Balika vadhu [57]

देवयानी और सुनीता बातें करते हुए ,वापस हवेली तक आ गईं। तब सुनीता बोली -अच्छा अब मैं चलती हूं। 

आई हो तो, एक-एक कप चाय और हो जाए , कहते हुए, देवयानी ने चाय बनवाने के लिए कह दिया और बोली -कभी -कभी तो आना होता है।  

इंसान कमाता ही इसलिए है, ताकि उसकी आवश्यकताऐं पूर्ण हो सकें, कई बार अपने शौक ,अपना सपना पूर्ण  करने  के लिए भी,वह आगे बढ़ना चाहता है। अच्छा एक बात बताइए ! यह जो इस गांव में,'' बाल विवाह ''का चलन हुआ है, क्या आपकी नजर में सही है ?


उसकी बात सुनकर, देवयानी थोड़ी देर के लिए चुप हो गई और बोली -सही तो नहीं है, किंतु जैसे आजकल, बच्चों का चाल- चलन हो रहा है ,उस आधार पर इस सख्ताई  करने की आवश्यकता है , आपने देखा नहीं, हमारे समय में, हमारे माता-पिता जो कहते थे,हम  मान लिया करते थे किन्तु आज के समय में लड़कियों को कितनी आजादी मिली है ? ऐसा नहीं था, कि पहले लड़कियों को आजादी नहीं थी यदि आजादी नहीं होती, तो'' रानी लक्ष्मीबाई''मान्धाता ,गार्गी ,किरण बेदी ,इंदिरा गाँधी इत्यादि महिलाओं का नाम इतिहास में नहीं होता।'' भारत कोकिला'' के नाम से जानी जाने वाली सरोजिनी नायडू, और न जाने कितनी रानियां, और महिलाओं ने अपने नाम रोशन किए हैं तो क्या उन्होंने अपनी आजादी का अनुचित लाभ उठाया था ?

 कुछ जगहों पर ,कुछ प्रथाएं गलत थीं , तब उनका लोगों ने डटकर विरोध भी किया किंतु आज के समय लड़कियों को जो आजादी मिली हुई है। उसका उन्होंने क्या लाभ उठाया है ? क्या आप बता सकती है ?शराब -सिगरेट पीना ,देर रात्रि तक पार्टियों में जाना। अर्ध रात्रि को घर वापस आना। न जाने, कितने लड़के मित्र हो गए हैं ? क्या कभी आग और फूंस में दोस्ती हुई है ? क्या यह सब सही है ?मैं अपनी इच्छा से कार्य कर रही हूँ ,आप अपनी इच्छा से यहां नौकरी कर रहीं हैं तो क्या आपका, अपने परिवार से कोई संबंध नहीं रहा ?या अपने पति के अलावा भी आपके कई पुरुष मित्र हैं। 

ये आप क्या कह रहीं हैं ?कहने से पहले एक बार सोच तो लीजिये,कि आप किसके विषय में यह सब कह रहीं हैं ,सुनीता को उसकी बात से बुरा लगा। 

तब आप ही सोचिये !आपको सुनकर ही, कितना बुरा लग रहा है ? जब हमारी बेटियां बाहर नौकरी करने जा रहीं हैं, पुरुष भी मित्र बन जाते हैं ,उनके साथ रातभर पार्टियों में रहेंगी ,घूमेंगी तो क्या इस उम्र में बहक  जाना स्वाभाविक नहीं है। कुंवारी ही माँ बन जाती हैं और सिंगल मदर बन घूमती हैं या शीघ्र ही पति  से तलाक ले लेती हैं। क्या हमारी संस्कृति में ,'तलाक़ '' शब्द है ,स्वयं ही उत्तर देते हुए बोली -नहीं है। 

 ऐसी बच्चियों का क्या जीवन होगा ?आपने भी ,अपने जीवन में समझौते किये ,हमने भी किये हैं किन्तु आज भी हम अपने घर- परिवार से जुड़े हुए हैं।' तलाक' जैसा शब्द हमारे जेहन में दूर -दूर तक नहीं आया ,जो भी जैसी भी परिस्थिति रही ,उसी से समझौते भी किये ,और राह भी निकाली, किन्तु आज क्या हो रहा है ?विवाह को सालभर नहीं हुआ कि तलाक के केस चल रहे हैं। झगड़े किनमें नहीं होते ?हर पति -पत्नी में झगड़े होते हैं ,तो क्या हम अपने परिवार से अलग हो गए ?

मुझे रामखिलावन जी के विषय में पता चला था ,क्या वो एक वही कारण था ?जिसके कारण इतना सब परिवर्तन हुआ। 

नहीं, ऐसा नहीं है ,एक आध किस्सा तो अपवाद के रूप में जाना जाता है किन्तु ऐसे किस्से हुए हैं ,तब इस गांव के लोगों ने अपने घर की मान -मर्यादा के लिए यह कदम उठाया। यहाँ की बेटियां और बहुएं सभी पढ़ी -लिखी थीं ,इसका एक उदाहरण तो मैं ही हूँ किन्तु आजकल की बहु को घर में लाना ,तो जैसे-' मुसीबत मोल लेना' समझिये !

मतलब !मैं कुछ समझी नहीं ,क्या हम किसी घर की बहुएं नहीं थीं ?

अभी हमारे यहाँ एक लड़के का विवाह हुआ ,पहले तो लड़की बोली -नौकरी करूंगी ,चलो !इसमें भी कोई बुराई नहीं है ,तब वो बोली -अब अपना अलग घर ले लो !हम वहां रहेंगे। इस बात पर आये दिन क्लेश होता क्योंकि उसे खाना नहीं बनाना है। वे लोग बाहर का खाना नहीं खाते ,न ही मंगवाते ,तब उस लड़की को लगता है ,वह इस घर में आकर बंध गयी है ,अलग रहेगी और खाना नहीं बनाएगी।अब नौकरी भी नहीं करती ,न ही उससे घर के काम होते।  

हाँ ,ये तो है ,सभी आजकल अपने विषय में सोचते हैं ,अब वो दिन तो चले गए ,जब बहुएँ सारा दिन चूल्हे -चौके में लगी रहती थीं। एक पल को भी आराम नहीं। 

ये तुम क्या कह रही हो ?जब परिवार के सभी लोग साथ रहते थे ,तो अन्य सभी बहुएं- मिलजुलकर काम निपटा लेती थीं किन्तु आजकल तो अकेले ही सब करना होता है।अब चूल्हे ही कहां रहे ?अब तो घर -घर गैस के सिलेंडर हैं।  उन बेचारों के तो एक ही बेटा है ,तब क्या अब वो अपने माता -पिता से अलग हो जाये। कल को तुम्हारा बेटा या उसकी बहु ऐसा करें तो तुम्हें कैसा लगेगा ? मैं अकेली हूँ ,पैसा भी है ,यदि बिमार हो जाती हूँ तो तब भी अकेले ही काम करना पड़ता है। नौकर भी रखा तो उसी पर तो घर नहीं छोड़ सकती हूँ। तब मुझे लगता है ,काश !मेरी सास जिन्दा होतीं तो कम से कम बीमारी में तो आराम मिल जाता। 

आपका कथन सही है किन्तु ये बातें भी तभी सुहाती हैं ,जब हमें आवश्यकता होती है। 

नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है,यह बात अपने स्वभाव पर भी निर्भर करती है ,मुझे मेलजोल पसंद है ,तभी तो गांव की अघिकतर महिलाएं आज मेरे साथ जुड़ गयी हैं। 

सुनीता ने घड़ी में समय देखा और बोली -बहुत देरी हो गयी ,हमारी बातें न जाने कहाँ से कहाँ  पहुंच गयी ?फिर कभी मिलते हैं, कहते हुए ,वह उठ खड़ी हुई।बाहर आकर सोच रही थी , हाँ ,वो कुछ हद तक तो सही है किन्तु इस कारण से ,जो लड़कियां आगे बढ़ना चाहती हैं ,जीवन में कुछ करने का स्वप्न देखतीं हैं ,उनके लिए तो नाइंसाफ़ी हो जाएगी। हमारी आने वाली पीढ़ी पाश्चात्य सभ्यता की नकल करती है ,अपने संस्कारों को भूल अपने जीवन को उनके जैसे ही जीने लगी है। क्या छोटे कपड़ों से ही ,आधुनिक दिखना होता है ?जैसे -''खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है ,''उसी प्रकार एक लड़की ऐसे कपड़े पहनेगी तो दूसरी अपने को सूट -सलवार में अच्छा महसूस नहीं करेगी। उसे, उस समय अपने दिन स्मरण हो आये।   

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post