सुनीता को एकदम शांत और चुप देखकर, संदीप ने उसे प्यार से अपनी तरफ खींचा और उसके बालों में हाथ फेरते हुए बोला -मुझे तुम्हारी खुशी चाहिए , तुम्हारी खुशी में ही, हमारी खुशी होगी। हां हमें थोड़ी सी परेशानी तो हुई है किंतु अभी हम समझ सकते हैं। यदि तुम्हें हमारी याद सताती भी है, तो छुट्टियां किसलिए हैं ? तुम्हारा अपना परिवार है, जब चाहे चली आओ !
सुनीता यही सोचकर यहाँ आई थी कि अब अपने परिवार के साथ रहूंगी किन्तु यहाँ आकर उसे लग रहा था,जैसे - किसी को उसकी आवश्यकता नहीं। सुनीता की आंखों में आंसू आ गए, और बोली -कभी-कभी मुझे लगता है, मेरा परिवार मुझसे दूर हो रहा है , अब मेरे बच्चे अपनी मां को इतना याद नहीं करते।
हां ,वह मैं समझ सकता हूं, यह तो नियम है, इंसानी फितरत है, जब बच्चा दूध पीता है, तो मां की ज्यादा आवश्यकता होती है और जब अन्य सामान खाने लगता है, तो उससे कम होती है और उसके पश्चात धीरे-धीरे आवश्यकता अनुसार ही, माता-पिता को पूछा जाता है। तुम अपने ऊपर ही लेकर सोच लो ! अब तुम अपनी मां को कितना फोन करती हो ?कितनी बातें करती हो ? ऐसे ही, बच्चे भी व्यस्त हो जाते हैं।
संदीप की बातें सुनकर, सुनीता चुपचाप बिस्तर पर लेट गई और अपने आपको समझाने लगी-' सही तो कह रहे हैं, कुछ दिन की दूरी और है, मेरा मन इतना विचलित क्यों हो रहा था ?शायद ,इसीलिए क्योंकि मैंने देवयानी जी के विचार भी सुने थे। इंसान को अपने जीवन में वही करना चाहिए जो उसके लिए और उसके परिवार के लिए उचित हो। जिसमें सब की खुशी शामिल हो हर इंसान की स्थिति अलग-अलग होती है तब मैं ही क्यों इतनी भावुक हो रही थी ?
एक सप्ताह पश्चात, बच्चों की परीक्षाएं समाप्त हो गई , तब सुनीता ने बाहर घूमने का कार्यक्रम बनाया। सभी एक साथ मिलकर, पिकनिक मनाने के लिए गए। ये छोटी-छोटी यादें ही तो जीवन भर याद रहती हैं , कुछ बुरी यादें जुड़ी हों तो अच्छी यादों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहिए ताकि बुरी यादें उन पर हावी ना हो सकें। बच्चे और परिवार के सभी लोग खुश थे। तब सुनीता ने अपने स्कूल में जाने के लिए, कहा। उसकी बात सुनकर, दोनों बच्चे उदास हो गए और बोले -मम्मी !अभी आप जा रही हैं , फिर कब आओगे ?
मैं समझती हूं , खुशी और गम ज़िंदगी में लगे ही रहते हैं। यदि मैं यहां भी रहती हूं, तो हमेशा तुम्हें पिकनिक तो नहीं मानने दूंगी तुम्हें पढ़ने भी ,जाना ही होगा , क्योंकि अपना जीवन संवारने के लिए हर इंसान को अपने-अपने तरीके से परिश्रम करना पड़ता है और जैसा वह परिश्रम करता है उसी के आधार पर वो जीवन में आगे बढ़ता है। जब मम्मी पढ़ने के लिए कहेगी तो तुम्हें गुस्सा आएगा कहते हुए मुस्कुराई और अपनी बेटी से बोली - अपने पापा का ख़्याल रखना ,तुम मेरी समझदार बेटी हो न..... ठीक है मैं प्रयास करूंगी कि मेरा तबादला इधर हो जाए, और फिर हम सब लोग एक साथ इकट्ठे रह सकेंगे।
सुनीता जब वापस गांव में आई तो गांव में तनाव का वातावरण बना हुआ था। हर कोई एक दूसरे को अजनबी की तरह देख रहे थे।
क्या गांव में कुछ हुआ है ?सुनीता ने अपने साथ की शिक्षिका से पूछा।
अभी आप इस विषय में कुछ भी न कहें ,न ही पूछें तो वही बेहतर होगा।
वही तो जानना चाहती हूँ ,हुआ, क्या है ?तुम तो बता सकती हो।
ठाकुर साहब !की बेटी...... दबे स्वर में वो, बोली।
क्या हुआ ?उसे !कौन है ? वो !
उन्होंने उसे विदेश में पढ़ने के लिए भेजा था।
यह तुम क्या कह रही हो ? क्या यहाँ के लोग इतना सब सोच सकते हैं ?
क्यों नहीं, सोच सकते ?
क्या ये इंसान नहीं हैं ?क्या ये आगे बढ़ना नहीं चाहते ?हर कोई आगे बढ़ना चाहता है ,इन लोगों ने अपनी बेटियों को भी आगे बढ़ने के लिए हमेशा से ही प्रोत्साहित किया है। आपने प्रतियोगिता में तो इसका उदाहरण देख ही लिया होगा।
तब, अब क्या परेशानी आ गयी ?
वही तो बता रही हूँ ,वो वहाँ रिसर्च के लिए गयी थी किन्तु वहीं की होकर रह गयी।
क्या मतलब ?
उसने विदेशी रहन -सहन ही नहीं ,किसी विदेशी से विवाह भी कर लिया।
ओह !तो ये बात है ,जब इन लोगों का दिमाग इतना आगे तक सोच सकता है ,तब ये बेटियों के मामले में इतने संकीर्ण विचार क्यों रखते हैं ?
क्योंकि ये लोग अपने संस्कारों और अपने रीति -रिवाज़ों से जुड़े रहना चाहते हैं। बस वहीं सब गड़बड़ हो जाता है। तुम्हें मैंने रामखिलावन और उसकी बेटी की कहानी तो सुनाई थी ,इसी तरह की बातें इनके मान -सम्मान को ठेस पहुंचाती हैं। अरे !हाँ याद आया ,आपकी किसी दिल्ली वाली बहन का फोन आया था।
अच्छा !उसने यहाँ फोन क्यों किया ?उसे मुझे फोन करना चाहिए था।
वो तो मैं नहीं जानती किन्तु पूछ रहीं थीं -सुनीता कहाँ है।
और कुछ तो नहीं कहा उसने ,सुनीता घबराते हुए बोली।
नहीं ,कुछ नहीं कहा।
न जाने, क्यों फोन किया होगा ?सुनीता सोचते हुए विद्यालय के एक कोने में जाकर उसे फोन लगाती है। हैलो !
हैलो !तू कहाँ चली गयी थी ?
बच्चों के इम्तिहान थे, इसीलिए गयी हुई थी ,तुमने यहां क्यों फोन किया ?
उस समय मैं बहुत घबरा गयी थी ,इसीलिए फोन किया था किन्तु अब कोई बात नहीं।
सुनीता को शंका हुई, क्या हुआ है ?कुछ तो बताओ !
हमारे पड़ोस में जो लड़कियां रहती थीं ,उनमें से कुछ लड़कियां पकड़ी गयीं।
क्यों ? पकड़ी गयीं, मैं कुछ समझी नहीं।
सुना है ,कुछ लड़कियां अपने जीवन यापन के लिए ,इधर -उधर जाती थीं।
ओह !माय गॉड !ये क्या हो रहा है ?
तब वहीं रहने वाली एक लड़की ने पुलिस को खबर दे दी !
ये क्या बात हुई ?क्या उसने उसे देखा था ?
मुझे नहीं मालूम !बस इतना जानती हूँ ,वो पकड़ी गयी उसके साथ एक -दो और भी थीं। वो पढ़ने वाली लड़कियां नहीं थीं ,जो अपने को अच्छा कह रहीं थीं ,उन्हें मोहल्लेवालों ने बाहर कर दिया। बहुत बवाल हुआ था। ऐसे हालत देखते हुए तो मुझे लगा, तेरे गांव के लोग सही हैं।
हर कोई सही नहीं होता ,वे भी कहीं न कहीं गलत हैं ,ये सिर्फ पढ़ने वाली लड़कियों के साथ ही नहीं होता ,ये किसी भी जरूरतमंद महिला के साथ भी हो सकता है। फिर चाहे वो गांव की हो या शहर की ,क्या फर्क पड़ता है ?जरूरत इंसान से क्या कुछ नहीं करवा देती ?अब तुम उनके विषय में पता लगाकर,सही -गलत पर लेख लिख सकती हो।