Balika vadhu [48]

सुनीता, परिणीति को, रामखिलावन की कहानी सुना कर, उसको उन परिस्थितियों से अवगत करा रही थी जिनको की परिणीति समझना ही नहीं चाहती थी, वह अपने तर्क पर तर्क दिए जा रही थी। तब सुनीता उससे बोली -मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि तुम कैसी सोच रखने लगी हो ?अभी तो कुछ देर पहले कह रहीं थीं ,कि बच्चा यदि गलती करता है तो हम बड़े किसलिए हैं ? हर समाज के कुछ अलग ही कायदे- कानून होते हैं, जिनके अनुसार समाज चलता है और उस समाज में रहने वाले सभी लोगों को, उस नियम का पालन करना होता है। बड़े लोगों ने, कुछ सोच- समझकर ही यह नियम बनाए हुए होते हैं। इस तरह हर कोई नियम तोड़ने लगा तो वह समाज बिखर जाएगा। दूसरों को कहना आसान होता है, किंतु जब स्वयं पर बितती है तब इंसान को पता चलता है, कि क्या गलत हुआ है ? वह समाज का डर ही तो, इंसान को नियम और कायदे कानून में बांधे रखता है वरना हर कोई अपनी मर्जी से अपना जीवन जिएगा। कोई कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है। 


तब यह सही गलत का निर्णय  कैसे होगा ? क्या सरस्वती ने जो कार्य किया? वह सही था ,परिणीति  तुम कह सकती हो, उसकी दृष्टि में वह सही थी  किंतु माता-पिता की दृष्टि में गलत थी । इसी प्रकार माता-पिता अपनी तरफ से, अपनी दृष्टि में सही थे। समाज के द्वारा बनाये गए, कायदे- कानून के अनुसार चल रहे थे।  उस समाज का डर, उसके साथ उनका मान -सम्मान भी जुड़ चुका था ,जो रामखिलावन को ले गया।मनुष्य को, एक न एक दिन मरना तो है ही। बहुत बड़े-बड़े राजा- महाराजा हुए हैं, जो अपने स्वाभिमान, आत्मसम्मान की रक्षा के लिए मर मिटे हैं। शिक्षा हमें कमजोर नहीं करती, बल्कि सोचने - समझने का दायरा परिष्कृत करती है , किंतु यह भी कहा जाता है, उस शिक्षा के माध्यम से किसी का अहित नहीं होना चाहिए। देश भी तो नियम और कायदे कानून से ही चलता है वरना सबकी अपनी- अपनी जिंदगी है ,कोई भी बंधनों में नहीं रहना चाहता और तुम्हें पता है, रामखिलावन के जाने के पश्चात,प्रेम को ,अपने पिता की मेज की दराज में एक कागज मिला था जिसमें उसने लिखा था -कि मेरा मान- सम्मान मुझे प्रिय है , उसके बिना मैं जीना नहीं चाहता इसलिए मैं जा रहा हूं।

यानि कि उसने आत्महत्या की थी ,परिणीति चौंकते हुए बोली -आत्महत्या करना अपराध है ,क्या यह बात तुम नहीं जानती हो ?  

जानती हूँ ,किन्तु उसे इस अपराध से भी ऊपर अपना सम्मान नज़र आ रहा था।क्या, यह इतनी बड़ी बात नहीं है ? जिन माता-पिता ने अपना संपूर्ण जीवन अपने बच्चों की परवरिश में लगा दिया और वह इस तरह से निकल गया, जैसे वह उसे पहचानता ही नहीं। 

यह सब एक लड़की ही नहीं लड़का भी तो कर सकता है , यदि यही कार्य कोई लड़का करें, तो उसको तो कोई कुछ नहीं कहेगा, परिणीति चहकते हुए बोली।

एक लड़की ,या उस घर की लक्ष्मी से, उस घर का मान -सम्मान जुड़ा होता है। इज्ज़त काँच की तरह नाजुक होती है ,जरा सी ठेस लगी नहीं कि चटक जाती है। लड़के से भी मान -सम्मान जुड़ा होता है किन्तु बेटी तो कोहिनूर होती है जिसकी देखभाल ,सुरक्षा अत्यंत आवश्यक है।इसी कारण उससे मान -सम्मान को जोड़कर देखते हैं। 

तुम तो उस गांव के लोगों के साथ रहकर उनके जैसी ही सोच रखने लगी हो ,तुम पढ़ी -लिखी होने के पश्चात भी ऐसी सोच रखती हो। 

इसमें पढ़ाई- लिखाई कहाँ से आ गयी ? यही तो हमारे संस्कार हैं जो हमें मजबूत बनाते हैं ,जिनके कारण हम स्वाभिमान से जीते हैं। 

अरे। छोडो भी ये बातें !आजकल इतना ध्यान कौन देता है ?

 नहीं देता है ,तो देना चाहिए ,हम ही नहीं आजकल की आने वाली पीढ़ी भी ,अपने बड़ों का अनुसरण नहीं कर रही है वरन पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर ही, ऐसे कदम उठाती है। अपने रीति -रिवाज़ तो उन्हें ढकोसले नजर आते हैं। उन्नति के नाम पर न जाने कहाँ से कहाँ जा रहे हैं ?

 तुम ये सब भाषण छोडो ! अब तुम आगे बताओ !ऐसी और कौन  सी घटना ,उस गांव में घटी ?जो उस गांव की पंचायत को ऐसे  निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया। 

जो भी हुआ है ,आजकल तो सभी जगह हो रहा है ,किन्तु कुछ लोग देखकर भी अपनी आँखें मूँद लेते हैं तो कुछ नजरअंदाज कर देते हैं ,इन पचड़ों में पड़ना ही नहीं चाहते। इसे वे ,अपना समय के साथ बदलाव कहते हैं। घड़ी में समय देखते हुए सुनीता बोली - अब मुझे जाना होगा , बहुत समय हो गया। कल मुझे विद्यालय भी जाना है फिर कभी आती हूँ। अभी तुम मेरे गांव में मत आना क्योंकि वहां के लोगों को पता चल गया है कि यह सम्पूर्ण कारस्तानी तुम्हारी ही रही है इसीलिए तुमसे नाराज भी हैं ,वो तो इतने दिनों से मैं उस गांव में रह रही हूँ इसीलिए उन्होंने मुझे सिर्फ तुम्हें समझाने के लिए कहा। 

समझाने के लिए ही या फिर चेतावनी दी है। तुम और मैं तो पढ़े -लिखे हैं ,समझ सकते हैं, कहते हुए सुनीता हंसने लगी और चली गयी। 

उसके जाने के पश्चात ,परिणीति सोचने लगी -कुछ लोग गलत कार्यों को होते देखकर भी, चुपचाप उसे होते  देखते रहते हैं क्योकि इन बड़े -बड़े शहरों में कोई कहीं से आया है तो कहीं से। साथ रहते हैं , किन्तु एक -दूसरे को जानते नहीं, कोई रिश्ता भी नहीं होता , जिसके कारण किसी का लिहाज करें। सब अपनी ही एक अलग दुनिया बना लेते हैं और अपनी शर्तों पर अपनी दुनिया में ही मस्त रहते हैं। यह सब इसी कारण से तो हो रहा है, कमाने के लिए अपने घर से दूर, अपने लोगों से दूर, रहते हैं और धीरे-धीरे उस वातावरण के आदी हो जाते हैं।

रात्रि में परिणीति आराम कर रही थी, अचानक ही शोर- शराबे के कारण उसकी नींद खुल गई। आवाज से वही लेटे -लेटे वह पहचान गई। कि पड़ोस के फ्लैट में ही, कुछ लड़के -लड़कियां यहां रहते हैं। वही ऐसी हरकतें करते रहते हैं। न जाने, वहां क्या हो रहा है ?सोचकर बिस्तर से उठी और अपनी  खिड़की में आ गयी।खिड़की से उसने देखा-''  तेज स्वर में गाने की आवाज आने लगी। परिणीति ने घड़ी में समय देखा, रात्रि के 12:00 रहे थे। यह लोग इस समय भी जाग रहे हैं और पार्टी कर रहे हैं। इन्हें इतना भी ध्यान नहीं, कि इससे पड़ोसियों को कितनी दिक्कत हो रही होगी ? इनके मकान -मालिक स्वयं तो यहां रहते नहीं है और किराए पर कुछ लड़के -लड़कियां छोड़ रखे हैं। जब वह लोग यहां आए थे, तो हमने उनसे कितना कहा था ? कि इस तरह लड़के लड़कियों को, मकान देना उचित नहीं है। हमारे बच्चे भी यहां रहते हैं , जब वे उन्हें इस तरह की हरकतें करते देखेंगे तो उन पर क्या असर होगा ? 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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