माँ ! झूठ बोलती है,
अक्सर संस्कारों की बात करती है।
सत्य को नकार, रिश्तों की बात करती है।
मां !झूठ बोलती है,
झूठे रिश्तों को निभाने की बात करती है।
विश्वास बनाए रखती, रिश्तों पर,
उनको निभाने की बात करती है।
मां! अक्सर झूठ बोलती है।
रिश्ते बने मिले,
माँ की बातों की तरह ही, झूठे निकले।
उसने यह नहीं बतलाया-
सर्प को दूध पिलाओ तो,विष बढ़ता है।
जब भी मौका मिले, तो डसता है।
अब तो लगता, कायरता की बात करती है।
मां !अक्सर झूठ बोलती है ,
झेलना सिखलाया, चुप रहकर,
हिम्मत और साहस की बात करती है।
प्यार, विश्वास से जीतने की बात करती है।
संस्कारहीनों के मध्य संस्कारों की बात करती है।
लगता, शिक्षा उसकी अधूरी रही,
दुष्ट को प्रेम से जीता नहीं जाता ।
अपने ही मन को समझाने की बात, करती है।
माँ, झूठ बोलती है।
हृदय में जिनके कटुता भरी,
उनसे रिश्ते निभाने की बात करती है।
दुष्ट और दुष्टता का संहार करो !
यह नहीं कहा, 'अहिंसा' की बात करती है।
आज लगता, उस समय लोग कुछ और होंगे।
अहंकार तज, झुकने की बात करती है।
यह नहीं सिखलाया सत्य -असत्य को पहचानो !
वह तो धर्म और सादगी की बात करती है।
रिश्ते निभाने की बात करती है।
मान- अपमान से परे,बदलने की बात करती है।
मुझे उनके, विश्वास पर विश्वास था।
किंतु आज वही सबको झुठला रही है।
बदलते मौसमों ने, हवा का रुख बदल दिया।
अपनी झूठी बातों से,परिवर्तन की बात करती है।