Kohara or dhup

 ठिठुरन भरी ठंड को ,

आज ढ़का, कुहासे ने ,

 सब घरों में रहें ,  दुबके !

कहा- न आना,धूप के झाँसे में। 



ठंड में बाहर, कैसे निकलें ?

''कोहरे'' की मार बड़ी है। 

सब कुछ ढ़क डाला है। 

ठंड का चहुँ ओर बोलबाला है।

 

गरीब पर कैसी मार पड़ी है ?

यह बेहद ठंड की घड़ी है।

बस ,अब तो सुहाती रजाई है। 

धूप औ कोहरे ने होड़ लगाई है।

   

आज तनिक धूप जरा आई है। 

सूरज कैसा हरजाई है ? 

सम्पूर्ण प्रकृति अलसाई है। 

रूखे चेहरों पर चमक आई है।

  

तनिक मुस्कान जीवन में लहराई है।  

कुहासे की बेरूखी देखो ! 

कुहासे से धूप भी ठिठुराई है। 

संध्या से पूर्व ही धूप ने ली अंगड़ाई है।

 

कोहरे ने,सम्पूर्ण प्रकृति पर ,

अपनी चादर ओढ़ाई है।

घर बैठे ही ,लोगों ने पी चाय ,

कॉफी ,गज्जक रेवड़ी खाई है। 

[२]

 कोहरे की चादर ओढ़े ,

 आज भी खड़ा मैं,देता आसरा !

  निश्चल ,अडिग , स्तम्भ सा। 

रहा, खड़ा, देखता अविचल सा।

 

 मैने जीवन के हर रंग देखे। 

पतझड़ से मौसम बहार का। 

जीवन 'पादप'' सा छोटा  हो ,

या फिर कोई वृक्ष विशाल सा। 


देता रहा ,छाया और आसरा !

बांटता रहा ,खुशियाँ ,रसाबाद !

टूटता ,कटता होता रहा आबाद !

पंछियों ने, जब डाला अपना डेरा। 


धूप की चाहत, किसको नहीं ?

हर मौसम !मुझको है सहना।

जीवन मेरा ,गैरों का दुःख हरना।

मौसम कैसा भी हो ?सब है,सहना।  

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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