मुक्त होना चाहता ,जीव !
हर बंधन ,हर परिधि से।
अपनी ही परछाइयों ,छल !
झूठ ,दम्भ के झूठे वादों से।
जीवन के मायाजाल में उलझा ,
मुक्ति चाहता,बेगाने रिश्तों से।
चाहता है,मुक्ति दर्दभरी तन्हाइयों से।
बोता रहा ,बीज़ ! चालाकियों के ,
मुक्ति चाहता है ,उनके अंकुरण से।
जो बोया ,कटा नहीं, विकारों से।
मुक्त हो ,अपने भार से राहत चाहता है।
लादा है,बोझ इतना कर्मों का ,
अब तो नामुमकिन लगता है।
ये जीवन ,चला -चली का खेल लगता है।
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बेजान होते ,झूठे रिश्तों से ,
ज़बान के'' बेहूदे' शब्दों से ,
प्रलाप क्यों करना ?
अनावश्यक विषयों से।
होना चाहती हूँ, मुक्त !
बेवजह की पाबंदियों से ,
मुक्ति चाहिए !
जीवन की व्यथाओं से।
जीवन लेता, परीक्षाएं ,
मुक्त होना चाहता।
तमाम उद्वेलनाओं से।
मुक्ति चाहिए !
गरल और शैतानी विचारों से।
स्वतंत्र विचरण करती गगन में ,
मुक्त होती रूह !
सहज ,सरल ,सरस् प्रतीत होती है ?