Sweater or shawl

कड़क ठंड में ,स्वेटर ही नहीं, शॉल भी चाहिए। 

साथ में गरमा- गरम चाय -पकौड़ा भी होना चाहिए।

थरथर कांपता बदन, जीवन संघर्षों को अग्नि चाहिए।

 जज़्बा ! जो बढ़ा सके , ऐसा ताप होना चाहिए। 

मन खुश रहना चाहता, खुशियां बांटने वाला होना चाहिए। 

उत्साहित हो मन,सोचता -काँपती ठंड में किसी को सहारा चाहिए। 

सोचा,किसी दीन को दें, स्वेटर-शॉल! भार कम होना चाहिए। 

पूछा- किसी दीन से, तो बोला -मुझे भीख़ नहीं काम चाहिए।


 कब तक दूजे के दया पर पलता रहूंगा?

दीन -हीन बना रहूंगा,जीवन में परिवर्तन चाहिए।

लोगों से दया की'' उम्मीदें '' करता रहूंगा। 

अब मुझे किसी की 'उम्मीद' बनना चाहिए।

 

 बुराइयों सा ,स्वेटर लिपट जाता अंगों से,

तालमेल को, ढकने के लिए शॉल होना चाहिए। 

 कर्म करते ये हस्त !,शीत में हिम हुए जाते हैं। 

इन मेहनतकश मजदूरों को शॉल की उष्मा चाहिए। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post