Sazishen [part 131]

जावेरी प्रसाद जी, अपनी पत्नी के जाने के पश्चात, बहुत अकेले हो गए थे, इसीलिए उन्होंने उस समय चांदनी से विवाह कर लिया,जब उन्हें अकेलापन खल रहा था और चांदनी के पिता को पैसे की आवश्यकता थी।  किंतु जब उनका बेटा ,उस घर को छोड़कर गया तो वह परेशान भी हुए। अब उनके बहू- बेटा घर पर आ गए हैं तो वह बहुत खुश हैं। मुझे तो नहीं लगता कि उनमें कभी लड़ाई- झगड़ा हुआ हो। थोड़ी बहुत अनबन तो सभी घरों में होती है ,यहाँ भी अनबन हुई होगी किंतु वह बात,कभी  घर से बाहर नहीं गयी। न ही, कभी चांदनी ने मुझे बताया।वो तो चांदनी की इच्छाओं का बहुत ही ख्याल रखते थे। चांदनी ने जो अपनी पूर्व की ज़िंदगी में देखा भी नहीं होगा ,वो यहाँ आकर देखा। उसका रहन -सहन बहुत ही उच्च स्तर का हो गया था।मिसेज खन्ना ने इंस्पेक्टर को बताया।   

ये बात तो ,विनोद ने उसके कमरे की जाँच करते समय स्वयं भी महसूस की थी ,तब वह बोला -ठीक है, अब मैं चलता हूं, कहकर इंस्पेक्टर विनोद खन्ना वहां से उठ खड़ा हुआ। 

तावड़े!



हो साहिब !

हमें जावेरी प्रसाद जी के मकान में, जाकर दोबारा से छानबीन करनी होगी , वहीं कुछ न कुछ सबूत तो  मिलेगा। आज जब इंस्पेक्टर खन्ना, जावेरी प्रसाद जी की कोठी में घुसा , तो उनका कुत्ता उन्हें देखकर  भौंकने लगा। गार्ड ने उसको पकड़ा। गार्ड !उसे डांट रहा था। सुनो! इंस्पेक्टर विनोद खन्ना बोला -यह कुत्ता इस घर में कब से है ?

इसे तो यहां रहते 2 साल हो गए।

 जब मैं पिछली बार आया था, तब तो यह मुझे दिखलाई नहीं दिया था। 

इसे बांधकर रखा गया था, कुछ ज्यादा ही, हरकतें  कर रहा था इसलिए इसको बांध दिया गया था। 

कैसी हरकतें कर रहा था ?

बार-बार भौंक रहा था, कुछ खा भी नहीं रहा था। पीछे वाले बगीचे में भाग जाता था , एक स्थान पर बैठ ही  नहीं रहा था। तब सब ने कहा-इसे बांधकर रखो !

यह कब से ऐसी हरकतें कर रहा है ?

जब से मैडम गई हैं , दो  दिनों तक तो इसने खाना ही नहीं खाया था।

 गार्ड की बात सुनकर, इंस्पेक्टर उस कुत्ते के पास गया और उसे सहलाया। घर के एक नौकर को बुलाया और उसके साथ , उस कुत्ते को अंदर, चांदनी के कमरे में ले गए। उसे उस कमरे में घुमाया गया , चांदनी के कपड़े को उसे सुंघाया गया और उस कुत्ते को छोड़ दिया। बाहर से कल्पना आती दिखलाई दी, और कुत्ते को देखकर चिल्लाने लगी। इसे यहां क्यों ले आए ? बेबी, अभी छोटा है। इसे बाहर ले जाओ ! उसके पीछे-पीछे इंस्पेक्टर और तावडे था। कुत्ता दौड़ता हुआ ,पीछे के बगीचे में गया और एक स्थान पर जाकर भौंकने लगा, और जमीन को अपने पंजों से खोदने लगा। इंस्पेक्टर ने उस जमीन को ध्यान से देखा। वहां से जमीन थोड़ी अलग थी। उस स्थान को खोदने के लिए कहा गया। संयोग से घर में , जावेरी  प्रसाद जी नहीं थे।

इंस्पेक्टर साहब !यहाँ क्या है ? आप तुषार की मम्मी को तो ढूंढ़ नहीं रहे हैं ,यहाँ कुत्ते के कारण खुदाई करवा रहे हैं। 

कुत्तों की सूंघने की शक्ति बड़ी तीव्र होती है ,यह यहाँ आकर भोंक रहा है ,हो सकता है ,यह हमें कुछ  बताना चाहता हो। 

ऐसा तो ये ,कई दिनों से कर रहा है। 

फिर भी तुम लोगों ने इसकी हरकतों पर ध्यान नहीं दिया। 

इसमें क्या ध्यान देना ?कहकर कल्पना ने तुषार को फोन लगाया और उसे बताया- कि इंस्पेक्टर साहब आए हैं, और पीछे बगीचे में गए हैं, वहां की मिट्टी खुदवा  रहे हैं। 

वह मिट्टी क्यों खुदवा रहे हैं ?

यह तो मैं भी नहीं जानती, मैं तुम्हें बताने आई हूं , तुम थोड़ी देर के लिए घर आ जाओ !

ठीक है, मैं अभी आता हूं। 

कुछ देर की खुदाई के पश्चात, वहां एक कंकाल मिला। कपड़ों से पता चल रहा था, कि यह किसी स्त्री का ही कंकाल है। इंस्पेक्टर सोच रहा था- यह किसका कंकाल हो सकता है ?तभी तुषार वहां आ गया। वह भी, उस स्थान पर किसी कंकाल को देखकर, अचंभित रह गया। इंस्पेक्टर ने तुषार से पूछा -यह किसका कंकाल है ?

तुषार, उसका प्रश्न सुनकर घबरा गया और बोला -यह मैं कैसे बता सकता हूं , किंतु इस पर यहां जो भी कपड़े दिख रहे हैं, उसके आधार पर तो....... तुषार की हालत ऐसी हो चुकी थी,'' काटो तो खून नहीं '' और कहने लगा इंस्पेक्टर साहब मैं कुछ नहीं जानता मुझे नहीं पता। तब तक फॉरेंसिक टीम भी आ चुकी थी, और वह लोग यह पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि यह किसका कंकाल हो सकता है ? तुषार ने फोन करके, जावेरी प्रसाद जी को भी बुला लिया था। जावेरी प्रसाद जी उस कंकाल को देखकर,'' माथा पकड़कर बैठ गए '' सभी के चेहरे देखने लायक थे, किसी के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था। सभी नौकरों को बुलाया गया, उनसे पूछा गया -सभी ने इस बात की पुष्टि की, कि यह कंकाल चांदनी देवी का ही हो सकता है किंतु यह कार्य किसने किया है ? इसके विषय में किसी को कोई जानकारी नहीं थी। धीरे-धीरे वहां पर भीड़ इकट्ठा होने लगी।

अभी तक तो चांदनी की खोज हो रही थी ,उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर उसकी खोज हो रही थी किन्तु अब तो उसकी हत्या का केस चलेगा यदि यह साबित हो जाता है कि यह कंकाल चांदनी देवी का ही है और यदि नहीं है तो किसकी हत्या हुई है और किसने की है ?इसका पता लगाना होगा। इंस्पेक्टर ने जावेरी प्रसाद जी से कहा। आपको क्या लगता है ? यह किसका कंकाल हो सकता है ?

अब इसमें हम क्या कह सकते हैं ,जावेरी प्रसाद जी ने असमर्थता व्यक्त की। 

आपके घर में एक व्यक्ति को मारकर,उसके  शरीर को दफना दिया गया और आप लोगों को पता ही नहीं चला।  कल्पना तो उस कंकाल को देखकर इतना ड़र गयी ,वो अपने बेटे को लेकर, अपने कमरे में जा बैठी। 

तुषार और जावेरी प्रसाद जी, की हालत खराब थी ,उनके पास कोई जबाब नहीं था। तभी तो मैं सोच रहा था ,चांदनी जी घर से बाहर नहीं गयीं ,तो आखिर कहाँ गयीं ?वो तो यहाँ सो रहीं थीं। सभी कामगारों को बारी -बारी से बुलाया गया और पूछताछ का सिलसिला चला। उस पूछताछ से यह निष्कर्ष निकला उन दिनों कल्पना की मम्मी और बहन भी यहीं थीं। जब बात सामने आई ,तो इंस्पेक्टर के शक के घेरे में नीलिमा के पिछले रिकॉर्ड को देख्ग्ते हुए ,नीलिमा पर पूरा -पूरा शक गया। 

आखिर ये कंकाल चांदनी का ही है या नहीं ,है तो फिर चांदनी को किसने मारा ?अपनी समीक्षा अवश्य दीजियेगा ,इसी के साथ आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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