अरमानों की नैया पर, सवार होके ,
लो!चली मैं,उम्मीदों की पतवार लेके।
इक तरफ मैका मेरा.......
इक तरफ, बहारों की शाम लेके।
आई ,आशाओं ,उमंगों की बहार लेके।
तू ,कभी न आया ,प्रेम की सौगात लेके।
राह तेरी ,तकती रही,विश्वास की तार लेके।
चलती रही, रेत पर ,उम्मीदों के चिराग़ लेके।
नववर्ष -
परिंदों से पंख पसार,दिवस चले गए।
सपनों सी गईं,रातें.......
कुछ अरमान, उम्मीदें पूरी हुईं ,
कहने को बहुत कुछ था,रह गईं कुछ बातें !
कुछ चले गए ,कुछ छोड़ गए।
समय के पन्नों पर होगीं, नई मुलाकातें !
जो आया है,वो जाएगा ,
जीवन का अमूर्त सत्य बताकर चले गए।
वक़्त रहते , दे दो, बधाई !
मसरूफियत बढ़ जाएगी।
कुछ शिकायतें रह जाएंगीं।
कुछ यादें और बढ़ जाएगी।
''चिड़ियों की चहचाहट संग आएगी।
धानी चुनर ओढ़ प्रकृति मुस्कायेगी।
पीली सरसों पर, चल कर आएगी।
चैत्र मास में नव वर्ष की नवीन सुबह आएगी। ''