जिसकी औलाद ही ना सुने, उसके माता-पिता का तो जीते जी, मरना ही हो जाता है। आज यही हालात सरस्वती के कारण , रामखिलावन के भी हो रहे थे। भाई और पिता दोनों ही उसे ढूंढ़ने में लगे हुए थे किंतु उसके विषय में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी, इस समय वह कहां है ? उसके दफ्तर में पूछने पर पता चला कि वह चार दिन की छुट्टी लेकर गई हुई है और उसके दफ्तर के लोगों ने ही बताया है-कि उसका विवाह है। ऐसे में एक पिता उसके मैनेजर से यह कैसे कहता ? कि वह मेरी बेटी है, या उससे कैसे पूछता ? कि उसका विवाह कहां हो रहा है ?उसे ढूंढते हुए ,उसके दफ्तर से बाहर आ गए। बेटे ने पूछा भी था, क्या आपने उनसे नहीं पूछा -कि विवाह कहां हो रहा है ?
एक पिता यह बात कैसे कह सकता है ?वो ये नहीं सोचेंगे - बाहर वाले व्यक्ति को कैसे पता होगा? कि उसका विवाह कहां हो रहा है ? जब घर के लोगों को ही मालूम नहीं है। यह सुनकर राम खिलावन टूट सा गया था , ऐसा लग रहा था, जैसे उसके बदन में, ताकत ही नहीं बची है ,ऐसा लग रहा था ,जैसे अंदर से किसी ने उसे निचोड़ दिया हो ,उसके तन का सम्पूर्ण रक्त किसी चूंस लिया हो, बेटे से कैसे कहे ? कि उसकी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही है।
यदि वह कमजोर पड़ता है, तो उसका बेटा और उसकी पत्नी का क्या होगा ? उसे अपना घर टूटता , छिन्न-भिन्न होता नजर आ रहा था किंतु मन की व्यथा किसी से कह भी नहीं पा रहा था। घर की जवान बेटी ने, घर की बदनामी करने का बीड़ा जो उठाया है। उसके प्रेम के कारण, घर की परवरिश, उनके दिए संस्कारों, उनकी शिक्षा सब व्यर्थ होता नजर आ रहा था। वह अपने को समझाने का प्रयास कर रहा था। यह दुनिया में मेरी बेटी के साथ ही नहीं हो रहा है, इस उम्र में बच्चे कभी -कभी बहक जाते हैं। हम बड़ों को भी समझदारी से काम लेना होगा किंतु अपने को समझाना भी बहुत कठिन है।'' समझदार दिखना, समझदारी की बातें करना, एक अलग विषय है किंतु ऐसी विषम परिस्थिति में समझदारी से काम लेना यह बहुत कठिन कार्य है।'' जो कि इस समय रामखिलावन यही करने का प्रयास कर रहा था।
अंगूरी बार-बार दरवाजे की तरफ टकटकी लगाये देख रही थी, वह देखती है-अपने पिता और भाई के साथ सरस्वती आ रही है। मां उससे रूठती है ,रोती है, तब सरस्वती उसके गले लगकर कहती है -मां ,मुझसे गलती हो गई, मुझे क्षमा कर दो ! मैंने आपका दिल दुखाया अब कभी भी आपका दिल नहीं दुखाऊंगी। पश्चाताप के भी ,वे कितने सुंदर पल हैं ? तभी मोटरसाइकिल की आवाज से, उसका यह सपना टूट जाता है।अपने पति और बेटे को आते हुए देखती है, और वह देखना चाहती है कि उनके पीछे उसकी बेटी भी आ रही है , किंतु यह स्वप्न नहीं था, यह हकीकत थी जो उसके सपनों से बहुत दूर होती है। स्वप्न सुंदर भी होते हैं और डरावने भी होते हैं, वह भी मन को बहलाते ही हैं। अभी कुछ देर पहले वह जागते हुए यही सपना तो देख रही थी किंतु हकीकत उस परे थी।
क्या हुआ जी ? क्या हमारी सरस्वती मिली ? रामखिलावन जी ने कोई उत्तर नहीं दिया और वे अलग कमरे में जाकर सोफे पर बैठ गए, उनसे कुछ भी उम्मीद करना, अब अंगूरी के लिए व्यर्थ लग रहा था क्योंकि वह अपने दर्द से इतने व्यथित थे, उनके पास शब्द ही नहीं बचे थे कहने को कुछ रह ही नहीं गया था। अंगूरी बेटे से पूछती है -प्रेम ,बेटा ! क्या हुआ ?
होना क्या है ? हमारी'' नाक कटवानी थी'', वह उन्होंने कटवा दी। वह उससे [क्रोध के कारण अरशद का नाम ही भूल गया या फिर लेना नहीं चाहता ] विवाह करने जा रही हैं, मिठाई बांट रही हैं , घर वालों की तो उन्हें जैसे परवाह ही नहीं है। हमारे'' सीने पर मूंग दलकर चली गई', उनके दफ्तर में गए थे, वहां उन लोगों ने बताया-कि आज आधे दिन के लिए आई थी, और मिठाई बबांटकर गई हैं । एकाएक उसका क्रोध बढ़ा और बोला -अरे क्यों ना बांटें ? इतना महान कार्य जो कर रही हैं। घर वाले परेशान हैं, उन्हें रात- दिन ढूंढने में, लगे हुए हैं और वह हाथों में मेहंदी रचा रही हैं और पढ़ा लो !
उन्होंने, इस शिक्षा से यही तो सीखा है कि कैसे'' मां-बाप की इज्जत को दाँव पर'' लगाया जाता है। वहीं गांव में रहतीं , काम सिखतीं और समय से विवाह हो जाता किंतु हमें तो आगे बढ़ने का शौक है दुनिया तरक्की कर रही है, हमें भी तरक्की करनी है, अब यह देख लो ,मजा ले लो! तरक्की का। माँ की तरफ देखकर व्यंग्य से बोला -उन्हें सुख सुविधा तो इसलिए दी थी, कि वह अपनी जिंदगी में, अपने भविष्य के लिए उन्नति करेंगीं किंतु उन्होंने क्या किया ? आज हम मां -बाप बेटा धक्के खा रहे हैं। उन्होंने एक फोन करने तक की जरूरत महसूस नहीं की , कि मैं कहां पर हूं, यह भी नहीं बताया ? आज वह लोग जिन्हें कभी जानती नहीं थीं देखा नहीं था, वे अपने हो गए, हम दुश्मन ! मां पर संपूर्ण भड़ास निकाल कर, प्रेम चुप बैठ गया।
अंगूरी भी रो रही थी, किंतु साथ ही अंगूरी का दिमाग भी चल रहा था कुछ देर पश्चात बोली -पुलिस के पास जाते, रिपोर्ट लिखवाकर आ जाते ,हो सकता है- वे, हमारी बच्ची को ढूंढ देते। जब तक वह नहीं मिलती है हमें इस तरह हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
गए थे, प्रेम ने एक टूक जवाब दिया ,अंगूरी प्रेम की तरफ देखने लगी कि क्या जबाब देता है ?उसने बताया -' पहले तो वो लोग रिपोर्ट लिखने के लिए ही तैयार नहीं थे, उसके पश्चात हमें ही समझाने लगे, किंतु पुलिस वाले भी कह रहे थे -क्यों इन लफड़े में पड़ते हो ? लड़की बालिग़ है, अपना भला- बुरा समझती है, नौकरी करती है, यदि वह अपनी इच्छा से विवाह कर रही है , तो इसमें बुराई ही क्या है ?विवाह ही तो कर रही है ,वो भी अपनी पसंद से..... आप भी विवाह ही करते।
ये क्या बात हुई ?क्या माता -पिता का बेटी पर इतना भी अधिकार नहीं ?
इस विषय में आप क्या सोचते हैं ?अपने विचार ,अपनी समीक्षा दीजियेगा ,चलिए आगे बढ़ते हैं।