Sazishen [part 128]

बच्चे खेलते खेलते, थोड़ा आगे चले गए थे। जहां उनकी गेंद एक अनजान व्यक्ति पर लगती है।  तब परम को एहसास होता है कि इसमें हमारी गलती रही है। वह उनसे सॉरी बोलता है, और उनसे अपने साथ, खेलने के लिए आमंत्रित करता है। वह व्यक्ति खुश हो जाता है और उठकर उन बच्चों के साथ खेलने लगता है। पूजा को भ्रम होता है आखिर यह अनजान व्यक्ति कौन है ? कहीं खेलने के बहाने,बच्चों को बहला -फुसलाकर न ले जाये। शायद ये यही सोच रहा होगा ,बच्चों के साथ कोई बड़ा नहीं है। उसे ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी, और वह स्वयं नीलिमा और पूजा के पास आता है। पूजा ने देखा, एक अधेड़ उम्र व्यक्ति इसके कुछ बालों में चांदी झलक रही थी। 


  उसका दमदार व्यक्तित्व ,किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए काफी था। पूजा उसे लगातार देखे जा रही थी।उसे देखकर पूजा का ह्रदय काँप उठा। आज भी वही डीलडौल ,वही मुस्कुराहट ,उम्र ने अपना असर तो छोड़ा है किन्तु शक्ल इतनी भी नहीं बदली ,जो उसे पहचान न सकूँ। तब वह समीप आकर बोला - आपके बच्चे बहुत ही होशियार हैं।कह तो नीलिमा से रहा था किन्तु उसकी दृष्टि पूजा पर टिकी थी। 

 धन्यवाद !अरे !आप यहाँ कहते हुए नीलिमा मुस्कुराई और बोली -आप यहाँ कैसे ?

बस ,'इस वीरान जीवन में खुशियाँ तलाश करने निकला था ,कहते हुए वो बार -बार पूजा  की तरफ देख रहा था किन्तु पूजा की कोई प्रतिक्रिया नहीं थी।उसके आने से अनजान बनी रही। तब वो पूजा की तरफ बढ़ा और बोला -कैसी हो ?पहचाना मुझे ! 

तुम्हें कैसे भूल सकती हूँ ?मन ही मन उसकी तरफ देखकर सोचा। तभी वो अचानक बोल उठी -''दूसरों के जीवन में काँटे बोने वाले भी खुशियां ढूंढते हैं '',कमाल है ,चलिये !नीलिमा जी अब हमें अपने घर चलना चाहिए। वह समझ चुकी थी कि हमें आपस में मिलाने की ये नीलिमा की ही चाल है ,तभी मुझे इतने दिनों से समझा रही थी। तब वह बोली - आपने यह अच्छा नहीं किया ,कहकर घर वापस जाने के लिए उठ  खड़ी हुई। 

सुनो ,पूजा !तुम ये क्या कह रही हो ? मैंने तुमसे कहा था-' जिंदगी एक बार और मौका देती है, इसे तुम वही मौका समझ लो ! ठुकराकर इस तरह मत जाओ !'नीलिमा बोली। 

परम ! परम! वह खेल में व्यस्त था, अपनी चाल पूरी करके अभी आता हूं मम्मी !

आओ ! हमें घर जाना होगा। 

यह तुम क्या कर रही हो ? तुम्हारी नाराजगी मुझसे  है, उस बच्चे को बीच में क्यों घसीट रही हो ?उसे खेलने दो !

नहीं, अब हम यहां से जाएंगे, दृढ़ विश्वास के साथ पूजा बोली। 

मैं कुछ देर, तुमसे बात करना चाहता हूं। 

किंतु मैं तुमसे कोई भी बात नहीं करना चाहती। 

क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकती ?

माफी ! आगे बढ़ते- बढ़ते पूजा रुक गई, और पीछे मुड़कर उसने देखा और बोली -क्या तुमने माफी वाला कार्य किया था ? अब तुम यहां क्या लेने आए हो ? क्या मैं चैन से जी भी नहीं सकती ? मेरा वही चैन छीनने  आए हो। 

मैं तो, न जाने कब से बेचैन हूं ? 

वह तुम्हारी अपनी जिंदगी है, अब मेरा तुमसे कोई वास्ता नहीं है। 

मैं तुम्हारी नाराजगी समझ सकता हूं किंतु हमारे बेटे के लिए तो सोचो !

वापस आकर उसके करीब  बोली -क्या कहा तुमने ? हमारा !इस शब्द का अर्थ भी जानते हो ,यह बेटा, जब नहीं दिख रहा था ,जब मुझे धक्का देखकर चले गए थे। वही तो सोच रही हूं, तुम अपने बेटे के लिए ही यहां आए हो , वरना तुम्हारी तरफ से मैं मरूं या जिंदा रहूं उससे तुम्हें कोई मतलब नहीं , क्या तुम मुझे अभी भी बेवकूफ समझते हो ? एक बार जिंदगी में धोखा खा चुकी हूं, बार-बार खाने की इच्छा नहीं है। कहते हुए तेज कदमों से, परम की तरफ बढ़ चली। नीलिमा बच्चो के साथ ही खेल रही थी ,उसने उन दोनों को अकेले साथ में छोड़ दिया था। 

एक बार  समझने का प्रयास तो करो ! अच्छा, एक बार उस बच्चे को ही बता दो ! कि मैं उसका पिता हूं, यह उसकी इच्छा होगी, कि वह मुझे स्वीकार करता है या नहीं। 

तुम जानते हो, वह अपने पिता के लिए पूछता होगा और अब तुम चाहते हो, मैं फिर से अकेली हो जाऊं मेरे साथ कोई ना हो। उसे अपने पिता के विषय में जानने की बहुत इच्छा रहती है , जब उसे पता चलेगा तुम उसके पिता हो , तो वह खुश हो जाएगा किंतु वह नहीं जानता तुमने मेरे साथ क्या किया है ? मेरे साथ ही नहीं उसके साथ भी, क्योंकि जब वह पैदा ही नहीं हुआ था। एक पिता की चाहत उसे तुम्हारे करीब ले आएगी। यह मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूंगी। 

तुम उससे दूर कहां रहोगी ? हम सभी वापस चलते हैं , इस दुनिया में, जहां से हम दूर हुए थे,वहीं पर फिर से एक हो जाते हैं।  

अब मैं ,बहुत आगे आ चुकी हूं, पीछे लौटना नामुमकिन है। 

प्रयास करोगी, तो लौट सकते हैं, हम फिर से वही सुकून भरी खुशनुमा जिंदगी जी सकते हैं। 

किंतु उन दिनों का क्या ? जिनका  परिणाम मैंने झेला। मैं तुम पर क्या विश्वास कर लूं ? जब तुम मुझे पहले ही धोखा दे चुके हो तो क्या अब धोखा नहीं दोगे ?तुम कुछ भी कर सकते हो ,अपने बच्चे को लेजाकर मुझे मरवा भी दो।  तब भी तो तुम मुझे ऐसी ही हालत में छोड़कर चले गए थे। तुम यहाँ से चले जाओ !और फिर से हमारी ज़िंदगी में कभी मत आना। 

नीलिमा उन दोनों को इतनी देर तक बातें करते देखकर, उनके करीब आती है और कहती है -जो हो चुका है उसे भूल जाओ ! सकारात्मक सोच के साथ अब आगे बढ़ो !

तुम नहीं जानतीं ,इस इंसान ने मेरे साथ क्या-क्या किया है ?

कहते हैं , माफ करने वाला व्यक्ति बड़ा होता है। 

मुझे इसे माफ नहीं करना है ,मुझे  व्यक्ति नहीं बनना है।  कोई तुम्हारी जिंदगी को जहन्नुम बना दे ! अस्त व्यस्त कर दे ,क्या तब भी  तुम, उसे माफ कर सकती हो। क्रोध से घूरते हुए, पूजा ने नीलिमा से पूछा। 

उसकी बात सुनकर नीलिमा एकदम चुप हो गई , सोचने लगी -वह भी धीरेंद्र को कहां माफ कर पाई थी ? माफ कर देने का अर्थ था अपनी जिंदगी को बर्बाद कर देना। यदि मैं उसे माफ कर देती, तो वह चंपा से विवाह कर लेता , और मैं अपने बच्चों के साथ सड़क पर होती। मन ही मन सोचने लगी-जिस पर बीतती है, वही जानता है। हम सिर्फ कह सकते हैं की क्षम करने वाला व्यक्ति , ज्यादा बड़ा होता है। बड़ा बनने के लिए, अपने मन  के किसी अंदर कोने में पहले स्वयं को बहुत मारना पड़ता है। कभी-कभी अपने आत्मसम्मान को भी नजरअंदाज कर  देना पड़ता है। क्षमा करना भी इतना आसान नहीं है। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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