न जाने, यह कातिल कौन है? जो दिन पर दिन हमारी परेशानी बढ़ाता जा रहा है। परेशान होते हुए, कपिल बड़बड़ाया - न जाने, वह क्या चाहता है, क्यों इन लड़कियों का दुश्मन बना हुआ है? अभी वह यही सोच रहा था तभी उसके फोन की घंटी बजी। मन ही मन सोच रहा था-अब न जाने, क्या मुसीबत आने वाली है? उधर से एक आवाज आई -कैसे हो ?
इस आवाज को वह अच्छे से पहचानता है, चाहकर भी नहीं भूल सकता।इस आवाज़ को सुन, थोड़ी देर के लिए वो अपनी परेशानी भूल गया था । तपती धरा पर जैसे जल की कुछ बूंदें ,पड़ी हों ,ये स्वरा की आवाज थी। उसकी आवाज को वह महसूस करना चाहता था किंतु जब स्वरा के व्यवहार को स्मरण करता है और सोचता है तो खुशी के साथ-साथ कहीं न कहीं उसका दर्द भी छलक आता है।तुम बताओ ! कैसा हो सकता हूं ? कपिल ने पूछा।
कुछ परेशान हो, क्या ?
नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं है।
परेशान नहीं हो तो कुछ कार्य कर रहे हो।
कार्य तो नहीं कर रहा, पर सोच रहा हूं, एक केस ही ऐसा आया है।
कभी -कभी अपनी दुनिया से बाहर निकलकर इधर -उधर भी देख लिया कीजिये , यह परेशानी तो उम्रभर ही रहनी है, पुलिस की नौकरी जो की है।उससे अलग भी तुम्हारी एक अलग दुनिया है।
शायद, तुम सही कह रही हो, किंतु तुम्हें तो पुलिस वाला ही पसंद था ना...... कहते कहते वह रुक गया।
सिर्फ पुलिस वाला ही होना ही सब कुछ नहीं होता, उसे एक अच्छा पति भी बनना होता है।
तुम्हारा पति बनने की पहली शर्त तो यही थी। तुम क्या कहना चाहती हो? क्या एक पुलिस वाला बेहतर पति नहीं हो सकता ? खैर छोड़ो !तुम क्या जवाब दोगी ?वह बेहतर पति भी हो सकता है किन्तु तब, जब उसकी पत्नी उसका साथ दे ,उसका साथ निभाए।
तुम निभाने ही कहां देते हो ?हमेशा अपनी ही परेशानियों में उलझे रहते हो, मुझे बताते तक नहीं।
तुम्हारे पास समय ही कहां है? विवाह तो तुमने मुझसे कर लिया है किन्तु तुम तो अपनी आकांक्षाओं के पीछे दौड़ रही हो।
हर इंसान को अपनी आकांक्षाओं के पीछे जाना चाहिए,किसी चीज को पाने के लिए परिश्रम और त्याग तो करना ही होता है किन्तु कुछ उत्तरदायित्व भी होते हैं।
ये सब मैं समझता हूँ किंतु जिसे हम प्यार करते हैं , उसके विषय में और उसके लिए सोचते हैं, मुझे तो लगता है तुम्हें मुझसे प्यार था ही नहीं।मुझे तुमसे प्यार था ,इसीलिए मैंने तुम्हारी इच्छा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया, परिश्रम किया ,अन्य किसी भी भावना का त्याग किया और तुमने क्या किया ? तुमने मेरा ही त्याग कर दिया।
ऐसा कुछ भी नहीं है, तुम गलत सोच रहे हो अपने सपनों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ना इसका अर्थ यह तो नहीं कि मैं तुमसे प्यार ही नहीं करती। मेरी, मेरे माता -पिता के प्रति भी कोई ज़िम्मेदारी है या नहीं।
स्वरा की यह बात सुनकर, कपिल थोड़ा प्रफुल्लित हुआ और बोला -देवी जी ! प्यार त्याग मांगता है, तुम वहां ,मैं यहां, मैं तो हर पल तुम्हारे सामने रहते प्रेम की पींगे बढ़ाता। तुम मुझसे प्यार करती भी हो तो कभी मुझे महसूस क्यों नहीं हुआ ? कभी-कभी मुझे लगता- मैंने जबर्दस्ती ही इस रिश्ते को या रिश्ते में तुम्हें बांध लिया है।ये मेरा त्याग ही तो है ,शादीशुदा होकर भी कुंवारों की ज़िंदगी जी रहा हूँ ,कोई साथ बैठकर बात करने वाला नहीं,मुझे समझने वाला नहीं।
नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है,मैं समझती हूँ ,मैंने तुमसे विवाह किया ,तुम्हारे प्रति भी मेरी कुछ ज़िम्मेदारियाँ हैं। किन्तु..... अच्छा अब ये सब छोडो ! क्या लड़ते ही रहोगे, हाल-चाल भी पूछोगे।
हाल-चाल क्या पूछना है? तुम्हारे मम्मी- पापा है ,उनकी बेटी उनके पास रह रही है ,अपने संपूर्ण उत्तरदायित्व निभा रही हो और क्या चाहिए? यह सोचते ही, कपिल को फिर से उसकी बातें स्मरण हों आईं, तब वह बोला -जब अच्छा प्रेमी मिल जाता है,जो सच्चा प्यार करने वाला हो तो कोई उसकी कदर नहीं करता और जब कोई ऐसा मिल जाये ,जो धोखा दे ,धोखा खाते हैं तो तब रोते हैं।
यह तुम किसे सुना रहे हो ? देखो ! जीवन में, मैं भी कुछ करना चाहती थी। मैं अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी ताकि मैं कल को अपने माता-पिता का उत्तरदायित्व पूरी ईमानदारी से निभा सकूं।
वह तो मैं भी कर सकता था किंतु तुमने मुझे मौका ही नहीं दिया।
नहीं, मेरे माता-पिता मेरी जिम्मेदारी हैं ,मैं तुम पर क्यों दबाब डालूंगी ?माना कि तुम मेरे माता-पिता का खर्चा कर सकते थे ,अपना कर्त्तव्य बखूबी निभा सकते हैं किंतु मेरे भी कुछ कर्तव्य है। मेरा सपना था -किसी पुलिसवाले से मेरा विवाह हो ,जो कि तुमने पूर्ण किया किन्तु मेरे अपने जीवन को लेकर भी तो मेरी कोई सोच हो सकती है या नहीं।
किन्तु मैंने तो तुम्हारी सोच को ही अपना लिया ,प्यार किया है तो अपना क्या, पराया क्या ?तभी तो मैं कह रहा हूं कि तुम्हारे इस घर के प्रति , कुछ पति के प्रति भी कुछ कर्तव्य हैं या नहीं।
ये सब बातें कहने -सुनने में अच्छी लगती हैं किन्तु जब व्यवहार में आती हैं ,तो बात कुछ और होती है। पति के प्रति कर्त्तव्य स्मरण हो आया ,तभी तो तुम्हें बार-बार फोन कर रही हूं किंतु तुमने तो शिकायतों का पिटारा ही खोलकर रख दिया ,एक बार भी ये नहीं पूछा - कि तुम क्या चाहती हो ?या मुझे क्यों फोन कर रही थीं ?या तुम कैसी हो ?ये सब पूछने का समय ही नहीं है ,लगता है ,तुम मुझे कुछ ज्यादा ही 'मिस 'कर रहे थे।कहते हुए मुस्कुराई और बोली -कोई ज्यादा बोलता है ,तो कोई कम किन्तु तुम तो शिकायतों के साथ कितना बोलते हो ? ये नहीं कि कुछ लफ्जो में ही अपने दिल की बात कह देते।
स्वरा के इन शब्दों से कपिल थोड़ा झुँझला गया और बोला -जो तुम चाहती थी वह तो तुम कर रही हो ,
इंसान की विचारधारा बदल भी सकती है।
क्या मतलब ?
तुम पुलिस वाले हो तुम्हें तो स्वयं समझना चाहिए कि पत्नी को पति के साथ रहना चाहिए या पिता के घर, माना कि किसी से कोई गलती हो जाती है तो उसे सुधारने का एक मौका तो देना चाहिए स्वरा की बातों से लग नहीं रहा था, यह क्या कह रही है क्या यह वही बात कह रही है वही सच कह रही है जो मेरे कान सुनना चाहते हैं।