह खुश हो गया होगा।
नहीं, जब मुझे उन पर शक होने लगा तो मैंने उससे बात की -मैं देख रही हूं कुछ दिनों से आपका व्यवहार मेरे प्रति बदल रहा है, जबकि मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूं।
तो क्या हुआ ? दुनिया की औरतें मां बनती है, तुम कोई विशेष कार्य नहीं कर रही हो , वह झुंझलाकर बोला ।
उनके इस तरह के शब्दों से मैं बहुत आहत हुई, तब मैंने पूछा -तुम मुझसे प्रेम करते थे, अब वह प्रेम कहां चला गया? इतनी जल्दी प्रेम समाप्त हो गया। उस समय उसने जो कुछ भी मुझसे कहा -'' मेरा संपूर्ण अस्तित्व हिल गया, मुझे लगा, मेरी दुनिया तहस-नहस हो गई।
ऐसा उसने क्या कह दिया ?
उसने कहा -मैंने तो तुझसे कभी प्रेम किया ही नहीं,मैं अपने दफ्तर की लड़की से प्रेम करता हूं , मेरे माता-पिता ने जबरदस्ती, मेरा विवाह तुमसे करा दिया, मैंने उनसे बहुत मना किया था। तुम्हारे पापा अच्छा दहेज दे रहे थे। मेरे माता-पिता लालच में आ गए, और वह बोले -विवाह के बाद सब ठीक हो जाएगा , उसे भूलने में थोड़ा समय लगेगा, यह कहकर उन्होंने मेरा विवाह जबरदस्ती तुमसे करा दिया।
यह क्या बात हुई ? जब उसे विवाह ही नहीं करना था तो उसे मना कर देना चाहिए था और मना भी किया तो ऐसे समय में , पहले भी तो मना कर सकता था।
वही तो मैंने उससे कहा -यदि तुझे मुझसे रिश्ता निभाना ही नहीं था, तो विवाह ही नहीं करता और विवाह कर भी लिया तो यह बात मुझे बताने की अब क्या जरूरत पड़ गयी ?या कुछ दिनों के लिए मुझसे मौज -मस्ती करना चाहता था किन्तु जब उसे लगा ,उस पर ज़िम्मेदारी आ गयी है ,तब उसने अपने पत्ते खोले। उस समय मैं ऐसी स्थिति में थी,अब मैं क्या करूं? मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मैंने पापा को फोन लगाया, और पापा को उसकी संपूर्ण बात बता दी। उसके कारण मैंने अपनी लगी लगाई नौकरी भी छोड़ दी थी किंतु मुझे इतना नहीं मालूम था कि इतनी जल्दी मुझे उसकी आवश्यकता पड़ जायेगी। अब वह खुलकर सामने आ गया था, और मुझसे तलाक चाहता था। शादी से पहले भी वह लड़की उसके साथ थी , और शादी के बाद भी वहीं काम करती थी, मुझसे वह तलाक़ चाहता था। उसके दिल में मैं, अपनी जगह ना बन सकी। न जाने, उस लड़की ने ऐसा क्या जादू किया था ?
तुमने अपने पापा से कुछ नहीं कहा -क्या उन्होंने विवाह से पहले छानबीन भी नहीं की थी ?
आंटी ! ऐसे में किसी से क्या कहें ? किसी के चेहरे पर थोड़ी लिखा होता है कि वह झूठ बोल रहा है। विश्वास करना पड़ता है।
उसके घर वालों से मिलना चाहिए था, पता तो चलता उन्हें भी कि उनका लड़का क्या गुल खिला रहा है ?
उन्हें सब मालूम था, वह तो जानबूझकर अनजान बने हुए थे।