इंस्पेक्टर विकास खन्ना ने,यहाँ आकर नीलिमा का, मूड खराब कर दिया। वह तो चंपकलाल और डॉक्टर पूजा को मिलना चाहती थी किंतु विकास खन्ना के प्रश्नों के कारण ,उसका मन विचलित हो उठा।मन अजीब सी कड़वाहट से भर गया। न जाने, कितनी यादें आँखों के सामने चलचित्र की तरह आती चलीं गयीं। चंपकलाल जी को भी फोन करना था किन्तु आज नहीं, फिर कभी फोन करूंगी, यह सोचकर, वह आराम करने के उद्देश्य से वहीं सोफे पर निढाल हो गई। किसी भी कार्य में मन नहीं लग रहा था, तभी कल्पना का फोन आया, न जाने किसका फोन है ?सोचते हुए, नीलिमा उठी और उसने फोन उठाया -हेलो !
हेलो मम्मा ! यह इंस्पेक्टर हमारे पीछे क्यों पड़ा है ?
कल्पना का यह प्रश्न पूछते ही, नीलिमा में जैसे जान आ गई और बोली-क्यों, क्या हुआ ?
इंस्पेक्टर साहब, तुषार से मिलने गए थे , वहां तुषार को न जाने क्या-क्या बता दिया ? और न जाने क्या-क्या पूछ रहा था ?
इंस्पेक्टर ने तुषार को क्या बताया ?
यही की चांदनी ही चंपा है , तुषार मुझसे प्रश्न कर रहे थे,' कि तुमने इतनी बड़ी बात मुझसे क्यों छुपाई ? तुम चांदनी को पहले से ही जानते थीं, कि वह तुम्हारे घर की नौकरानी थी।'
तो क्या हुआ? ऐसी कौन सी बड़ी बात हो गई ? उसी के सम्मान के लिए, हमने उससे वह बात छुपाई थी। ताकि उसको अपना अपमान महसूस न हो ताकि उसे यह न लगे कि हम चांदनी की इस बात का लाभ उठा रहे हैं। तुम तो जब बहुत छोटी थीं। शिवांगी को तो उसकी शक्ल भी याद नहीं थी,उसकी हरकतों के कारण शिवांगी को हमें बताना पड़ा न..... यदि उस बात को बता भी देते तो क्या हो जाता ? क्या उसके पिताजी उसका रिश्ता नहीं रहता ? तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है , यदि तुषार,कुछ ज्यादा कहता या पूछता है तो मुझे फोन कर लेना, मैं उसे जवाब दूंगी।
ठीक है, वैसे इंस्पेक्टर को यह बात कैसे पता चली ? बहुत ही तहकीकात हो रही है।न जाने कौन से'' गढ़े मुर्दे उखाड़ने'' में लगा है ?
मेरे पास भी तो आया था, वह चम्पा को पहले से ही जानता था ,क्योंकि उस समय इंस्पेक्टर हरिद्वार में भी था, इसने ही तेरे पापा का केस संभाला था ? यह समझना चाह रहा था- कि आखिर चांदनी का चेहरा उसे जाना -पहचाना सा क्यों लग रहा है ? मैंने,उसका जवाब दिया था।
आपके कारण, उसे यह बात पता चली।तभी तो मैं सोचूं ,आख़िर किसने उसे ये जानकारी दी होगी ?
तो क्या हो गया? यह बात पता चलने से,वह हमें जेल में तो नहीं डाल देगा।
किन्तु हम उसके शक के घेरे में आ सकते हैं ,वह तो शिवांगी के विषय में भी कह रहा था, कल्पना ने बताया।
क्या कह रहा था ? नीलिमा हड़बड़ा उठी,और बोली-मैंने तो उससे पहले ही कह दिया था ,कि मेरी बेटी को इस सब में मत घसीटना किंतु वह इंस्पेक्टर माना ही नहीं , वैसे उसने शिवांगी के विषय में क्या कहा ?
यही कह रहा था, कि चांदनी को तुम पसंद नहीं थी और वह शिवांगी को पसंद करती थी।
वह तुम्हारी नौकरानी है न, दमयंती ! उसने मुंह खोल होगा। इंस्पेक्टर अपने केस के लिए कुछ भी पूछ सकता है किंतु तुम्हें संभाल कर रहना होगा। ऐसी कुछ भी बात मुँह से न निकले कि उसे तुम पर शक हो जाये ।
ऐसी कुछ बात है ही नहीं , तो शक गुंजाइश ही नहीं रहती है।
इन सब बातों को छोड़ो ! जैसे जीवन चल रहा है, आराम से ऐसे ही चलने दो ! ज्यादा छेड़खानी करने की आवश्यकता नहीं है। वह जहां भी गई होगी अपने आप आ जाएगी।
मम्मा ! उसे गए हुए बीस दिनों से ज्यादा हो चुके हैं, कहीं कुछ हो तो नहीं गया।
अब यह मैं कैसे कह सकती हूं ? समय का कुछ पता नहीं चलता, कई बार ऐसा होता है,'' इंसान बदला नहीं ले पाए तो कुदरत उससे बदला ले लेती है।''
क्या मतलब ?
अब तुम आराम करो ! मतलब मत ढूंढो ! और ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। क्या तुम जानती हो ? तुम्हारी जो डॉक्टर थी ,पूजा ! वह हमारी संस्था के चंपकलाल जी की, प्रेमिका थी, मुस्कुराकर उत्साहित होते हुए, नीलिमा बोली।
क्या कह रही हैं ? क्या सच में ! यह बात, आपको कैसे पता चली ?
चंपकलाल जी की कहानी संस्था में हर कोई जानता है , उन्होंने कुछ भी नहीं छुपाया था क्योंकि वह चाहते थे, उनका बेटा उनके पास, उनके घर आ जाए किंतु पूजा तो गायब ही हो चुकी थी। जब वह तुम्हारे केस के सिलसिले में यहां आई थी, तभी मेरा ध्यान उस ओर गया कि कहीं यह चंपकलाल की पूजा तो नहीं और एक दिन मैंने पूछ ही लिया। देखो ! कैसा संयोग है ? इसे कहते हैं, जब कुदरत को मिलवाना होता है तो वर्षों पश्चात बिछुड़े भी मिल जाते हैं।
अब आप क्या करेंगीं ?
करना क्या है ? जीवन में कुछ अच्छे कार्य भी कर लेने चाहिए कहते हुए हंसी और बोली -दोनों को मिलवा देंगे , बेचारों का इस उम्र में साथ हो जाएगा।
आप सही कह रही हैं , कितना अंतर आ जाता है ? जब हम बुरा सोचते हैं तो कितनी नकारात्मकता बढ़ जाती है, और जब सकारात्मक विचार आते हैं तो सब कुछ अच्छा लगने लगता है ,मन भी खुश हो जाता है।
इसीलिए तो मैं ज्यादातर, अपनी बेटियों के लिए अच्छा ही सोचती रहती हूं और तुम अपने तुषार को भी समझा देना, जिंदगी में न जाने कितने ऐसे लोग आएंगे और जाएंगे , उनके अनुसार हमें जिंदगी नहीं चलानी है , हमें अपने लिए ,अपने अनुसार जिंदगी जीनी है , जिसमें प्यार और सकारात्मकता हो।
ठीक है, मम्मी ! अभी फोन रखती हूं , ऐसी बातें हम सोच सकते हैं ,हम अपने पर अमल कर सकते हैं, किंतु दूसरे को अपने विचारों से या अपने व्यवहार को बदलने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
वह तो तुम ठीक कह रही हो, किंतु प्रयास करते रहना चाहिए। अच्छा चलो ! तुमसे बात करके मुझे अच्छा लगा, मेरा मूड भी ठीक हो गया अब मैं चंपकलाल जी से बात करके देखती हूं ,क्या होता है ?
ओके, मम्मा , बाय !
हेलो, चंपकलाल जी ! क्या आप अपने परिवार से मिलने के लिए बेताब हैं ?
बहुत ही बुरी तरह से...... यूँ समझ लो !एक- एक पल बिताना कठिन हो रहा है।
उसकी बात सुनकर नीलिमा जोर-जोर से हंसने लगी और बोली - कैसे मिलना चाहेंगे ?
क्या, वह भी मुझसे मिलना के लिए आतुर है ?
यह तो नहीं कह सकती, अभी वह अपनी पिछली बातों को भुला नहीं पाई है। हां यह हो सकता है यदि आपको देख ले, तो शायद ,पिछली बातों को भूलाने का प्रयास करें या अपनी शिकायतें सुनाकर अपने मन की भड़ास निकाले।''गलती की है ,तो उसको स्वीकारने का साहस भी रखिये !''अपनी गलती तो मानते हैं या नहीं। यदि आपको,अपनी पूजा से मिलना है ,तो इसके लिए थोड़ा सा प्रयास तो आपको भी करना होगा।
कैसा प्रयास ? अब मैं उसे वापस बुलाने के लिए, कुछ भी कर सकता हूं।
कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है, बस आपको यहां आना है , मैंने एक योजना बनाई है, आप मेरे कहे अनुसार उस स्थान पर सही समय पर पहुंच जाइएगा। देखते हैं, यह योजना कामयाब होती है या नहीं ! मैं अपना कर्तव्य निभा रही हूं। बाकी तो ऊपर वाले के हाथ है, यदि उसे मिलाना होगा तो पूजा के दर्द को कम कर ही देगा , उस दिन मैं आपको फोन करूंगी।
ठीक है, मैं इंतजार करूंगा कह कर चंपकलाल ने फोन रख दिया।