Sazishen [part 119]

एक तरफ नीलिमा, चंपक और पूजा को मिलाने का प्रयास कर रही है, तो दूसरी तरफ उसकी अपनी बेटी कल्पना के ससुराल में पुलिस आ गयी है। बेटी का फोन आया तब नीलिमा ने उससे पूछा - पुलिसवालों का   क्या कहना है ?

बस, अभी पूछताछ ही चल रही है, ससुर भी कुछ समझ नहीं पा रहे हैं, कि वे गईं तो कहां गई होगीं  ? हमने सोचा था, उनका फोन नहीं लग रहा है, किंतु जब देखा, तो उनका फोन तो घर पर ही मिल गया , अपना फोन छोड़कर इस तरह वे कहां जा सकती हैं ?


अब यह बात मैं तुम्हें कैसे बता सकती हूं ? कि तुम्हारी सास कहां गई होगी ? मुझसे  तो कह कर नहीं गई, चलो! कुछ दिनों के लिए तो तुम्हारी सिरदर्दी समाप्त हुई, लापरवाही से नीलिमा बोली। 

मम्मी ऐसा मत कहिये !वो जैसी भी थीं , अपने पति को प्यारी थीं ,उनके लिए मेरे ससुर बहुत परेशान हैं। 

क्या तू भूल गयी? उसने तेरे और तेरे पति के साथ क्या -क्या किया है ?

 वह बात तो ठीक है किंतु घर से एक इंसान गायब हुआ है और उसका कुछ अता- पता ही नहीं ,यह बहुत बड़ी बात है। जब मेरे बेटा हुआ था, उसके कुछ दिनों पश्चात ही, वे गायब हो गई थीं , तब से ही नहीं मिल रहीं हैं। जैसे कल्पना को कुछ याद आया और उसने पूछा -वैसे मम्मा !उन दिनों तो आप और शिवांगी भी यहीं थे।क्या आप लोगों से भी कुछ नहीं कहा। 

वो किसी से सीधे मुँह बात ही नहीं करती थी ,तब भला हमें बताकर क्यों जाएगी ?

वो शिवांगी को ज्यादा पसंद करती थीं इसीलिए उन्होंने कभी उससे कहीं बाहर जाने या किसी से मिलने का जिक्र किया हो। शिवांगी कहाँ है ?मैं उससे ही मिलकर बात कर लेती हूँ। 

तू इस सबमें उसको मत खींच ,तेरी एक भी गलती, पुलिस के लिए उसको शक़ के घेरे में डालने के लिए काफी है। अब वह अपने काम में व्यस्त है ,उसे शांति से रहने दे ,तेरी सास ने उसका बहुत ही दिमाग खराब किया था। तूने पुलिस के सामने तनिक भी ऐसा कुछ कहा ,पुलिस यहाँ का रास्ता देख लेगी। हमारी शांति पूर्ण ज़िंदगी में हलचल मचा देगी। अपने घर की बला वहीं रख ,उसकी आंच यहाँ तक नहीं आनी चाहिए। वैसे तुझे क्यों उससे इतनी हमदर्दी हो रही है ?वो जिसकी भी ज़िंदगी में प्रवेश करती है ,उसे सुकून से रहने नहीं देती। वैसे तुमने पुलिस को क्या जवाब दिया ?

मैं क्या बताती? मुझसे क्या कभी कुछ कह कर गई हैं ? फोन करके भी नहीं पूछ सकते फोन भी यहीं  छोड़ कर गई हैं।

 तुम निश्चिंत रहो ! पुलिस अपने आप खोज लेगी। कहकर नीलिमा ने फोन रख दिया। मुझे जो भी करना होगा शीघ्र करना होगा, यह सोचते हुए उसने पूजा से बात करना चाहा, किंतु फोन वापस रख दिया और तैयार होकर पूजा के घर की तरफ चल दी। पूजा अपने कमरे में बैठी, किसी कार्य में संलग्न थी और उसका बेटा पढ़ रहा था। नीलिमा को देखकर बोली -आईये ! आईये ! कैसे आना हुआ ?

बस यहीं  से गुजर रही थी, सोचा -आपसे मिलती चलूँ । 

और बताइये ,आपकी बिटिया कैसी है ? जच्चा- बच्चा दोनों ठीक !

हां, सब ठीक है, पूजा नीलिमा के लिए काफी लेकर आती है। नीलिमा उससे पूछती है, अब आपने क्या सोचा ?

किस विषय में। 

उस दिन हम लोगों की बात हुई थी न....... परम को उसके परिवार से मिलाने के विषय में। 

यदि मैंने  ''परम'' को उसके परिवार से मिला दिया, तो मैं अकेली रह जाऊंगी , अब मेरा, यही तो सहारा है, मैं किसके सहारे जिऊंगी ?इसके दूर जाने के विषय में सोच भी नहीं सकती।  

आप भी उस परिवार में रहिए !

यह कैसी बात कर रही हैं ? उसे परिवार को मुझे अपनाना ही होता तो, वर्षों पहले अपना लिया होता।

उस समय परिस्थितियाँ  अलग थीं और आज अलग हैं,उस  परिवार में अब बचा ही कौन है ? सिर्फ मां ,बेटा !भरा -पूरा परिवार था ,घर में बच्चे की किलकारी न सुन सका।   शायद ईश्वर ने दादी को तो इसीलिए जिंदा रखा है, मरने से पहले अपने पोते का चेहरा देख सकें। 

क्यों, उनकी पत्नी और और लोग कहां हैं ? दादी काफी बुजुर्ग हो चुकी थीं  वह भी नहीं रही, और औलाद के गम में पत्नी भी नहीं रही। 

सुनकर पूजा को दुख हुआ और बोली -मैं यह नहीं कहती- कि मुझे उनकी हालत देखकर प्रसन्नता हुई किंतु इतना अ वश्य है शक्ति हूं कि'' भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। '' चंपक उसी के कारण मुझे ठुकरा कर चला गया था। 

अब किस्मत ने तुम लोगों को एक और मौका दिया है, क्यों, अपनी जिंदगी को एक मौका और नहीं देते। मैं जानती हूं तुमने अनेक परेशानियां झेली हैं किंतु अब समय है, उनमें सुधार करने का, कब तक उन्हीं बातों को लेकर तड़पते रहोगे ? आज भी तुम्हें चंपक से ही प्यार है। 

ऐसा तुम कैसे कह सकती हो ? जिसने मुझे इतना बड़ा धोखा दिया, मैं उससे प्यार क्यों करूंगी ?

मैं तुम अपने आप से पूछो ! क्या तुम्हारी जिंदगी में चंपक के सिवा कोई आया ही नहीं ? तुम चाहती तो, किसी भी अच्छे लड़के के साथ या डॉक्टर के साथ ही विवाह करके अपना परिवार बसा सकती थी किंतु आज भी चंपक की निशानी को साथ लिए, और उसके दर्द को, अपने जीने का सहारा बना लिया है। यह भी तुम्हारा एक तरीके से प्यार ही है वरना उसे कब का छोड़कर आगे बढ़ चुकी होतीं। 

तभी अचानक से बोली -क्या तुमने यहाँ का'' हेंगिंग गार्डन ''देखा है। 

जबसे यहाँ आई हूँ ,घूमने का ज्यादा समय ही नहीं मिला। वो यहाँ से काफी दूर  भी है। 

तो चलो !एक दिन,वहीं  पिकनिक मनाने चलते हैं।बच्चों का घूमना भी हो जायेगा ,जीवन में आपने भी बहुत परेशानियां देखी हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करना ,एक अकेली माँ का अपने बच्चे को पालना ,और काम भी करना,ये बात मैं नहीं समझूंगी तो और कौन समझेगा ?अब तो तुम्हारा बेटा बड़ा हो गया है।  लिए और उसके लिए समय निकालो !तो बताओ !कब चलना है ?

अभी एकदम से कैसे बता दूँ ?एक -दो दिन में जबाब देती हूँ। 

ठीक है ,अपने को तैयार कर लो ,फोन से हमें बता देना ,मैं भी अपनी बेटी से कह दूंगी ,वो भी छुट्टी ले लेगी ,अबकि बार रविवार को चलते हैं ,अभी पांच दिन बाक़ी हैं। क्या कहती हो ?पूजा ने हाँ में गर्दन हिलाई। तब नीलिमा उठ खड़ी हुई और बोली -ज़िंदगी को एक और मौका देकर तो देखो !क्या मालूम मुस्कुरा उठे। ''कहकर बाहर आ गयी।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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