Sazishen [part 122]

इंस्पेक्टर विकास खन्ना को, ऐसा लग रहा था- कि चांदनी बाहर गई ही नहीं है और यदि वह बाहर नहीं गई है तो फिर कहां है ? इंस्पेक्टर ने उसके कमरे की तलाशी भी ली किंतु उसे तलाशी में भी, कुछ हाथ नहीं आया। कुछ बातों का उसे अवश्य पता चला, कि वह अपने सौतेले बेटे और उसकी बहू को पसंद नहीं करती थी। तब वह जावेरी प्रसाद जी से पूछता है -कि आपकी पत्नी तो आपसे उम्र में बहुत कम थी, तब आपका विवाह उनसे कैसे और किन परिस्थितियों में हुआ ? वह उनकी कहानी इसलिए जानना चाहता था ,शायद वहीं से, यह गुत्थी सुलझे। 


 तब उसे, जावेरी प्रसाद ने बताया -कि वह स्वयं भी हरिद्वार का रहने वाला ही है, और अपनी पुश्तैनी घर में, जाता रहता था। उन दिनों वह पत्नी के जाने से बड़ा ही परेशान रहता था, अपने को अकेला महसूस कर रहा था ,तब उसने विवाह करने का सोचा -उन्हीं दिनों उसे एक दलाल के माध्यम से पता चला, कि गरीबी के कारण एक व्यक्ति अपनी बेटी का विवाह करना चाहता है,और वह लड़की उम्र में काफी कम है। मेरे पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। उसका विवाह तो जब भी होना था, तब मैं ही क्यों न उससे विवाह कर लूं। मेरा अकेलापन भी दूर हो जाएगा, इस तरह हम दोनों का विवाह हो गया, उसके माता-पिता की आर्थिक मदद हो गई।

यह मदद नहीं ,उन्होंने तुमसे अपनी बेटी की कीमत ली है उन्होंने उसे बेचा है।

आप इसे जैसा भी समझें।   

जावेरी प्रसाद जी इसे सौदेबाजी कहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं उनका कोई , हम उम्र दोस्त हो। उस समय  परिस्थिति विपरीत होने के कारण, आपसे विवाह कर लिया और अब उसका पुराना प्रेमी आ गया हो , जिसके साथ वो चुपचाप यहां से भाग गई और आप लोगों को लग रहा है- न जाने, कहां चली गई वरना बिना बताए कौन जाता है ? आपको क्या लगता है ? 

जावेरी प्रसाद जी, ने इस नजरिए से तो सोचा ही नहीं था, तब वे बोले - मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं लगता, मैं तो अपने कार्य में व्यस्त रहता था ,तो मैं इस विषय में कुछ कह भी नहीं सकता। अब तो आपको छानबीन करने के पश्चात ही पता चलेगा। मेरी दृष्टि में तो कोई ऐसा नहीं लगता, जिसका उससे इस तरह का अनैतिक संबंध हो। तभी जैसे उन्हें कुछ याद आया और वह बोले -आपको उसका फोन तो मिला था आपने देखा होगा आपको क्या लगता है? उस फोन पर ऐसी कोई जानकारी थी या कोई ऐसा फोन नंबर था। 

नहीं अभी हमें कोई ऐसा फोन नंबर या जानकारी तो नहीं मिली है लेकिन हम इस केस के हर पहलू को सोचकर आगे बढ़ रहे हैं, इंस्पेक्टर ने जवाब दिया अच्छा अभी मैं चलता हूं , आपसे फिर मुलाकात होगी। 

इंस्पेक्टर तो चला गया लेकिन उसके जाने के पश्चात, जावेरी प्रसाद के मन में अनेक सवाल छोड़ गया। इंस्पेक्टर ने सही कहा था, हो सकता है, उसका कोई दोस्त हो , पहले न हो ,यहां बन गया हो। वह बाहर तो घूमती रहती थी, अक्सर बाहर ही , रहती थी।  बहु- बेटे के घर में आ जाने पर उसे पाबंदी का एहसास हो रहा होगा, तब उसने सोचा होगा -कि मुझे स्वतंत्र रूप से अपनी जिंदगी जितनी चाहिए और उस अनजान शख्स के साथ ही चली गई होगी किंतु एक बार मिल तो जाए तब मैं उससे पूछूंगा उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? मैंने तो उसके साथ कोई जबरदस्ती नहीं की थी। बल्कि विवाह के बदले में, उसके परिवार की बहुत ज्यादा ही आर्थिक सहायता की थी। 

दरवाजे की घंटीबजती  है, नीलिमा अभी, चंपकलाल जी से ही बात कर रही थी। न जाने, कौन हो सकता है ? घर में उसके और उसके बेटे अथर्व के सिवा और कोई नहीं था। वह स्वयं ही दरवाजा खोलने गई , सामने पुलिस को देखकर, थोड़ी हड़बड़ा सी गई और बोली -जी कहिए ! कहते हुए, दरवाजे पर ही खड़ी रही। 

जी,क्या आप ही ''नीलिमा सक्सेना ''है ?सीताराम रोकड़े ने पूछा। 

जी हां, हमें आपसे कुछ बात करनी है। 

क्या बात करनी है , किस सिलसिले में........ ?

 नीलिमा जी ! क्या आपने मुझे पहचाना नहीं , मैं इंस्पेक्टर विकास खन्ना, हम हरिद्वार में मिले थे, आगे आते हुए इंस्पेक्टर बोला।

 ओह ! आप ! मैं तो घबरा ही गई थी, कि मेरे दरवाजे पर पुलिस कैसे आ गई ? दरवाजे के सामने से हटते हुए बोली - आईये !

आपकी गलती नहीं है, अक्सर पुलिस को देखकर लोग ऐसे ही घबरा जाते हैं किंतु जिसने  कोई गलत कार्य किया ही नहीं है, वे डरते नहीं हैं । 

आपका कहने का मतलब क्या है ? क्या ,मैंने कोई गलत कार्य किया है मुस्कुराते हुए नीलिमा बोली -आप तो मुझे पहले से ही जानते हैं , कहिये ! कैसे आना हुआ ?पुलिस दरवाजे पर बिना कारण तो नहीं आएगी। 

हम इस समय ड्यूटी पर हैं, और एक केस  सिलसिले में आपसे मिलने आए हैं ? मन ही मन  नीलिमा सोच रही थी, कहीं ये  जावेरी प्रसाद का ही केस न हो किंतु अनजान बनते हुए बोली -कैसा केस ?

आप यह तो जानती ही हैं, कि मिसेज चांदनी लगभग पंद्रह -बीस दिनों से गायब हैं। 

जी हां, मैंने अपनी बेटी से सुना था। 

क्या, वे आपके सामने गायब नहीं हुई थीं ?

मेरे सामने गायब क्यों होगी, कुछ सोचते हुए, नीलिमा बोली। 

क्योंकि उन दिनों आप वहीं रह रही थीं , इंस्पेक्टर उसके चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयास कर रहा था। 

हां रह तो रही थी, कार्य ही ऐसा था, उसकी सास तो उसकी कोई मदद नहीं करती थी, ऐसे समय में मुझे ही जाना पड़ा, आप तो जानते ही हैं, कि मैं अकेली हूं और साथ में यह मेरा बेटा भी है, मुझे दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ गई। 

चांदनी जी, आपकी बेटी को क्यों पसंद नहीं करती थीं ? यह आपने कभी जानने का प्रयास नहीं किया। 

उसमें जानना कैसा ? वह तो, उसके व्यवहार से पता ही चल जाता था। कि वह कल्पना को पसंद नहीं करती है , इसका कारण उसका सौतेला बेटा तुषार भी है क्योंकि वह तुषार को भी पसंद नहीं करती थी।

मैंने सुना है ,आपकी दूसरी बेटी भी है। 

नीलिमा, शिवांगी को इस सबसे दूर रखना चाहती थी। तब वह बोली -देखिए ,इंस्पेक्टर साहब ! इस सब में मेरी छोटी बेटी को मत घसीटिये, उसका इस सबसे कोई लेना- देना नहीं है। 

यह आप कह रही हैं ? किंतु दमयंती ने तो हमें कुछ और ही बताया है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post