Sazishen [part 123]

इंस्पेक्टर विकास खन्ना, नीलिमा से, चांदनी के केस के सिलसिले में, कुछ बातें करने आता है। नीलिमा  अपनी बेटी शिवांगी को, इस सबसे दूर रखना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी, कि  इंस्पेक्टर उससे भी कुछ पूछे उसके विषय में इंस्पेक्टर को भी नहीं बताना चाहती थी किंतु इंस्पेक्टर विकास भी कम नहीं था। उसने तुरंत ही, कल्पना की नौकरानी दमयंती का नाम लिया। 

दमयंती का नाम सुनते ही, नीलिमा चौकन्नी हो गई और बोली -उसने क्या बताया है ?

वह तो यही कह रही थी -चांदनी जी ,छोटी बेटी को आपकी बड़ी बेटी, से ज्यादा प्यार करती थी बल्कि बड़ी बेटी को प्यार करती ही नहीं थी। 



अचानक यह बात सुनकर नीलिमा को क्रोध आ गया ,क्रोधित होते हुए, बोली -इन दोनों बहनों में फूट डलवाने की उसकी चाल थी और कुछ नहीं था। 

तब क्या वह कामयाब हो सकी  ?

इतना तो नहीं जानती, किंतु कल्पना वहां रहती है, शिवांगी यहां रहती है।इससे कुछ होने वाला नहीं है।  

उसका ऐसा क्या व्यवहार था ? जिसके कारण आपको पता चला कि वह दोनों बहनों में'' फूट डलवाने ''का प्रयास कर रही थी। 

नीलिमा, इंस्पेक्टर को वह बात बताना नहीं चाहती थी, इसलिए बोली -इंस्पेक्टर साहब !आपकी तहकीकात हो गई हो तो एक-एक कप चाय हो जाए। हम बहुत दिनों पश्चात मिले हैं और आप बहुत दिनों में यहां आए हैं। 

नहीं नीलिमा जी ! मैं फिलहाल ड्यूटी पर हूं और आपकी समधिन का केस मेरे पास ही है उसकी छानबीन कर रहा हूं। मेरे लिए तो यही बहुत है, कि इस केस में आप मेरी, सहायता कर दें। 

हां, हां क्यों नहीं ? एक अच्छे नागरिक की तरह, आपकी सहायता करना हमारा कर्तव्य बनता है, मन ही मन इंस्पेक्टर मुस्कुरा दिया। मुझसे जो भी बन पड़ेगा, मैं आपकी सहायता के लिए तत्पर हूं। जब आप आ ही गए हैं, तो चाय भी पी लीजिए कहते हुए ,रसोई घर की तरफ बढ़ चली।

 अब यहां तो आपको सभी कार्य स्वयं ही, करने पड़ते होंगे, एक बात समझ में नहीं आ रही। जावेरी प्रसाद जी की पत्नी की तस्वीर को जब मैंने देखा तो चेहरा कुछ पहचाना सा लग रहा था। क्या आप उन्हें  जानती हैं ? अब आप ये मत कहियेगा !कि उन्हें मैं नहीं जानती क्योंकि उनकी पड़ोसन ,जिसके यहाँ आप नौकरी करती थीं ,मिसेज खन्ना ने मुझे सब बता दिया है, कि आप दोनों ही, एक -दूसरे को अच्छे से जानती थीं और दोनों का ही एक -दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास रहता था। वो कारण क्या था ?ये वो नहीं जान पाईं । 

हाथों में चाय की ट्रे लाकर ,मेज पर रखते हुए नीलिमा हँसते हुए बोली - आप यहाँ पूरा 'होमवर्क 'करके आये हैं। 

करना ही पड़ता है ,वहीं सब जानकारी मिल जाती तो यहाँ आना ही नहीं पड़ता। क्या ये बात ''जावेरी प्रसाद'' जी भी जानते हैं ?

अबकी बार नीलिमा थोड़ी गंभीर हो गयी और बोली -नहीं, जावेरी प्रसाद जी, नहीं जानते हैं, कि चांदनी और हमारा क्या रिश्ता था ?या हम पहले से ही एक दूसरे को जानते थे। न ही चांदनी यह चाहेगी, कि उन्हें इस बात का पता चले, कि चांदनी और कोई नहीं, हमारी नौकरानी चंपा ही है, चंपा ने ही, अपना नाम बदलकर चांदनी रख लिया है।

 इंस्पेक्टर यह खुलासा सुनकर, एकदम अचंभित रह गया चाय का घूंट भरते उसे लगा जैसे- मुंह जल गया इस तरह से मुँह बनाया और बोला -क्या जावेरी प्रसाद जी की पत्नी चंपा ही चांदनी थी ?

जी हां,इसीलिए आपको उसका चेहरा इतना जाना -पहचाना लग रहा था।  यही वह रहस्य था, जिसको जानने के लिए मिसेज खन्ना परेशान रहती थी। 

क्या, चांदनी ने आपको नहीं पहचाना ?

उसने हमें पहचान लिया, और हमारे रास्ते में कांटे भी बहुत बोये। 

मैं कुछ समझा नहीं, कैसे काटे बोये ?

एक गहरी सांस लेते हुए, नीलिमा बोली- जब उसे पता चला, कि कल्पना मेरी ही बेटी है। कल्पना  यहां रहकर ''फैशन डिजाइनिंग'' का कोर्स कर रही थी,तब उनके उस कॉलिज में एक प्रतियोगिता आयोजित की गयी और उस प्रतियोगिता की निर्णायक चांदनी ही थी। इतनी सुंदर-सुंदर डिजाइन होने के बावजूद भी उसने, मेरी बेटी कल्पना को, प्रतियोगिता से बाहर कर दिया। यह तो अच्छा हुआ, उस समय उसे संभालने के लिए तुषार वहां मौजूद था,इतने परिश्रम से मेरी बेटी ने रात -दिन एक करके डिजाइन बनाये थे। वो तो बिखर ही जाती। ऐसे में तुषार ने ही उसको संभाला।वह तुषार के साथ ही कार्य कर रही थी किंतु तुषार ने हमें यह नहीं बतलाया था-' कि वह उसी की सौतेली मां है।'और वो उसी के कारण, इतनी बड़ी कोठी छोड़कर किराये के मकान में रह रहा है।  

आप तो एक से एक रहस्य खोल रही हैं, आश्चर्य से विकास बोला। 

आप तो जानते ही हैं, उसके मेरे पति से कैसे संबंध थे ? यह वही चंपा है, जो हमें घर से बेघर करने पर तुली हुई थी। नीलिमा बात करते -करते अतीत की गहराइयों में कहीं खोते हुए बोली - यदि ये हमारी ज़िंदगी में नहीं आई होती तो शायद आज, धीरेन्द्र जिन्दा होते। उन विचारों को झटका देते हुए बोली -  क्या आप जानते हैं ? उसने जावेरी प्रसाद जी से विवाह कर लिया ,तब भी ,उसने हमारा पीछा नहीं छोड़ा, उनके पैसे के दम पर, उसने मुझे जालसाज़ी  के केस में फंसाना चाहा जिसके कारण वहां के लोगों में मेरे प्रति, जो आदर भाव था सम्मान था मैं वह सब खो चुकी थी।  लोग ही नहीं स्वयं चम्पकलाल जी का भी मुझ पर से विश्वास उठने लगा था।मुझे ही मालूम है उसके कारण मैंने कितना अपमान झेला? और उस जगह से मुँह छुपाकर भागना पड़ा। 

ओह !आपके साथ इतना सब हो गया ,ये सब क्या चम्पा ने किया ?आश्चर्य से इंस्पेक्टर ने पूछा। 

आजकल भलाई का तो जमाना ही नहीं ,जिसको हमने पढ़ाया ,अपने घर के सदस्य की तरह रखा ,उसी ने मेरे घर को बर्बाद कर दिया। नीलिमा अपनी बातें बताते -बताते यह भूल गयी थी कि इंस्पेक्टर उसी के गुम होने की छानबीन के लिए यहाँ आया है। 

ओह !तब तो आपको उस पर बड़ा क्रोध आया होगा। 

आपको क्या लगता है ?आना नहीं चाहिए था ,उसने तो पैसे वाले से विवाह करके यही सोच लिया था ,अब उसके सामने सभी कीड़े -मकोड़े हैं ,तभी तो कहते हैं -'थोथा चना ,बाजे घना। ''

क्या नीलिमा ने ,इंस्पेक्टर को यह सब बताकर सही किया ?उसे यह बताना चाहिए था या नहीं। कहीं इंस्पेक्टर उसके लिए मुसीबत तो खड़ी नहीं कर देगा। आइये !जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।   

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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