Mukt

मुक्त होना चाहता ,जीव !

हर बंधन ,हर परिधि से। 

अपनी ही परछाइयों ,छल !

झूठ ,दम्भ के झूठे वादों से। 


जीवन के मायाजाल में उलझा ,

मुक्ति चाहता,बेगाने रिश्तों से। 

चाहता है,मुक्ति दर्दभरी तन्हाइयों से। 

बोता रहा ,बीज़ ! चालाकियों के ,

मुक्ति चाहता है ,उनके अंकुरण से। 

जो बोया ,कटा नहीं, विकारों से।

मुक्त हो ,अपने भार से राहत चाहता है। 

लादा है,बोझ इतना कर्मों का ,

अब तो नामुमकिन लगता है। 

ये जीवन ,चला -चली का खेल लगता है।


[2]   

बेजान होते ,झूठे रिश्तों से ,

ज़बान के'' बेहूदे' शब्दों से ,

प्रलाप क्यों करना ?

अनावश्यक विषयों से। 

होना चाहती हूँ, मुक्त !

बेवजह की पाबंदियों से ,

मुक्ति चाहिए !

 जीवन की व्यथाओं से। 

जीवन लेता, परीक्षाएं ,

मुक्त होना चाहता। 

तमाम उद्वेलनाओं से। 

मुक्ति चाहिए !

गरल और शैतानी विचारों से। 

स्वतंत्र विचरण करती गगन में ,

मुक्त होती रूह !

सहज ,सरल ,सरस् प्रतीत होती है ?

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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