अगले दिन ,परिणीति की कामवाली पुष्पा, घर में आकर परिणीति को बताती है -कि पड़ोसी तिवारी जी के घर में कुछ लड़कियों ने,'' वैलेंटाइन डे ''पर अपने लड़के दोस्तों को बुला लिया था और रात्रि में पार्टी कर रहे थे। जिसके परिणाम स्वरुप यहाँ के पड़ोस के लोगों को दिक्कत हो रही थी और सबसे ज्यादा उनके एक पड़ोसी रमनलाल जी को परेशानी हो रही थी। तब उन्होंने उस घर में जाकर ,उन लड़कों से वह सब बंद करने के लिए कहा - किंतु वह लड़का, उनसे लड़ने लगा और झगड़ा बढ़ गया। बात मार -पिटाई पर आ गई।
तब परिणीति कहती है -रमनलाल जी का भड़कना भी ठीक था। सुबह काम पर जो जाना होता है, और उनके पिता भी बीमार थे। ,जब मैं रात्रि में अपने कमरे की खिड़की से देख रही थी ,तब वही आये होंगे।
तब तो आपने देखा होगा ,क्या हुआ ?
नहीं ,अँधेरे में इतनी दूर से न ही कुछ स्पष्ट दिखलाई दे रहा था और न ही सुनाई दे रहा था ,मैं तो सो गयी थी।तू आगे बता क्या हुआ ?
उन्होंने गुस्से में आकर, उसके तमाचा जड़ दिया। तब तो झगड़ा बढ़ गया, मारपीट भागमभाग होने लगी। तभी मोहल्ले में से किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। कुछ पकड़े गए ,कुछ भाग गए।
तिवारी जी को चोट तो नहीं आई ,हल्की -फुल्की लगी हैं।
वही तो मैं कह रही थी - इस तरह इन लड़कियों को किराए पर मकान नहीं देना चाहिए था।
इसमें तिवारी जी की क्या गलती है ? उन्होंने तो यही सोचकर मकान दिया था कि बेचारी लड़कियों का भला हो जाएगा , वरना लड़कों को भी तो मकान दे सकते थे किंतु आजकल किसी की कौन सुनता है ? इस शहर में नौकरी करने आते हैं , लड़के हों या लड़की ! इस बात से क्या फर्क पड़ता है ? आजकल का चलन ही खराब हो गया है, पुष्पा बोली।
शायद, तुम सही कह रही हो ,कहते हुए परिणीति अपनी रसोई में वापस आई और सोचने लगी -सुनीता भी तो यही कह रही थी। न जाने, लोगों को क्या होता जा रहा है ? पहले समय में लड़कियों पर, औरतों पर कितने अत्याचार होते थे ? कम उम्र में विवाह करके, माता-पिता निश्चित हो जाते थे किंतु जो कुछ भी भुगतना पड़ता था, वह तो उस बेटी को ही भुगतना होता था। जब वह किसी दूसरे के घर की बहू बनकर जाती थी। शिक्षा भी नहीं थी, संपूर्ण परिवार की जिम्मेदारी उस पर होती थी। एक खूंटे से खोलकर दूसरे खूंटे पर बांध दी जाती थी। घूंघट की आड़ में, सिसकती रहती थीं , उनके पति भी उन पर अत्याचार करते थे, मारपीट भी करते थे, यही सब सोचकर ही तो, लड़कियों को शिक्षित किया जाने लगा।
यदि वह असमय विधवा हो गई, तो उसके जीवन का किसी के लिए कोई मूल्य नहीं था, न ही मायके में उसे कोई पूछता था, और न ही, ससुराल में , ताने सुनने को अलग मिलते थे। कितनी दयनीय स्थिति थी ?इसीलिए कुछ समझदार लोगों ने, बेटी की शिक्षा पर जोर दिया। 'विधवा विवाह' पर जोर दिया किंतु आज क्या हो रहा है ? क्या यह उनका मानसिक विकास हो रहा है ? या वे भटक गई हैं। आधुनिकता की दौड़ में, भाग रही है ,शिक्षा तो मात्र एक बहाना है, न जाने किस दिशा में जा रही हैं ? सोच कर ही परिणीति को घबराहट होने लगी, कि कहीं ऐसा ना हो, यह सम्पूर्ण पीढ़ी 'पाश्चात्य सभ्यता' की होड़ करते-करते, न जाने कहां पहुंच जाए ?पहले लड़कियों को, इस तरह किसी भी लड़के से मिलने की इजाजत नहीं थी अब उन्हें आजादी क्या मिली ? इसका दुरुपयोग ही हो रहा है।
सुनीता जब पूनिया गांव में पहुंची, तो गांव में, पतंगी कागजों से बनी हुई, झालर लगी हुई थी काफी गहमागहमी का माहौल था। सड़क के दोनों तरफ, हरे- भरे खेत नजर आ रहे थे। वहां के लोग प्रतिदिन की तरह अपने खेतों में कार्य कर रहे थे। गांव में तो प्रातः काल ही उठ जाते हैं, गांव पहुंचने में, सुनीता को थोड़ी देर हो गई थी किंतु उसने पहले ही, विद्यालय में, देर से आने की सूचना दे दी थी। उसने जब गांव के अंदर प्रवेश किया तो उसने देखा ,गांव में पतंगी कागजों से बनी हुई झालर लगी हुई थी। बच्चे उछल- कूद कर रहे थे, सुनीता सोच रही थी-आज गांव में ऐसा क्या है ? जो इस तरह की सजावट हो रही है। जब सुनीता विद्यालय में पहुंची, तो वहां बच्चों में भी एक अजीब ही उत्साह था। लग रहा था, जैसे आज स्कूल में पढ़ाई नहीं होगी। मन ही मन सोच रही थी, मैं 2 दिन के लिए क्या गई यहां तो काफी परिवर्तन आ गया। तब सुनीता ने एक बच्चे से पूछा -आज विद्यालय में क्या हो रहा है ?
मैडम जी !आपको नहीं मालूम, अब'' बसंत पंचमी ''आने वाली है। गांव के प्रधान जी ने, आज के दिन कुछ प्रतियोगिताएं आयोजित की हैं।
अच्छा, यह मुझे तो मालूम नहीं है।
कल ही प्रधान जी ने, बताया था। हमारे हेड मास्टर जी ने भी, आज पढ़ाई से छुट्टी दे दी है और प्रतियोगिता में जिन बच्चों को शामिल होना है। उनका नाम भी कल ही लिखवा दिया गया है।
ठीक है, तुम जाओ! कहते हुए सुनीता प्रधानाध्यापक के कक्ष की ओर बढ़ चली।
क्या मैं अंदर आ सकती हूं ? सुनीता ने प्रधानाध्यापक से इजाजत ली।
ओह ! मैडम जी आईये !
सर ! यह कैसी प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है ?
अचानक ही प्रधान जी ने, घोषणा की,' बसंत पंचमी' के आने से पूर्व, गांव के सभी बच्चों में प्रतियोगिता की जाएगी और जो भी बच्चा श्रेष्ठ आता है, उसको इनाम भी दिया जाएगा।
यह तो अच्छी बात है, लेकिन बच्चे तो ज्यादातर खेलने में ही ध्यान रखते हैं, शिक्षा में तो कम ही रहता है।
ऐसी प्रतियोगिताओं से बच्चों में उत्साह बढ़ता है, बच्चों का मानसिक ही नहीं, शारीरिक विकास भी आवश्यक है इसीलिए मैंने भी अपने विद्यालय के छात्रों को उस प्रतियोगिता में शामिल होने की इजाजत दे दी है। गांव वालों को पता भी तो चलना चाहिए, कि बच्चे उन्हीं के गांव के हैं किंतु हमारे विद्यालय के छात्र भी, कम नहीं है।
इसका मतलब इस प्रतियोगिता में,एक ही गांव के बच्चों में प्रतियोगिता होगी। हमारे विद्यालय का कोई योगदान नहीं है।
हमारे विद्यालय के छात्र इन प्रतियोगिताओं में भाग ले रहे हैं,क्या यही योगदान नहीं है ? कहते हुए प्रधानाध्यापक जी मुस्कुराते हुए बोले -आस -पास के गांव के कुछ होनहार छात्र भी आ रहे हैं।