Balika vadhu [49]

सुनीता, परिणीति के पास से जा चुकी थी, उसे अगले दिन, अपने विद्यालय जो जाना था। कहीं हद तक परिणीति भी उसके विचारों से सहमत तो थी किंतु उसका दिल कुछ कहता था और दिमाग कुछ और कहता था। सही- गलत के झूले में झूल रही थी।  वह मानती थी, कि जो कुछ भी हो रहा है गलत तो है ही रात्रि में जब वह सो रही थी, अचानक ही शोर- शराबे की आवाज सुनकर उठ गई थी। उसने आने कमरे की खिड़की से झांक कर देखा ,पड़ोस के मकान में, कुछ लड़कियां रहती हैं जो नौकरी भी करती हैं और पढ़ती भी है। 


अपने घर परिवार से दूर, यह लड़कियां जीवन में कुछ करने के लिए, कुछ बनने के लिए यहां आई हैं, तिवारी जी ने, यह मकान उन्हें दे तो दिया, सोचा था- घर की देखभाल भी हो जाएगी और लड़कियों को आवास भी मिल जाएगा उनका थोड़ा किराया बन जाएगा क्योंकि तिवारी जी इस शहर में नहीं रहते वह दूसरे शहर में नौकरी करते हैं किंतु यह 'पैतृक सम्पत्ति' के रूप में मकान उनका है अपने मां-बाप की निशानी के रूप में, उन्होंने इस घर को किसी को बेचा नहीं बल्कि उनका इरादा, सेवानिवृत होने के पश्चात अपने निवास में आकर बसने का है। पुराने समय का बना हुआ है, काफी बड़ा घर है, जिसमें आठ से दस लड़कियां रहती हैं किंतु उन्हें यह मालूम नहीं था कि ये लड़कियां यहां लड़कों को लेकर भी आ सकती हैं क्योंकि मकान- मालिक तो यहां रहते नहीं हैं। आज भी उसी घर में शोर-शराबा हो रहा था।

 परिणीति अपने घर की खिड़की से यह सब देख रही थी कुछ लड़के और लड़कियां पार्टी कर रहे थे। यह कैसी पार्टी हो रही है ? उसने जानना चाहा, फिर मन ही मन सोचा -शायद, किसी का जन्मदिन होगा। जब लड़कियां नौकरी करती हैं या पढ़ती हैं तो साथ में लड़के भी दोस्त बन ही जाते हैं उनको भी निमंत्रण दिया होगा किंतु रात्रि के 12:00 बजे इस तरह के उन लोगों का, कोलाहल करना उसे पसंद नहीं आ रहा था ,उसे क्या अन्य पड़ोसी भी, उनकी इन हरकतों से परेशान थे। 

तभी एक छाया उसे,उसी घर की ओर बढ़ती दिखलाई दी परिणीति का कमरा दूसरी मंजिल पर था।  इसीलिए उसे, उस मकान की सभी प्रतिक्रियाएं दिखलाई दे रही थीं । पहले तो वह साया इधर -उधर टहलता रहा।उसके पश्चात उसने, उस घर की, घंटी बजाई, इतने शोर में पहले तो किसी ने सुना ही नहीं, कुछ देर पश्चात, एक लड़का उस घर का मुख्य द्वार खोलने गया। इतनी दूरसे इतना तो आभास हो रहा था कि वह साया किसी इंसान का ही है और वो उस द्वार खोलने वाले से कुछ कह रहा है। मुख्य द्वार पर रोशनी भी नहीं थी, और शोर भी बहुत ज्यादा था। इसी कारण कुछ भी, स्पष्ट सुनाई नहीं दे रहा था किंतु यह अवश्य पता चल रहा था कि उस व्यक्ति का किसी से जोरदार झगड़ा हो रहा है क्योंकि कुछ देर पश्चात ,वहां से गाने की आवाजें भी आनी बंद हो गयीं थीं। 

 परिणीति ने सोचा -हो सकता है , हमारे ही कोई पड़ोसी होंगे। कई लोगों को, दफ्तर समय पर जाना होता है इतनी देर रात्रि में नींद खराब हो जाती है इसलिए उन्हें मना करने के लिए आए होंगे। कुछ देर तक तो परिणीति इसी तरह देखती रही फिर वापस जाकर अपने कानों में रुई लगाकर, सो गई।

 न जाने पार्टी कब समाप्त हुई ? तब क्या हुआ ? वह नहीं जानती, प्रातः काल जब उठी,उसकी निगाहें स्वतः ही,खिड़की से बाहर चली गयीं। वहां पर बहुत सूनापन नजर आया कोई भी दिखलाई नहीं दे रहा था। परिणीति अपने घरेलू कार्यों में व्यस्त हो गई। जब परिणीति की कामवाली पुष्पा आई , तो बोली -दीदी जी क्या आपको मालूम है , रात्रि में क्या हुआ ?

क्या हुआ ? परिणीति अनभिग्यता से बोली। 

आपकी ही पड़ोस में, रात पुलिस आ गई थी, बहुत झगड़ा भी हुआ एक -दो को तो चोट भी आ गई। 

क्या बात कर रही है ? परिणीति ने सब्जी काटत रही थी ,वह अपनी तरकारी लेकर रसोई से बाहर आकर अचानक पुष्पा के पास आकर खड़ी हो गई , वह जानती है, यह आसपास की कई घरों में काम करती है इससे आसपास की ताजी खबरें मिल जाती हैं। पड़ोस में कोई पार्टी हो रही थी, तिवारी जी वाले घर में ही तो पार्टी हो रही थी।  

हां, उसे तो मैंने भी देखा था, मेरी भी नींद खुल गई थी। पता नहीं, बच्चों ने कितना हो- हल्ला मचाया हुआ था ? शायद किसी का जन्मदिन होगा। 

नहीं, दीदी जी ! वह जन्मदिन की पार्टी नहीं थी, आज कल एक अंग्रेजी त्यौहार चल रहा है ,जिसमें लड़के लड़कियों को फूल देते हैं, वह जो कई दिनों तक चलता रहता है जिसमें लड़का -लड़की एक -दूसरे को चॉकलेट,और भी न जाने क्या -क्या  उपहार देते रहते हैं। बस वही वाली पार्टी थी। 

ओह्ह्ह ! '' वैलेंटाइन डे ''मैं तो यही समझ रही थी, शायद किसी का जन्मदिन होगा। हम लोगों में तो ज्यादातर किसी के जन्मदिन पर किसी की विवाह पर या किसी तीज - त्योहार पर ही, ऐसे कार्यक्रम करते हैं। 

हां वही तो....... न जाने यह लड़के- लड़कियों ने आजकल,क्या नया चलन चलाया है , सुना है, यह कोई विदेशी त्यौहार है जो कि हमारे, यहां के बच्चे भी मनाने लगे हैं । कितने ताज्जुब की बात है ? हमारे बच्चों को, होली, दिवाली या दशहरा इसके सिवा और कोई तीज - त्यौहार याद ही नहीं है और न ही उनके विषय में जानते हैं कि कब और क्यों मनाया जाता है ? और इन लोगों को  एक-एक दिन याद रहता है, आज चॉकलेट लेनी है, और आज गुलाब मिलना है। 

बस बच्चे मस्ती करते रहते हैं , परिणीति उसकी बातों पर ध्यान न देते हुए बोली -तुम यह बताओ ! आखिर वहां क्या हुआ था।

 वही तो बता रही हूं, सुना है, वह लड़कियां, अपने लड़के दोस्तों को भी लेकर आईं थीं।  बच्चे खूब धूम -धड़ाके से वह त्यौहार मनाने लगे। अब उस घर में कहने -सुनने को कोई बड़ा तो है, नहीं। जो जी में आता है करते हैं, जो नहीं भी करते हैं ,वह देख -देखकर सीख जाते हैं और इतना ही नहीं, पूरा सप्ताह पार्टी मनाने का कार्यक्रम था। दो दिन तो आराम से कट गए थे किंतु उन्हें तब भी मजा नहीं आया। तब उन्होंने धूम -धड़ाके से मस्ती का कार्यक्रम बनाया। आपके पड़ोसी रमन लाल जी है ना.... वह तो सुबह दफ्तर जाते हैं, उन्हें बहुत परेशानी हो रही थी और उनके पापा भी बीमार चल रहे थे। इस कारण वह उन बच्चों से मना करने के लिए, गए थे। वहां एक लड़के ने शराब के नशे में, उनसे तू -तड़ाक करके बात की। वह भी भड़क गए। 

 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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