Sazishen [part 126]

इंस्पेक्टर विकास खन्ना ने,चांदनी की एक तस्वीर आस -पास के थानों में भिजवा दी। किसी को भी इस  महिला की कोई सूचना मिले तो हमें सूचित करना किन्तु उसका कोई परिणाम नहीं निकला। तब उसकी तस्वीर लेजाकर ,आस -पास के लोगों से पुछवाया ,तब भी कोई लाभ नहीं मिला। कुछ समझ नहीं आ रहा है ,आखिर वो कहाँ गयी है ?विकास सीताराम से बोला। 

सरजी !कहीं ऐसा तो नहीं ,हम उसे यहाँ -वहां ढूंढ़ रहे हैं, और वो इस शहर से बाहर ही चली गयी हो। 

छुपने के लिए, यह शहर भी कम बड़ा नहीं है। 


उसे गए हुए ,इतने दिन हो गए ,कहीं ऐसा तो नहीं वो जिन्दा ही न हो। अचानक विकास के मन में विचार कौंधा ,छानबीन करने से पता चलता है ,जहाँ तक मैं समझता हूँ ,उसे कोई पसंद नहीं करता था।एक '' जावेरी प्रसाद जी ''ही थे, जो इस बुढ़ापे में भी, उसका साथ निभा रहे थे। उसकी हर छोटी -बड़ी मांग पूरी करते थे वरना नीलिमा, उसकी बेटियां और तुषार कोई उसे पसंद नहीं करता था।न ही ,वह उन्हें पसंद करती थी।  सभी के प्रति उसका व्यवहार भी सही नहीं था ,उनका उसके लिए। देखा नहीं ,किसी को भी उसके जाने का कोई दुःख नहीं है। हो सकता है ,उसने नीलिमा से बदला लेने के लिए ,किसी ऐसे व्यक्ति का हाथ थामा हो जो उसकी हर इच्छा पूरी करने के साथ -साथ ज्यादा टोका -टाकी न करे।

साहब !ये भी तो हो सकता है ,अब यहाँ उसकी ''दाल न गल रही हो ''इसीलिए किसी और को अपना साथी बना लिया हो। यहाँ का वातावरण कुछ ऐसा ही है ,पति के होते हुए ,दोस्त बना लेना,यहाँ आम बात हो गयी है। 

हाँ ,ये संभावना हो सकती है किन्तु उसने अपना कुछ भी सामान नहीं लिया ,ये बात कुछ अज़ीब लगती है ,यहां तक की वो अपना फोन भी नहीं लेकर  गयी। 

वो चाहती होगी ,कि कोई भी उससे सम्पर्क न करे ,उसे किसी से संबंध नहीं रखना था तो सिम भी बदल सकती थी।सबसे बड़ी बात तो ये है ,उसको यहाँ से जाते हुए किसी ने नहीं देखा ,न ही सीसीटीवी कैमरे से कुछ पता चल रहा है। 

साहिब !इससे एक बात अवश्य स्पष्ट होती है ,क्राइम अपने चरम पर है यानि क्रिमनल पुलिस से'' दो हाथ आगे ही हैं। '' 

अपराध ,या तो विकृत मानसिकता के लोग करते हैं ,परेशान होकर या फिर मजबूरी में किन्तु अपराध करते समय ,इनके दिमाग बहुत चलते हैं। 

हाँ, ये बात तो है साहिब ! तभी तावड़े चाय लेकर आ गया। चाय गिलास में करते हुए ,वो भी उनकी बातें सुन रहा था। तब वो कहता है -ये बात तो सही है ,साहिब !अपराधी अपराध करते समय इतना दिमाग नहीं लगाता, जितना अपराध को और सबूत को मिटाने में लगाता है। यदि उससे पहले ही समझ जाये ,हर अपराध के पश्चात ,सजा तो मिलनी ही है ,तो अपराध ही न हों।आप जिस केस की बात कर रहे हैं ,उस आधार पर उनके घर का ही कोई सदस्य हो सकता है। 

ये तुम किस आधार पर कह सकते हो ? मैंने भी इस केस के सिलसिले में सुना है ,उस आधार पर तो सम्पत्ति के लिए गायब करना लग रहा है ,या फिर वो भी सम्पत्ति के लिए ही , जब किसी अधेड़ से विवाह कर सकती  है ,तो किसी के साथ भाग भी सकती है किन्तु मुख्य कारण सम्पत्ति ही हो सकती है। 

वो तो मैं भी समझ रहा हूँ किन्तु इस केस को एक माह हो गया किन्तु कोई भी ऐसा कारण या सबूत नहीं मिल रहा ,जिसके आधार पर हम आगे बढ़ सकें। 

एक बार दुबारा पड़ोसियों से बात कीजिये !कुछ लिंक तो अवश्य मिलेगा ,किसी ने कहीं  कुछ तो देखा होगा। 

हैलो ! चंपकलाल जी ! इस रविवार को हम पिकनिक पर जा रहे हैं ,ज़िंदगी एक और मौका दे रही है। आजमा लीजिये ! क्या मालूम ?बंद किस्मत की चाबी लग ही जाये। चंपकलाल समझ रहा था नीलिमा का इशारा किस ओर है ?

ठीक है ,मैं एक दिन पहले ही, वहां पहुंच जाऊंगा,कहते हुए फोन रख दिया। 

पूजा !क्या आज तुम आ  रही हो !

क्यों ?क्या हुआ है ,क्या आपकी तबियत या घर में किसी ओर की तबियत बिगड़ गयी है। 

तुम भी कमाल हो ,उस दिन हमारी बात हुई थी ,बच्चों के साथ पिकनिक पर चलेंगे। 

ओह ! हाँ मैं तो भूल ही गयी थी ,किन्तु मैंने तो कोई तैयारी नहीं की, फिर कभी देखते हैं लापरवाही से बोली - आज मुझे काम भी बहुत है।

 उसकी बात सुनकर नीलिमा ने 'माथा पकड़ लिया 'उसे अपनी योजना निष्फल होती नजर आ रही थी। तब वो बोली -काम तो जीवनभर करना ही है ,जीवन में काम कभी पीछा नहीं छोड़ेगा। कभी अपने लिए भी जीना सीखो ! तुम्हारा बेटा , अकेले ही अपना बचपन काटता रहा ,अब बड़ा हो गया है ,तुम ये सब किसके लिए कर रही हो ?अपने बेटे की खुशियों के लिए किन्तु ऐसी कमाई से क्या लाभ ?जो उसे दो घड़ी की खुशियां भी न दे सके। 

ओके -ओके ! मैं तैयार हो रही हूँ ,मुस्कुराते हुए पूजा बोली -वरना तुम मुझे भाषण देती रहोगी और एक ऐसा पल आएगा कि मेरा मन ,इस जीवन से दूर सन्यास लेने का करने  लगेगा।

हाँ ,ये हुई न बात ! तैयारी करनी भी क्या है ?डॉक्टर का एक दिन अपना भी होना चाहिए ,थोड़ा खाने का सामान लेना है ,साथ में मेरा बेटा और मेरी बेटी है। तुम माँ -बेटा भी चले आओ !मिलकर आज मस्ती करते हैं ,कहते हुए फोन रख दिया और किसी को भी फोन लगाने लगी। लगभग दस बजे डॉक्टर पूजा की गाड़ी उनके दरवाज़े पर खड़ी थी। गाड़ी को देखकर नीलिमा बोली -अभी आते हैं ,कहते हुए उसने अपना सामान गाड़ी में रखवाना आरम्भ किया। 

आप तो बहुत सारा  सामान लाई हैं ,नीलिमा के सामान को देखकर पूजा बोली। 

क्या है ?न...... रोज़ -रोज़ जाना नहीं होता ,बहुत दिनों पश्चात निकले हैं , तो अच्छे से मस्ती की जाएगी, कहते हुए अपने बेटे अथर्व की तरफ देखा जो नजरें नीची किये धीरे -धीरे मुस्कुरा रहा था। शिवांगी !देख बेटा कोई सामान छूट तो नहीं गया है। 

मम्मा !वहां पिकनिक मनाने जा रहे हैं ,रहने नहीं। शिवांगी की बातों का आशय समझकर ,पूजा और उसका बेटा हंसने लगे। 

मैंने कोई भी सामान ज्यादा नहीं लिया है ,देखना ! वो सब काम आएगा कहते हुए मुँह फुलाकर गाड़ी से बाहर देखने लगी। उसकी ये हरकत देखकर ,सभी हंसने लगे।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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