Mysterious nights [part 75]

दमयंती सोचती थी ,वो सज -धजकर जब ज्वाला के सामने से निकलेगी ,तो वो उसकी राहों में ,अपना दिल न्यौच्छावर कर देगा किन्तु ज्वाला ने तो उसे ,एक झलक देखना भी उचित नहीं समझा। ये कैसा प्यार है ?जिसे अपने प्यार की परवाह ही नहीं। निराश हो ,दमयंती अपने कमरे में वापस आ गयी ,उसके अंदर भूचाल उमड़ रहा था किन्तु कोई उसे समझ ही नहीं रहा था ,या समझना ही नहीं चाहता। अपने को सबसे अलग-थलग महसूस कर रही थी। सबके होते हुए भी ,अकेली थी।

 तब उस कमरे में 'जगत सिंह' प्रवेश करते हैं और उसे अपनी बातों से समझने और समझाने का प्रयास करते हैं। दमयंती तो सोच रही थी। जब जगत को इस बात का पता चलेगा ,कि मैं उनसे नहीं ,उनके भाई से प्रेम करती हूँ। इस बात का उनको क्रोध होगा किन्तु उसकी सोच के विपरीत जगत उससे बहुत प्यार  से बातें करता है बल्कि उसे जो बताता है ,उससे दमयंती भी असमंजस में पड़ जाती है। वो उसकी प्रतीक्षा करना चाहता है ,जब दमयंती उसके प्यार को समझेगी और अपनाएगी। 


तब दमयंती कहती है -कहीं ये प्रतीक्षा लम्बी न हो जाये।

   अगले दिन जब दमयंती,उठी, उसका मन एकदम शांत था, शीतल जल की तरह शांत !न ही कोई लहर ,न विचार था, ना ही बवंडर था, न ही कोई मंथन था। ऐसा लग रहा था, जैसे झील की तरह शांत रहना चाहती है।नदी की तरह समय के संग बह जाना चाहती है। जगत से बात करके न जाने क्यों ?वो अशांत झील शांत हो गयी थी। 

वो उठकर रसोईघर में गयी और चाय बनाई ,ज्वाला को देखने उसके पास जाने की तड़प अभी भी बाक़ी थी,उसे देखने ,उससे मिलने का लोभ न मिटा सकी, किन्तु पहले से कम हो गयी थी। उसने ज्वाला के लिए चाय भिजवाई किन्तु पीछे -पीछे स्वयं भी गयी। चाय देखकर ज्वाला उठा और कुंदन से बोला -चाय रखकर चले जाओ !मैं पी लूंगा। अभी तक दमयंती बाहर ही खड़ी थी ,कुंदन के चले जाने के पश्चात 'ज्वाला ' बाथरूम चला गया और जब वापस आया तो वहां दमयंती को बैठे देखकर चौंक गया। तुम!!! यहां !

हाँ ,मैं ही हूँ ,क्या तुम मुझे पहचानते हो ?क्या कभी हम मिले हैं ?व्यंग्य से दमयंती बोली -वैसे देवरजी !मैं आपको बता दूँ ,मैं आपकी भाभी हूँ ,आप तो मुझसे मिलने नहीं आये तो मैंने सोचा ,मैं ही मिलकर आती हूँ।

' ज्वाला' ने जैसे उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और बोला -तुम यहाँ क्यों आईं ?

क्यों ? क्या मैं यहां आ नहीं सकती ,अब ये घर मेरा भी है ,इस घर की 'बड़ी बहु 'हूँ। क्या तुम्हारे यहां छोटों को बड़ों से मिलने नहीं आना चाहिए ,चाय उसके हाथ में पकड़ाते हुए बोली ,और उसे इशारे से कुर्सी पर बैठाया। 'ज्वाला' अंदर ही अंदर घबरा रहा था, ये सुबह -सुबह यहाँ क्यों और क्या सोचकर आई हैं ?अब हमरा रिश्ता बदल गया है। 

वही तो समझा रही हूँ ,तभी वो एकाएक कुर्सी से उठी और उसके गले में बांहों का हार ड़ालकर,उसके गालों को चूमा और बोली -तुमने तो 'सुप्रभात' !नहीं कहा किन्तु मैं अपने कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटती,कहकर वापस जाने लगी। 

उस स्थिति को, उन परिस्थितियों को समझना 'ज्वाला 'की भी समझ से परे था।उसे खुश होना चाहिए ,ऐसी स्थिति में क्या करे ?दमयंती को चाहता है किन्तु उसका इस तरह आना अच्छा भी नहीं लगा। उचित -अनुचित के फेर में पड़ना तो नहीं चाहता किन्तु जिस तरह दमयंती उसके समीप आई ,कोई देख लेता तो क्या होता ?अपने आप ही एक प्रश्न उभरा- कोई देख लेता तो ?इसका क्या अर्थ हुआ ?यदि कोई न भी देखे तो क्या उसे बुरा नहीं लगेगा। अपने आपको टटोलता है ,क्या दमयंती का चुंबन उचित था ? इसमें बुराई ही क्या है ?गालों पर ही तो किया है, किसी अनुचित स्थान पर तो नहीं। चाय का कप मेज पर रखते हुए सोचता है ,उसने चुंबन से पहले इतना नहीं सोचा, जितना मैं सोच रहा हूँ ,अपने आपको समझा रहा हूँ ,क्यों समझा रहा हूँ ?क्या मैंने कुछ गलत किया है ?जब मैंने कुछ गलत किया ही नहीं तो मैं अपने आपको इतना क्यों समझा रहा हूँ ?

वह इस रिश्ते की एक पहचान चाहता है। इस रिश्ते का क्या नाम हो सकता है ? देवरजी ! सोचकर मुस्कुराया। क्या वो इस रिश्ते के साथ न्याय कर पायेगी ? क्या मैं भी अपने आपको समझा पाउँगा ?क्या ये भाई के साथ न्याय होगा ,उनके साथ कोई धोखा तो नहीं। दुबारा बिस्तर पर लेटकर समाचार -पत्र पढ़ने का प्रयास करता है किन्तु बार -बार उसकी नजरों के सामने वही दृश्य आ रहा था ,जब दमयंती ने उसे चूमा था। अपने गालों को हौले से सहलाता है ,एक मुस्कान स्वतः ही उसके चेहरे पर फैल गयी। दमयंती का ये रूप उसने पहली बार देखा था। इससे पहले कभी ऐसे अकेले में मिलना ही नहीं हुआ,दूर से ही एक -दूसरे को देखते रहे ,एक बार मिले भी तो दिन के उजाले में ,जहाँ न जाने कितनी निग़ाहें उनका पीछा करती उन्हें दिखलाई दे रही थीं।  

दमयंती, ज्वाला के कमरे से बाहर आ मुस्कुराते हुए आगे बढ़ रही थी ,सुनयना जी की अनुभवी नजरों ने उसे देखा और पूछा -कहाँ से आ रही हो ? 

सुनयना जी के यह प्रश्न पूछते ही ,दमयंती की मुस्कान गायब हो गयी ,वो कुछ कहती, उससे पहले ही वो बोलीं -'जगत' ,उठा या नहीं। 

अभी तक तो नहीं उठे थे ,जाकर देखती हूँ ,कहते हुए अपने उस कमरे में दौड़ लगा दी। कहाँ से आ रही हो ?कमरे में अंदर आते ही उसके सामने एक प्रश्न और आ खड़ा हुआ। 

कुछ नहीं ,ऐसे ही बाहर टहलने गयी थी ,तो इस तरह घबराई सी क्यों हो ?

वो मम्मी जी !!

अच्छा !वो शीघ्र उठ जाती हैं ,कुछ कह रहीं थीं। 

बात को टालते हुए दमयंती ने पूछा -आपके लिए चाय ले आऊं !

क्यों ?क्या कुंदन नहीं है ?

है ,तो पर..... 

ओह !सोचकर मुस्कुराया और बोला -पत्नी धर्म !मन ही मन दमयंती ने सोचा वो तो मैं कब का निभा आई।  अभी दमयंती कुछ भी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करना है ?तब उसे टेलीविजन के धारावाहिकों के कुछ दृश्य स्मरण हो आये और वो आदर्श बहु बनने के लिए , प्रातःकाल नहा कर तैयार होकर बाहर आती है। 

उसे देखते ही सुनयना जी बोलीं - इस घर की बाग़डोर भी तुम्हें ही संभालनी है , तुम्हारे ऊपर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है , यह मत समझना, कि तुम कुछ भी लापरवाही करोगी तो मैं, तुम्हें क्षमा कर दूंगी। आज तो तुम्हारी पहली रसोई है। कुछ बनाना आता है। यह जीवन बहुत छोटा है किंतु इस जीवन के उत्तरदायित्व बहुत बड़े हैं जो तुम्हें ही संभालने होंगे ऐसा हम तुम्हारे पिता से वायदा कर चुके हैं। अब इस घर में, तुम्हारे सिवा कोई अन्य नारी प्रवेश नहीं करेगी। 

सुनयना देवी ने यह क्या कह दिया ? इस घर में कोई अन्य नारी प्रवेश नहीं करेगी, इस बात से उनका क्या तात्पर्य है ? जानने के लिए आगे बढ़ते हैं

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post