Sazishen [part 134]

इंस्पेक्टर विकास खन्ना, दमयंती से पूछताछ करता है ,वह जानना चाहता है कि शिवांगी को, चांदनी ज्यादा क्यों पसंद करती थी ?

दमयंती कहती है -साहिब ! ज्यादा तो कुछ नहीं मालूम, किंतु मैंने सुना है, वह उनसे पहले भी कहीं मिली थीं , छोटी बहन से ज्यादातर यह कहते सुना है कि तुम, तुषार के लायक थीं।  यह[कल्पना ] तुषार के लायक नहीं थी , यदि इनका विवाह नहीं हुआ होता, तो मैं तुम्हें इस घर की बहू बनाती। 

क्या ,चांदनी जी उनके विवाह में शामिल नहीं हुई थीं ?


नहीं साहिब !उन दोनों ने कोर्ट में जाकर विवाह किया था ,मालिक [जावेरी प्रसाद ]उनके साथ थे। 

क्या इस बात से शिवांगी नाराज नहीं होती थी? कि चांदनी उसकी बहन के लिए ऐसी सोच रखती है।  

नहीं, वह तो बहुत खुश रहती थीं बल्कि कभी-कभी तो उसे मम्मी जी कहकर पुकारती थी। 

और तुषार का क्या व्यवहार था ?

जब उनकी पत्नी के बेटा हुआ था, तब वह शिवांगी के साथ ज्यादा रहते थे,वह भी मैडम को कभी-कभी घूमने ले जाया करते थे और वह भी बहुत खुश रहती थी। एक बार तो क्या हुआ? साहिब ! कल्पना मैडम ने, अपनी बहन को जबरदस्ती घर भेजा किंतु वह जाना नहीं चाहती थी। 

अच्छा,यह कब हुआ ? क्या उन दोनों में कुछ झगड़ा भी हुआ था ?

यह तो मुझे नहीं मालूम, किंतु जब मैं उनके घर काम पर आई थी तब मैंने देखा, शिवांगी को जबरदस्ती, घर जाने के लिए उन्हें गाड़ी में बैठा रही थीं। 

क्या, उस समय नीलिमा जी यहां पर थीं या नहीं ? 

नहीं, शिवांगी बहाने से यही रुकना चाहती थी मुझे लगता है, तुषार बाबा भी उसकी और खींच रहा था इससे पहले की बात ज्यादा बढे इसीलिए उनकी पत्नी ने अपनी बहन को वहां से हटा दिया। 

ओह ! अब तुम यहां से जा सकती हो। 

साहिब !मेरा नाम मत लेना, वरना मेरी नौकरी चली जाएगी,इंस्पेक्टर को रोकते हुए दमयंती ने कहा।  

ठीक है, तुम जा सकती हो, कहते हुए , इंस्पेक्टर कोठी से बाहर निकल गया। तावड़े ! तुम्हें क्या लगता है ?

साहिब ! यह सब सुनकर, तो यही लगता है , इन दोनों बहनों में ,तुषार को लेकर कुछ लफड़ा तो हुआ होगा और चांदनी के कारण ही, इन दोनों बहनों में झगड़ा हुआ होगा और दोनों में से , किसी से यह हत्या हो गई है। 

ह्म्मम्म्म्म ! इंस्पेक्टर सोचते हुए बोला -उन दिनों तो नीलिमा भी यहां रहती थी, यह औरत भी सीधी नहीं है, मैं इसे हरिद्वार से जानता हूं किंतु जब तक इस  पर या इसके बच्चों पर आंच नहीं आएगी । तब तक वह किसी को कुछ नहीं कहेगी। दोनों बहनों के झगड़े के कारण, उसे लगा हो कि चांदनी उनके रिश्तों को खराब कर रही है,यही उस झगड़े की जड़ है।  यह सोचकर, उसने ही यह कार्य कर दिया हो। 

क्या ऐसा हो सकता है ?

अवश्य हो सकता है, पूरे विश्वास के साथ इंस्पेक्टर बोला -वह महिला अपने बच्चों के लिए अपने परिवार के लिए कुछ भी कर गुजर सकती है, यहां तक कि उसने अपने पति तक को नहीं बक्शा था। 

क्या कहते हैं ? साहिब !

चलो, आज उनसे मिलने चलते हैं, अभी तक वह अपनी बेटी को यहां से बचा रही थी, किंतु अब उसे हमारे सवालों के जवाब देने होंगे यह कहकर इंस्पेक्टर, नीलिमा के घर की तरफ मुड़ गया। 

आज नीलिमा थोड़ी भावुक हो गई थी। आज चंपकलाल जी, डॉक्टर पूजा के साथ, हरिद्वार के लिए प्रस्थान कर गए थे।अभी थोड़ी देर पहले वह उन्हें स्टेशन पर छोड़कर आई थी , उसका प्रयास सफल रहा, दो बरसों से बिछड़े दो दिलों को मिलाना चाहती थी, इसमें वह सफल रही, मन ही मन वह प्रसन्न थी और दुआ कर रही थी -अब तक जो भी परेशानियां उन्होंने देखी, अब  उनके जीवन के सभी संकट दूर हो जाए और खुशी-खुशी वह अपना बाकी का जीवन व्यतीत करें। इंस्पेक्टर को देखकर भी, उसके भाव नहीं बदले, और मुस्कुराते हुए बोली -और इंस्पेक्टर साहब! बताइए, कैसे आना हुआ ?

आज आप बड़ी प्रसन्न नजर आ रही हैं । 

जी , क्योंकि आज मेरे हाथों से एक अच्छा कार्य हुआ है। 

कैसा कार्य ? 

जिस संस्था में मैं कार्य करती थी, उसके संस्थापक चम्पकलाल जी बहुत दिनों से परेशान थे , यह कहकर उसने संपूर्ण घटना की जानकारी से इंस्पेक्टर को अवगत कराया। 

आपने यह अच्छा कार्य किया, एक अच्छा कार्य और कर दीजिए !

 वह क्या? गंभीर होते हुए नीलिमा ने पूछा। 

यह बात तो आपको मालूम हो ही गई होगी, कि चांदनी की हत्या हो चुकी है , आप उस दिन वहां आई थीं ।

जी जानती हूं , जावेरी प्रसाद जी के साथ और चांदनी के साथ बहुत बुरा हुआ। 

बस, उसी केस के सिलसिले में आप हमारी मदद कर दीजिए। 

बताइए !मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूं ?

हम ,बात को ज्यादा लंबा नहीं खींचते हैं, सीधे और स्पष्ट शब्दों में मैं, आपसे पूछना चाहता हूं कि चांदनी देवी यानी कि चंपा को आप भी पसंद नहीं करती थीं।  उसने आपके साथ बहुत ही अनुचित व्यवहार किया जो आप पहले भी बता चुकी हैं। क्या आप उससे बदला लेने के उद्देश्य ही से ही तो यहां नहीं आई हैं ?

यह कैसी बात कर रहे हैं ?आप ! मुझे क्या मालूम था? कि वह यहां मुंबई में रहती है, जो मैं उसके पीछे-पीछे यहां तक आऊंगी, मैं तो अपनी बेटी के पास रहने के लिए आई थी, क्योंकि उसने मेरा वहां रहना दूभर कर दिया था। उसने मुझे झूठे अपराध में फसाया था। यह बातें तो मैं आपको पहले भी बता चुकी हूं। दोबारा पूछने से क्या मतलब है ?

क्या यह एक मात्र संयोग था , कि आपने अपनी बेटी का विवाह, उन्हीं के सौतेले बेटे से क्यों किया ?

यह बात तो आप स्वयं ही कह रहे हैं, यह एक संयोग ही था। वह दोनों तो पहले से ही, एक दूसरे को पसंद करते थे सिर्फ मेरी बेटी ने मुझे बताया था किंतु हमें बाद में पता चला - कि वह तुषार की सौतेली मां है। 

जब आपको पता चल गया, तब भी आपने इस रिश्ते से इनकार नहीं किया। 

इनकार करने का प्रश्न ही नहीं उठता है, क्योंकि मुझे अपनी बेटी का विवाह उस लड़के से करना था ,उसकी माँ से नहीं ,स्वयं तुषार भी उसे पसंद नहीं करता था या यूं कह लीजिए ,वह तुषार को पसंद नहीं करती थी कभी तुषार ने हमें बताया भी नहीं कि वह जावेदी प्रसाद जी का बेटा है। वह तो स्वयं किराए के मकान में  रहता था किंतु जब मुझे पता चला, तब भी मैंने अपनी  बेटी  के प्यार की खातिर इनकार नहीं किया।

देख लीजिये !ये कैसी इंसानी फितरत है ?जब नीलिमा को पता चला,कि तुषार चम्पा के पति की पहली पत्नी का बेटा है, तब चम्पा के प्रति उसकी क्या सोच थी ?और अब इंस्पेक्टर के सामने क्या कह रही है ?इसीलिए तो इस कहानी लगातार पढ़ते रहिये !चलिए अब आगे बढ़ते हैं।  


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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