Sazishen [ part 127]

घना जंगल था ,कुछ लोग धीरे -धीरे आगे बढ़ रहे थे। शायद ,उन्हें किसी साथी की तलाश थी ,न जाने, क्या ढूंढ़ रहे थे ?कुछ समझ नहीं आ रहा ,वे कहाँ जाना चाहते थे ?या क्या ढूंढ़ रहे थे ?तभी एक का पैर किसी चीज से टकराया और वो जोरदार चीख के साथ गिर पड़ा। तब उन्होंने वहां की मिटटी को खोदना आरम्भ किया। वो वहां क्या देखते हैं ?एक आदमी मिटटी में दबा हुआ था। जैसे ही उसके चेहरे से मिटटी हटाई तो सभी आश्चर्यचकित रह गए।   

इंस्पेक्टर विकास खन्ना का दम सा घुट रहा था ,वो और कोई नहीं स्वयं विकास ही था ,एकाएक घबराकर वो उठ बैठा ,उसका शरीर पसीने से लथपथ था। ये केेसा स्वप्न था ? मैंने अपने को ही, मरते हुए देखा। न जाने किसने मुझे इस मिटटी में दबाया होगा और क्यों दबाया है ? उसने गहरी स्वांस लेकर पास रखे जग से पानी लेकर पीया। इससे उसे थोड़ी राहत मिली। आखिर ऐसा स्वप्न आने का क्या कारण हो सकता है ? क्या ये किसी बात का संकेत है या फिर अनिष्ट की आशंका !उसने बराबर में लेटी प्रभा की तरफ देखा ,वह आराम से सो रही थी। बिना आहट किये वह कमरे से बाहर आया ताकि प्रभा की नींद न खुले।कुछ देर इसी तरह टहलता रहा ताकि उस स्वप्न से बाहर आ सके।  


  वह इन चीजों को मानता नहीं है किन्तु आज के सपने के कारण, उसे कुछ डर सा लग रहा था। ऐसा लग रहा था ,जैसे यह सपना नहीं ,बल्कि उस दौर से गुजरा हो। बहुत देर तक नींद नहीं आई किन्तु सोने का प्रयास किया न जाने कब उसकी आँख लगी ?

सुबह देर से आँख खुली ,जब आँख खुली तो सूरज सिर पर चढ़ आया था। तब प्रभा से बोला -तुमने मुझे उठाया क्यों नहीं। आज बहुत देर हो गयी। 

उसके लिए जूस और नाश्ता लगाते हुए प्रभा बोली -जब सारी रात जागेंगे तो ऐसे ही देर से आँख खुलेगी। वैसे आप इतनी रात्रि में बाहर क्या कर रहे थे ?मैं देख रही हूँ ,आजकल आप बड़े परेशां से रहते हैं ,क्या बात है ? क्या कोई ऐसा केस है, जिसने उलझाकर रख दिया है। 

तुम सही कह रही हो ,'जावेरी प्रसाद जी' की पत्नी को गायब  हुए,लगभग दो माह हो गये किन्तु उसका आज तक कुछ पता नहीं चल पाया है।  

जब 'जावेरी प्रसाद जी' ही। अपनी पत्नी को न संभालकर न रख  सके तो आप क्यों, दूसरे की पत्नी के लिए परेशां हो रहे हैं ?कहते हुए प्रभा हंसने लगी और बोली -आप तो बस ,अपनी पत्नी पर ध्यान दीजिये। वैसे क्या रात्रि मेंजागने का यही कारण था ? 

तब विकास को रात्रि का स्वप्न स्मरण हो आया और बोला -कल रात्रि में मैंने बडा ही  डरावना और अजीब सा  स्वप्न देखा ,जिसमे मेरी मौत हो गयी है और मैं गडढे में दबा हुआ हूँ। कुछ लोग मुझे बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं। 

अच्छा !स्वप्न में अपनी मौत देखना तो शुभ होता है ,आपकी उम्र बढ़ी है ,यह शुभ संकेत है। आपको गड्ढे से बाहर निकाल रहे हैं तो इसका अर्थ है ,कोई रहस्य तो है जो बाहर आना चाहता है। 

अच्छा !तो पंडितजी !हमें ये भी बता दीजिये !वो क्या रहस्य हो सकता है ?जो बाहर आना चाहता है। 

ये सपने कभी -कभी भावी संकेत भी देते हैं , इतनी सरलता से समझ नहीं आते हैं किन्तु समय आने पर अपना असर अवश्य दिखलाते हैं। हो सकता है ,आपके किसी केस को सुलझाने का समय आ गया या फिर कोई ऐसी बात जो दबी हुई थी ,बाहर आएगी। 

प्रभा की बातों पर विकास को विश्वास तो नहीं था किन्तु उसकी बातों से मन में एक सकारात्मकता अवश्य भर गयी थी और वह प्रभा को प्यार से चूमकर  अपने थाने की तरफ चल पड़ा। 

''हेंगिंग गार्डन '' में पहुंच कर पूजा और नीलिमा बच्चों के साथ अंदर आ गए। प्रकृति के इतने करीब थे, मन प्रफुल्लित हो उठा। कुछ देर इधर -उधर टहलकर उस स्थान को देखने लगे। नीलिमा किसी से फोन पर बातें करने लगी। 

मम्मा !यहाँ आइये ! हम क्या यहाँ बातें करने के लिए आये हैं ?

तुम लोग खेलो !मस्ती करो !अभी आती हूँ। 

पूजा एक बेंच पर बैठी कुछ सोच रही थी तभी नीलिमा उसके करीब आई और बोली - डॉक्टर साहिबा !क्या सोच रहीं हैं ?

कुछ भी नहीं ,सोच रही थी -जब हम कम उम्र होते हैं ,तो कितने सपने सजा लेते हैं ? किसी को पाने की ज़िद ,किसी को खो देने का ग़म !ज़िंदगी के उस सफर में ,कितने उतार -चढाव आते हैं ?किन्तु हम मंज़िल तय नहीं कर पाते बल्कि हमारी मंज़िल तो कोई और तय कर रहा होता है। गहरी स्वांस लेते हुए बोली - पीछे मुड़कर देखते हैं ,कहाँ से चलकर कहाँ जा पहुंचते हैं ? और जब एहसास होता है तो वापस जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता ,बहुत कुछ पीछे छूट जाता है।

आप सही कह रहीं हैं ,ज़िंदगी का ये सफ़र आगे ही बढ़ता है ,पीछे नहीं जाता ,उस रास्ते में हमने जो गलतियां की हैं उन्हें सुधारा नहीं जा सकता।  अच्छी बातें की हैं,तो उसका परिणाम आगे किसी न किसी रूप में सामने आ ही जायेगा।  

मम्मा ! आइये !कहते हुए शिवांगी ने उन दोनों की तरफ गेंद फेंकी। ये लड़की हमें बैठने नहीं देगी। आइये !आज हम भी ,सभी चिंताओं को छोड़कर ,बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं। कहते हुए ,उस गेंद को उठाकर उछाल देती है।

 पूजा भी उनमें शामिल हो जाती है। जिम्मेदारियों के चलते ,हम गंभीरता और चिंता को ओट लेते हैं वरना  हम भी कभी अच्छे बच्चे थे, कहते हुए पूजा ने गेंद उछाली। आज सभी मस्ती में आ गए थे ,तभी वो गेंद उछलकर घाँस पर बैठे एक व्यक्ति के पास जाकर लगी। यह देखकर ,सभी एकदम शांत हो गए ,उन्हें पूरा विश्वास था। ये आदमी लड़ने आ जायेगा ,तभी वो घूमा और बॉल बच्चों की तरफ उछाल दी। बच्चे खुश हो गए ,तब परम उस व्यक्ति के समीप गया और बोला -सॉरी अंकल !आपको लगी तो नहीं। क्या आप भी हमारे साथ खेलना पसंद करेंगे ?

आखिर वो अनजान इंसान कौन है ?क्या वो बच्चों केसाथ खेलना पसंद करेगा या वह किसी और उद्देश्य से वहां है ,आइये आगे बढ़ते हैं -अपनी समीक्षाएं देते रहिये !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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