Sach or jhuth

सच- झूठ ,का निर्णय कोई कर पाया नहीं । 

क्या सच !और क्या झूठ !समझ पाया नहीं ?

सच लगता केरेले सा,सरलता से पचता नहीं।

इन दोनों को कोई ठीक से आंक पाया नहीं।   

मध्य दोनों के शब्दों और सोच का फासला है। 

झूठ में , सच छुपा बैठा,यह सच की परछाई है। 

एक जमीन तो दूजा......  गगन की रहनुमाई है।

विरोधी दोनों, एक प्रकाश तो दूजा अँधकार है। 


सच, सच्चा तब भी किसी ने अपनाया नहीं । 

झूँठ, फ़रेब को तो यह समझ ही आया नहीं । 

झूठ इमरती सा, फिर भी जा डूबा चाशनी में  

झूठ , नर्म  सहजता से समा जाता आँखों में।

 

सच ,एक परत में भी,ठीक दिख पाता नहीं ।

सामने होकर भी, समझ क्यों ?आता नहीं। 

ये ,झूठ के आडंबरों  में दबकर रह जाता है। 

सच सा साहस समीप किसी के आता नहीं।


झूठ दुबक -दुबक कर आगे बढ़ता  जाता है।

झूठ की तपिश में,इंसा झुलसकर रह जाता है। 

सच का,कठोर धरातल लहुलुहान कर जाता है।

सच का लबादा ओढ़कर भी झूठ चला आता है। 


न जाने, कितने मुस्कुराते चेहरों के पीछे झूठ छुपा बैठा है ?

न जाने, कितनी मोहब्बत की परतें चढ़ाई हैं ?अकड़े बैठा है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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