Sazishen [133]

आज इंस्पेक्टर विनोद खन्ना, पूरे आत्मविश्वास के साथ, जावेरी प्रसाद जी की कोठी में प्रवेश करता है और पूछता है- कि जावेरी प्रसाद जी कहां है ? उस समय जावेरी प्रसाद जी कहीं बाहर गए हुए थे किंतु तुषार घर पर ही था, वह तुषार से बोला -वह तुम्हारी सौतेली मां थी, तुम्हें उसका और उसको तुम्हारा यहां आना और  रहना पसंद नहीं था। तुम इस घर को छोड़कर पहले भी जा चुके थे। दोबारा तुम अपनी पत्नी के कहने पर आए। क्या यही सोच कर आए थे ? कि अब इस किस्से  को यही तमाम कर देंगे। 

इंस्पेक्टर साहब ! सोच समझकर और संभलकर बोलिए ! आप हम पर इल्जाम लगा रहे हैं।

  यह बातें कल्पना ने सुन ली थी और वह कमरे में आकर बोली -आपने यह बात कहने से पहले, एक बार भी नहीं सोचा, किससे और किसके विषय में कह रहे हैं ? उनका हमारा कोई मेल ही नहीं था किंतु जब पापा , उससे विवाह करके ले ही आए तो उसमें हम क्या कर सकते हैं ? किंतु तुषार भी तो इसी घर के बेटे हैं, क्या हमारा यहां रहने का अधिकार नहीं बनता है ?



यही अधिकार की भावना ही तो ,कभी-कभी इंसान से अपराध करवा देती है, इंस्पेक्टर बोला। 

तो आप क्या कहना चाहते हैं ? क्या ,आपको रिपोर्ट मिल गई, वह कंकाल किसका था ?

अबकी बारी पूरे सबूत के साथ आया हूं, यहां सब लोग ढूंढ रहे हैं कि चांदनी जी भी गायब हो गई हैं किंतु उन्हें गायब नहीं किया गया , न ही वह कहीं गई थीं , यहाँ तो सोच समझकर,उनकी हत्या हुई है। 

यानी कि वह कंकाल, चांदनी जी का ही है। यह सुनकर कल्पना रोने लगी। 

अब रोने से क्या लाभ होगा ? कोई भी कार्य करने से पहले सोच लेना चाहिए। जहां तक मैं देखता हूं या मैंने जाना है, यहां सभी उनके दुश्मन थे। कोई भी उन्हें पसंद नहीं करता था , आप दोनों के पास भी, हत्या करने का पूरा कारण था। 

इंस्पेक्टर साहब ! यह आप क्या कह रहे हैं ? भला हम उन्हें क्यों मारेंगे? तुषार इतनी देर से इंस्पेक्टर और कल्पना की बातें सुन रहा था किंतु अब उससे रुका नहीं गया और बोला -इंस्पेक्टर साहब ! बोलने से पहले जरा सोच तो लिया कीजिए कि आप किसको और क्या कह रहे हैं ?

मैं इस केस की तहकीकात कर रहा हूं , और मेरा कार्य आप मुझे समझाने का प्रयास न करें मुझे कब और किससे, कहां पर क्या कहना और करना है ? इस घर में एक हत्या हुई है , और कंकाल भी इसी घर में निकला है। यहां कोई बाहर का व्यक्ति तो आया नहीं होगा। तब घर वालों से ही पूछताछ की जाएगी, इंस्पेक्टर तर्क देते होते हुए बोला। 

इंस्पेक्टर साहब ! अब यह तो बता दीजिए ! अब उस स्थान की सफाई करवा दी जाए या नहीं , आप वहां से अपना सामान हटवाइए ! बाहर मीडिया भी आ रही है, मीडिया को किसने बताया ?

 किसी को बताने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जब कुछ ऐसा हादसा होता है तो यह लोग मधुमक्खी की तरह अपने आप ही आ जाते हैं। अभी तो आप मेरे प्रश्नों का जवाब ही नहीं दे पा रहे हैं ,तब  मीडिया के प्रश्नों का जवाब कैसे देंगे ?

 हमें किसी को कोई जवाब नहीं देना है, जब हमने ऐसा कुछ किया ही नहीं है , आप कैसे कह सकते हैं ? कि यह कार्य हमारा है। हमें तो पता ही नहीं था, वह तो पापा ने ही हमें बतलाया, कि चांदनी घर पर नहीं है। 

अब तुम उसका नाम ले रहे हो, रिश्ते में वो तुम्हारी माँ भी लगती थी। 

लगती थी ,माँ नहीं थी ,तुषार चिल्लाते हुए बोला। 

चीखो मत !

तब उसका नाम लेकर आप हमें बार -बार परेशान क्यों कर रहे हैं ?हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं था किंतु आप हमारे इस बयान के आधार पर हमें गुनहगार नहीं ठहरा सकते। वो कब आती थी ,कब जाती थी ?हमें उससे कोई मतलब नहीं था। उनका कमरा हम सबसे अलग था ,आपने तो देखा होगा। हम घर के इस हिस्से में किरायेदार की तरह रहते हैं किन्तु वो उस हिस्से में सबसे अलग रहती थीं। सभी नौकर भी ज़्यादातर उसका कहा ही मानते थे। उसके कमरे का एक दरवाजा बाहर गैलरी की तरफ खुलता है और दूसरा दरवाजा पीछे के बगीचे की तरफ खुलता है ,जो हमेशा बंद रहता है। 

तुषार के इतना कहते ही, इंस्पेक्टर का माथा ठनका ,उसने तो इस ओर ध्यान ही नहीं दिया था।क्या वहां एक और दरवाजा है ?किन्तु हमें दिखलाई नहीं दिया।  

वह तेज कदमों से चलता हुआ पुनः उसी कमरे में गया और बारीकी से निरीक्षण किया ,उस दरवाजे को आईने के पीछे छुपाया गया था। तब इंस्पेक्टर ने ,बाहर आकर तुषार से पूछा -क्या ये दरवाजा पहले से ही आईने के पीछे छुपाया गया था।

 मुझे नहीं मालूम ,जब मेरी माँ  जिन्दा थी ,तब मैं उस कमरे में जाता था। तब उस दरवाजे को मैंने देखा था ,माँ के जाने के पश्चात कभी उस कमरे में नहीं गया। 

क्या अब  नीलिमा जी नहीं आएँगी ? 

वो यहाँ आकर क्या करेंगी ? उनका बेटा है, जिसको उनकी सहायता की जरूरत हमेशा रहती है और बेटी है ,जो नौकरी कर रही है। 

तभी कल्पना  के बच्चे की रोने की आवाज आई ,और कल्पना वहां से चली गयी। तब इंस्पेक्टर ने तुषार से पूछा -तुम्हारे और शिवांगी के बीच क्या संबंध थे ?

ये क्या बात हुई ?आपको उस दिन तो बताया था ,जीजा -साली जैसे ही संबंध थे। 

किन्तु मैंने तो सुना है चांदनी जी ,कल्पना को पसंद न करके शिवांगी को ज्यादा पसंद करती थीं। कहीं ये नाराजगी ही तो उनकी मौत का कारण तो नहीं बन गयी।ये बात कुछ समझ नहीं आई ,घर का बेटा -बहु दुश्मन और बहु की बहन से अच्छे संबंध कुछ समझ नहीं आया।  

इसमें नाराजगी कैसी ? हर आदमी की अपनी पसंद होती है ,वे उसे ज्यादा पसंद करती थीं तो क्या हो गया ?इसका अर्थ ये तो नहीं ,हम दोनों ने उन्हें मिलकर मार डाला। 

अच्छा, अब मैं चलता हूं, शीघ्र ही मिलूँगा , कहते हुए उनके कमरे से बाहर निकल गया। जब वह बाहर आ रहा था तब उसे दमयंती आती  दिखलाई दी। जरा रुको ! तुमसे एक बात करनी है, कहते हुए उसे एक अलग स्थान पर ले गया। जहां पर तुषार या कल्पना के आने की उम्मीद ना हो। तब वह बोला -कल्पना की मां कब तक इस घर में ठहरी थी ? क्या उनके साथ उसकी बहन भी यहीं  रहती थी। 

हो ,साहिब ! तब  पूरा परिवार यहीं आकर रहने लगा था , कह रहे थे-कि उनकी बेटी अकेली है, बच्चे  को नहीं संभाल पाएगी। 

क्या चांदनी? उसके बच्चे को भी नहीं संभालती थी। 

नहीं साहब ! वह तो अलग ही रहती थी, उनकी दुनिया अलग ही थी।

 किंतु मैंने तो सुना है, वह उनकी छोटी बेटी को बहुत पसंद करती थी। यह बात सुनकर दमयंती थोड़ी देर के लिए चुप हो गई। 

क्या हुआ ? तुम शांत क्यों हो ? साहब बड़ी बहु को चिढ़ाने के लिए, छोटी का उपयोग करती थी। 

तो  क्या बड़ी चिढ़ी ?


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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