जब लड़कियां कुछ अहित कर देती हैं, या गलत कर देती हैं तो लोग शोर मचा देते हैं। कहते फिरेंगे ''लड़कियां ऐसी, लड़कियाँ वैसी'' किंतु यह नहीं देखते ,कि लड़कियां कितने परिश्रम से सब कुछ संभाल लेती हैं ? तब तारीफ का एक शब्द नहीं निकलेगा। आज परिणीति को, तरकारी खरीदते हुए बबली की मां मिली थी। वह तो, उसका नाम भी नहीं जान पाई। कैसे जानती ? उस बेचारी को समय ही कहाँ था पति आराम से घर में बैठा होगा। उसे सब्जी लेने भेज दिया। जब लड़की दो-दो तरफ की जिम्मेदारी निभा रही है तो क्या उन लोगों का फर्ज नहीं बनता है कि उसके काम में हाथ बटाएं ! अनेक बातें सोचते हुए, परिणीति ने अपने घर में प्रवेश किया। सामने वीरेंद्र को बैठे देखा और बोली -चाय पियेंगे !
पिला दोगी, तो पी लेंगे।
यदि नहीं बनाऊंगी, तो क्या स्वयं बनाकर पी लेंगे ?तब मुझे ,मौके बे मौके ताने सुनने को मिलेंगे। अजी ! अब तो एक कप चाय भी नहीं मिलती ,स्वयं ही बनानी पड़ती है। पूरा जीवन, इस घर -गृहस्थी में खपाने पर भी तारीफ के दो बोल, सुनने को नजर नहीं आते।
ये तुम क्या कहे जा रही हो ? तुमने एक कप चाय के लिए पूछा था और मैंने जबाब दिया था -पी लूंगा। इसमें इतनी बातें सुनाने की क्या आवश्यकता थी ? वीरेंद्र ने अपने अनुभव से महसूस किया- ये अवश्य ही,बाहर किसी से मिलकर आई है। तब वो बोले -क्या बाहर कोई मिल गया था ?
आपको इससे क्या ?जब मुझे कोई मिलेगा ,तभी मुझे एहसास होगा कि महिलाओं को क्या कुछ झेलना नहीं पड़ता ?अभी एक महिला तरकारी खरीद रही थी ,उसकी बच्ची भी उसी के संग थी। बेचारी !बच्ची को संभाले, घर देखे ,या फिर दफ्तर जाये।किन्तु आपको कैसे मालूम !कि मुझे बाहर कोई मिला था।
मुझे तभी ऐसे ज्ञान सुनने को मिलते हैं, हंसते हुए, वीरेंद्र बोले -अब तुम जब तक बताओगी नहीं, तुम्हें चैन नहीं आएगा इसलिए बता दो ! कि किससे मिलकर आ रही हो।
गैस के चूल्हे पर, चाय रखते हुए परिणीति बोली -मुझे आज नई पड़ोसन मिली है।
कौन है, कहां रहती है ?
क्यों >आपको इतनी दिलचस्प हो रही है, वह एक बच्ची की मां है आँखें तरेरते हुए परिणीति बोली।
तुम गलत समझ रही हो मैंने इसलिए पूछा- कौन पड़ोसन है।
वही तो बता रही हूं, उसके एक प्यारी सी बेटी है , और पता नहीं दूसरा बच्चा है या नहीं, बेचारी को ऑफिस जाना है और सब्जी खरीदने आई थी , पीछे-पीछे उसकी छोटी बेटी, जो जूस पीने के लिए जिद कर रही थी। मैंने उससे कहा था -चलो ! मेरे साथ, मैं जूस पिलवा देती हूं।
तुम भी कमाल करती हो,किसी से पहली बार मिलीं ,जिसे तुम जानती भी नहीं ,उसकी बेटी को जूस पिलवाने के लिए अपने साथ ले जा रही थीं ,ऐसे तो कोई भी ये बात स्वीकार नहीं करेगा। क्या वो नहीं आई इसीलिए तुम्हें क्रोध आ रहा था ?
नहीं ,उसने तो कुछ नहीं कहा किंतु उसकी मां बोली-' यह तो ऐसे ही जिद करती रहती है,कहते हुए ,उसे ले गयी।
तुम उनसे इतनी क्यों घुल मिल रहीं थीं ?तुम किसी को भी, ऐसी ही अपने घर पर आने का निमंत्रण दे देती हो।
नहीं ,ऐसे कहीं किसी को नहीं,वो तो मैंने सोचा -'नए पड़ोसी हैं इसी बहाने उनसे जानपहचान हो जाएगी। किन्तु जब उसने बताया कि उसको अपने काम पर भी जाना है ,तब मुझे एहसास हुआ ,बेचारी !पर कितना काम का बोझ है ?
ऐसा उसने तुमसे कहा ,अपनी पत्नी के सीधेपन पर कभी -कभी वीरेंद्र को क्रोध भी आता तो कभी हंसी भी।
हाँ ,उसने बताया -उसे दफ्तर जाना है ,देखा ! इसीलिए तो कह रही थी- बेचारी को खाना बनाकर, दफ्तर जाना होता है ऐसे में क्या उसका पति , उसके परिवारवाले उसकी सहायता नहीं कर सकते थे किंतु वह तो बहू है, उसका काम तो ताने सुनना ही है।
ऐसा तुम कैसे कह सकती हो ? सभी लोग एक जैसे नहीं होते , हो सकता है, वे अन्य किसी कार्य में व्यस्त हों । तुमने पूछा- उसका पति क्या करता है ? हो सकता है, उसके साथ सास- ससुर साथ में न रहते हों।
वो तो पूछने का मौका ही नहीं मिला,उसे समय ही कहाँ था ? वीरेंद्र की बात सुनकर परिणीति को लगा वो जो सोच रही है,क्या वह सही हो सकता है ? तब वह वीरेंद्र से बोली - मैं उसके विषय में जानना चाहती थी ,इसीलिए बुला रही थी। आप तो जानते ही हैं ,जब कहीं किसी पर अत्याचार या परेशानी देखती हूँ ,तो मुझे शीघ्र ही क्रोध आ जाता है।
कोई बात नहीं ,कभी समय मिलेगा तो बात हो जाएगी ,आये हैं ,तो कुछ दिन तो मौहल्ले में रहेंगे ही।
सर्दियों के मौसम चल रहे थे, जो लोग फ्लैट में रहते थे उनके घरों में इतनी धूप नहीं आ पाती थी इसीलिए वे लोग, अपने बच्चे और परिवार के साथ, पार्क में छुट्टी मनाने आ जाते थे। सभी लोग इकट्ठा हो जाते थे, बच्चे कभी छुपी -छुपाई , बैट- बॉल इत्यादि खेलने लग जाते। उनके माता-पिता पूरे सप्ताह नौकरी करते और उस दिन आराम करते। परिणीति भी अपनी कुर्सी लेकर, उस पार्क में बैठ गई थी। कुछ देर पश्चात उसे, अपनी मां के साथ, बबली भी दिखाइ दी। उन्होंने एक स्थान चुना , वैसे पार्क में बहुत भीड़ थी, अभी वह जगह देख रहे थी कि कहां अपनी चादर बिछाई जाए ? तभी बबली की मम्मी की दृष्टि, परिणीति पर पड़ी,उसने हाथ हिलाकर परिणीति को ''हैलो ! किया। परिणीति ने भी हाथ के इशारे से उन्हें अपने नजदीक आने के लिए कहा। वो अपनी बेटी को लेकर परिणीति के समीप आ गई। और बोली -आंटी जी !यहाँ तो काफी भीड़ हो जाती है।
हां ,आज छुट्टी का दिन होता है, सभी अपने घरों में आराम करना पसंद करते हैं किंतु इन सर्दियों में धूप लेना भी पसंद करते हैं इस बहाने बच्चों का, भी अपने माता-पिता के साथ रहना हो जाता है।वह चादर बिछाने लगी ,तब परणीति ने पूछा - तुम्हारा नाम क्या है ?तुम्हारी बेटी का नाम तो मुझे मालूम है लेकिन तुम्हारा नाम क्या है ?
सावित्री ! मेरा नाम है।
अच्छा नाम है, कहां नौकरी करती हो ?
मेरी कंपनी काफी दूर है, मुझे गाड़ी लेने आती है।
तुम्हारी बेटी,यानि बबली पढ़ती है, अभी तो यह 4 साल की हुई है, अभी इसे पढ़ने नहीं भेजा है।
तब इसे घर में कौन संभालता होगा ?
मेरे फ्लैट में दो लड़कियां और रहती हैं, मेरी नाइट शिफ्ट होती है और दिन में, मैं बेटी के साथ रहती हूं।
परिणीति मन ही मन सोच रही थी -यह अन्य दो लड़कियों के साथ भी रहती है , क्या इसका परिवार इसके साथ नहीं है ?
मैं कुछ समझी नहीं, तुम्हारा परिवार....... अभी परिणीति कुछ और पूछती।
तभी सावित्री उठी और बोली -आंटी जी ! जरा बबली का ध्यान रखिएगा ! मैं अभी आती हूं।
हां हां क्यों नहीं ? तब परिणीति ने, सावित्री को एक तरफ जाते देखा , उसने देखा, कि पार्क के किनारे दो लोग खड़े हुए थे, वह उनके करीब जाती है उनसे कुछ बातें करती है और उनके साथ अपने मकान की तरफ बढ़ जाती है।
परिणीति, अपने स्थान पर बैठे-बैठे ही, अंदाजा लगा रही थी कि यह लोग कौन हो सकते हैं ? क्या इसके ससुर और पति हैं , या फिर कोई और , तभी परिणीति के पास एक गेंद आकार गिरी। बबली ने फेंकी थी। बबली बोली -आप मेरी तरफ गेंद फेंकिए ! तभी उसका ध्यान अपनी मां की तरफ गया और उसने पूछा -मेरी मम्मी कहां है ?
बेटा! घर गई हैं अभी आती होगीं , चलो ! तब तक हम दोनों खेलते हैं , कहते हुए उसे खेल में लगाने का प्रयास किया।