नीलिमा चाहती थी ,चम्पक और पूजा दोनों ही ,अपने रिश्ते को संभाले और आगे बढ़ें किन्तु पूजा अभी भी अपनी उन्हीं परेशानियों को, चम्पक के धोखे को लिए बैठी थी। तब नीलिमा कहती है -' तुम्हारे साथ पहले जो भी स्थिति रही हो, उसको छोड़कर आगे बढ़ो ! जीवन में कितनी परेशानी आती हैं ? क्या उनको हम पीछे छोड़कर, आगे नहीं बढ़ते हैं ? तुम,इस समय बात को समझो! तुम्हारी जिंदगी में,धोखा ,परेशानी जैसा कुछ भी रहा हो, किंतु अब यह तुम्हारे बेटे की जिंदगी का सवाल है। माता -पिता अपने बच्चों के लिए क्या -क्या नहीं कर गुजरते ? और परम तुम दोनों के एक साथ देखना चाहता है। इसलिए तुम्हारे लिए यही बेहतर होगा, अपने लिए न सही, कम से कम अपने बेटे के लिए तो, इस रिश्ते को एक मौका दे ही सकते हो, कहकर नीलिमा उठी और बोली -मेरा उद्देश्य तुम दोनों को मिलवाना था। यह तुम्हारी अपनी जिंदगी है , इसके पश्चात, मेरा कार्य समाप्त होता है, अब तुम्हें देखना है कि हमें आगे बढ़ना है या वहीं ठहर जाना है, कहकर नीलिमा बच्चों के पास खेलने चली गई।
वो सही कह रही है , अपने जीवन में,उसने भी ,बहुत कष्ट देखे हैं किंतु उसने कभी सकारात्मकता नहीं छोड़ी। हो सकता था, यह तुम्हें कोई गलत सलाह देती या कहती कि तुम्हें माफ नहीं करना है ,जिंदगी में आगे नहीं बढ़ना है क्योंकि इसके साथ भी, बहुत कुछ हुआ है इसने भी तो धोखे खाए हैं , किंतु आज भी यह जिंदगी में आगे बढ़ने में विश्वास रखती है। यह भी तो हो सकता था कि वह मुझे बताती -कि तुम्हारा बेटा यहां है और मैं चुपचाप अपने बेटे को बहला -फुसलाकर ले जाता। किसी को ''कानों कान ''कुछ खबर ही नहीं होती किंतु हमने, ऐसा नहीं किया।
तब मैं क्या तुम्हें छोड़ देती ?पुलिस में खबर करती ,और पुलिस को लेकर वहीँ जा पहुंच जाती,आँखें दिखाते हुए पूजा बोली।
यही तो, किसी चीज को तोडना तो आसान होता है किन्तु उसको निभाना ,मुश्किल होता है। पूरी बात तो सुन लो ! मैं क्या कहना चाहता हूँ ?क्योंकि मैं चाहता था -मेरा बेटा, मेरे साथ ही नहीं उसकी मां भी मेरे साथ जाए। तुम्हें मैं बहुत दुख दे चुका हूं, अब मैं नहीं चाहता कि जिंदगी में अब तुम, अपने उस धोखे को याद कर, ताउम्र तुम मुझे कोसती रहो ! इस गंभीरता में भी वह मुस्कुरा दिया।
मैंने तुम्हें कभी कोसा नहीं है, हां, तुम्हारे व्यवहार के कारण मुझे, दुख अवश्य हुआ था।
छोड़ा भी तो नहीं था ,तुम चाहतीं तो किसी अन्य इंसान से विवाह करके भी रह सकतीं थीं ,तुम्हारे मन में आज भी मेरे लिए, अभी भी किसी कोने में प्यार तो है और वो जो तुम्हारा बेटा है न...... वो हमारे उसी प्यार की निशानी है।
तुम्हारा नहीं, वो हमारा बेटा है ,कहकर पूजा ने नजरें झुका लीं ,चम्पक ! एक उम्मीद से भर गया।
इंस्पेक्टर विकास खन्ना, अपने साथ तावड़े को लेकर ,मिसेज खन्ना की कोठी पर जा पहुँचता है।
अरे ,इंस्पेक्टर साहब !आप ! कैसे आना हुआ ?क्या चांदनी जी आ गयीं।
यदि वो आ गयीं होतीं ,तो मुझे यहाँ नहीं आना पड़ता।
आप क्या कहना कहते हैं ? क्या चांदनी यहाँ है ?
मैंने तो आपसे कुछ नहीं कहा ,ये तो आप कह रहीं हैं। इंस्पेक्टर की बात से मिसेज खन्ना थोड़ा हड़बड़ा गयी आख़िर वो क्या चाहता है ? घबराइए नहीं , मैं तो आपसे कुछ प्रश्न पूछने आया हूं।
जी , पूछिए !
आपकी सहेली, मेरा मतलब चांदनी जी कैसी थी ?
क्या मतलब ?
मेरे कहने का अर्थ है, उसने इतनी अधिक उम्र के व्यक्ति से विवाह किया, यह उनकी मजबूरी थी, क्या उनका कोई और भी दोस्त था , जो उनका हम उम्ररहा हो या कोई विवाह से पहले का दोस्त हो। जिसके साथ वह यहां से चुपचाप निकल गई हों ।
मुझे तो नहीं लगता, किंतु किसी को बिना देखे, कुछ कहा भी नहीं जा सकता। क्या आपने नीलिमा सक्सेना से बात की थी ? उन दोनों के बीच कुछ तो रहस्य था।
कुछ विशेष रहस्य नहीं था, बस वह एक दूसरे को पहले से जानती थीं , जिस भी स्थिति में, चंपा रही थी इस स्थिति से उसे अवगत कराना चाहती थीं। खैर छोड़िए, इन बातों का अभी कोई महत्व नहीं है , महत्वपूर्ण बात यह है , क्या आपने चांदनी जी को बाहर जाते या घर में कहीं घूमते हुए देखा या उनकी कोई विशेष बात ,आपको मालूम हो या फिर उनके व्यवहार या बातचीत से आपको कुछ अलग लगा हो।
मिसेज खन्ना सोचते हुए बोली -ऐसी कोई विशेष बात तो नहीं है, किंतु यह बात तो है कि वह घूमने में, और अपने को विशिष्ट दिखाना ,उसे ज्यादा पसंद था।
क्या उनकी बहू के व्यवहार से आपको कभी कुछ ऐसा कुछ लगा ? या उनमें झगड़ा हुआ हो , और वह घर छोड़कर चली गई हो।
ऐसा कुछ भी नहीं है , चांदनी की बहू उससे ज्यादा बोलती ही नहीं है, उसकी बातों को नजर अंदाज करके इधर-उधर चली जाती है। जब कोई किसी के पास बैठेगा उससे बातें करेगा या किसी विषय पर तर्क- वितर्क करेगा तभी तो झगड़े का प्रश्न उठता है लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं था।
क्या आपको नीलिमा जी के व्यवहार से ऐसा लगता है ? कि दुश्मनी की आड़ में, उन्होंने कुछ उसके साथ गलत तो नहीं कर दिया हो।
यह लगता तो नहीं है, मैं मानती हूं, दोनों एक दूसरे का विरोध करती थीं किंतु नीलिमा जी ऐसा कुकृत्य नहीं करेंगी कि उन्हें गायब करवा देंगीं, मेरे साथ भी रही ,उसकी सोच के आधार पर तो मेरे व्यवहार में भी काफी बदलाव आया है।
मतलब !
मतलब ये कि नीलिमा से पहले मुझे बहुत अधिक क्रोध आता था किन्तु अब थोड़ा मन शांत हो गया। अब मैं अपने नौकरों से इतनी नाराज नहीं होती। वैसे इतने दिन हो गए, इंस्पेक्टर साहब आप अब तक पता नहीं लगा सके वह गायब ही हो गई हुई है या गायब कर दी गई है।
क्या मतलब ? क्या आपने यहां कुछ ऐसा विशेष देखा या उनके घर के आसपास किसी विशेष व्यक्ति को दे खा जो आपको सही नहीं लगा हो।
देखिए इंस्पेक्टर साहब !आजकल किसी के मन में, क्या चल रहा है ? कुछ नहीं कह सकते पर इतना अवश्य कह सकती हूं कि बहुत दिनों से चांदनी घर से बाहर आई ही नहीं है क्योंकि वो कहीं भी बाहर जाती थी तो मुझे उसके विषय में अवश्य बताती थी , या फिर आकर या फिर जाने से पहले , मुझे दिखाना चाहती थी कि देखो, मैंने कितनी शॉपिंग की है ,मैं कहां-कहां घूमने गई ?उसका उद्देश्य चाहे कुछ भी रहा हो, किंतु उसका मुझे पता चलता रहता था और जब से वह गायब हुई है ,उसका एक भी फोन मेरे पास नहीं आया। उस समय जब उसका फोन आता था तो मैं खीझ उठती थी किंतु अब मुझे उसके फोन की बार-बार याद आती है। कहते हुए मिसेज खन्ना की आंखें नम हों आईं और बोली -भगवान करे ! वह जहाँ भी हो ,सही -सलामत हो।
जावेरी प्रसाद जी कैसे व्यक्ति हैं ? उनमें कभी आपस में लड़ाई-झगड़ा होता था।