सिया का जब से विवाह हुआ है ,तबसे ससुराल में आकर, अपनी घर -गृहस्थी में रम गयी। अपने मायके में उसका जाना कम ही हो पाता। चलते समय माँ ने कहा था -''ससुराल जा रही हो ,वहां अच्छे से रहना ,कभी लड़कर यहाँ मत आना ,अब वही परिवार तुम्हारा अपना है।''
माँ !ये क्या कह रही हो ?और ये परिवार !कहते हुए सिया ने पूछा
बेटा ! ये घर भी, तुम्हारा अपना है किन्तु सबसे ज़्यादा वही घर अब तुम्हारा अपना होगा ,उसी को सजाना -संवारना ,उस घर के सुख -दुःख तुम्हारे अपने होंगे,यही सच्चाई है।
सिया माँ की सीख़ लेकर ससुराल आ गई और उस घर को ही नहीं, घरवालों को भी अपना बना लिया। सही तो है किसी को अपना बनाने के लिए, कुछ त्याग करने पड़ जाते हैं। मायके में कम ही आना होता किन्तु जब आवश्यकता पड़ती तो दोनों ही पति -पत्नी साथ खड़े दिखलाई देते।
सिया के भाई सौरभ का जब विवाह हुआ तो दोनों ही पति पत्नी, विवाह के कार्यों में हाथ बटाने पहुंच गए थे। तब सिया ने उसकी पत्नी शालिनी से कहा था -अब यह घर तुम्हारे हवाले है, मैं तो कभी-कभी मेहमान की तरह आया करूंगी।
शालिनी ने भी मुस्कुराकर जबाब दिया -जी, दीदी ! जब आपकी इच्छा हो, आप कभी भी यहां आ सकतीं हैं ,ये परिवार आपका भी है ,जब इच्छा हो, चली आना।
भाभी, के कहे-' ऐसे शब्द सुनकर ,सिया तो जैसे धन्य हो गई और खुशी-खुशी अपने घर वापस आ गई। अक्सर सिया अपनी मम्मी से और पिता से घर पर बात करती रहती। भाई- भाभी के भी हाल-चाल पूछती रहती।
उसके भतीजा हुआ है यह सुनकर वह बहुत खुश हूं और उसे देखने के लिए अपने घर पहुंच गई किंतु वहां जाकर देखा, तो भाभी के तेवर बिल्कुल बदले हुए थे। सिया को देखकर उसे खुशी नहीं हुई बल्कि चुप हो गईं। अपनी बहन को बुला लिया था अक्सर उससे चुपचाप बातें करती रहती , न जाने दोनों बहनों में क्या बातें होती रहतीं ?
सिया शालिनी से बोली -भाभी ! ऐसी अवस्था में तुम्हें ज्यादा बातें नहीं करनी चाहिए बल्कि आराम करना चाहिए। उसने सिया की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। अक्सर जब उसका बेटा रोता तो वह दूध के लिए या किसी भी कार्य के लिए अपनी बहन से ही कहती।
शालिनी का ऐसा व्यवहार देखकर सिया ने उससे कहा -भाभी ! यह तुम ठीक नहीं कर रही हो। तुम उनसे क्यों काम करा रही हो ? वह कुछ दिन के लिए आपसे मिलने आई हैं और तुम काम करा रही हो, मुझे बता दीजिए कि क्या करना है ?मैं इसकी बुआ हूँ ,मैं करूंगी।
तब शालिनी अधिकार से बोली -वह मेरी बहन है, मेरा उस पर हक बनता है मैं उससे जो चाहे करवा सकती हूं आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए यदि आपको मेरी बहन के यहां रहने से आपत्ति है, तो आप भी जा सकती हैं।
शालिनी के, ऐसे शब्द सुनकर,सिया बहुत दुखी हुई , उसे अपनी छोटी भाभी से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसा व्यवहार करेगी। सिया ने उसकी बहन के सामने तो कुछ नहीं कहा, कुछ दिन रहने ,के पश्चात उसकी बहन चली गई थी।
तब सिया ,शालिनी से बोली -भाभी ! यह मत भूलो कि यह परिवार मेरा भी है, तुमसे पहले मैं इस घर की बेटी रही हूं, मैंने अपने जीवन के 25 साल यहां व्यतीत किए हैं। यह परिवार मेरा भी है, हां यह बात अलग है कि मेरा विवाह हो गया है किंतु बेटी का अपना घर हमेशा रहता है। आज तुम्हारे इन शब्दों ने मुझे बहुत कष्ट दिया है कल को यदि तुम्हारी भाभी भी, तुमसे यही कहे तो तुम्हें कैसा लगेगा ? मुझे नहीं पता था ,तुम इतनी जल्दी बदल जाओगी। कायदे से देखा जाये, तो भाई -भाभी और भतीजा ये भी मेरा ही परिवार है। इस सच्चाई को ,इस रिश्ते को ,न ही आप और न ही समाज का कोई इंसान बदल सकता है। ये खून के रिश्ते हैं ,जिन्हें ऊपरवाले ने ही, बनाकर भेजा है। अब ये तुम पर निर्भर करता है कि तुम इस रिश्ते की सच्चाई को जितना शीघ्र समझ सकती हो समझ जाओ !इसको झुठलाया नहीं जा सकता।