Gehari sazish [bonus chapter]

क्या तुम यहां, नौकरी करती हो ?

जी हां, यह आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं ? शिवांगी ने उस अनजान व्यक्ति से पूछा। 

क्या तुमने मुझे, इससे पहले नहीं देखा ? मैं भी तो यही नौकरी करता हूं। 

देखा भी हो, तो ध्यान नहीं दिया, क्या तुम्हें देखना जरूरी था ?

 मैं तो तुम्हें प्रतिदिन देखता हूं, तुम अपने ही विचारों में खोई रहती हो। 

इससे आपको कोई मतलब नहीं होना चाहिए। 



हम एक साथ नौकरी करते हैं, एक दूसरे के विषय में जानने- समझने का अधिकार तो हमें होना चाहिए , ताकि किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो, एक दूसरे की सहायता कर सके। 

मुझे किसी की भी सहायता की कोई आवश्यकता नहीं है, न ही मुझे,यहाँ  किसी को जानना समझना है , शिवांगी ने रूखे शब्दों में उससे कहा। 

क्या तुम मेरा नाम भी नहीं जानना चाहोगी ?

आवश्यकता ही नहीं है, क्यों जानना है ?

आप नहीं जानना चाहती हैं तो ठीक है, किंतु मैं ही बता देता हूं, मैं ''समर'' हूं और मैं इस कंपनी में मैनेजर हूं , मैं कुछ दिनों से छुट्टी पर था किंतु जब से आया हूं , तुम्हें अपने में ही खोये देखा है। क्या जिंदगी से इतनी नाराजगी ?

नहीं, नाराजगी तो नहीं है, किंतु लोगों पर विश्वास भी नहीं है, मैं न ही किसी के विषय में जानना चाहती हूं और न ही चाहती हूं कि कोई मुझे जाने।

समर, शिवांगी के गले में पड़े हुए कार्ड से उसका नाम देखकर कहता है -शिवांगी जी ! जिंदगी से इतना नाराज भी नहीं होना चाहिए, इतनी बुरी भी नहीं है, जितना हम समझ लेते हैं।  लगता है, गहरी चोट खाई है। 

आप मेरे विषय में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखला रहे हैं ? आपने मुझे एहसास करा दिया कि आप मेरे मैनेजर हैं , आपको जो कार्य चाहिए, आपको मिल जाएगा। 

मैंने आज तक आपसे कुछ नहीं कहा ,किंतु यह मत समझना कि आगे भी नहीं कहूंगा। आप जो अपना कार्य किसी दूसरे हाथ भेजती हैं ,वो सही नहीं है। आगे से अपना कार्य स्वयं ही लेकर आइये ! समर ने भी  उसी अंदाज में जवाब दिया और अपने केबिन में चला गया।

 शिवांगी उसके जवाब से तिलमिला गई, मन ही मन सोच रही थी -इसे मुझसे  क्या परेशानी हो सकती है, आखिर यह क्या चाहता है? समर इतने दिनों से, अपने केबिन में बैठा, उसकी एक-एक हरकत पर नजर रख रहा था तब उसने महसूस किया-  लड़की तो अच्छी है ? किंतु मुझे लगता है इसने जिंदगी में धोखा खाया है या अपनी जिंदगी से नाराज है, वही नाराजगी इसके व्यवहार में भी है। तब उसने ही पहल करने की सोची और आज शिवांगी से बात भी की, किंतु उसे वही रुखा जवाब मिला। वह शिवांगी के काम और उसके व्यवहार से प्रभावित तो था, किंतु कोई न कोई बात उन दोनों के मध्य पारदर्शी लकीर बनकर खींची हुई थी। उस लकीर के पार वह देख तो सकता था किन्तु जा नहीं पा रहा था। 

समर अपने व शिवांगी के मध्य बनी लकीर को पार करके, उसकी तरफ जाना चाहता था, उसे जानना और समझना चाहता था।आज वह उससे, बॉस बनकर ही मिल रहा था , जिसके कारण शिवांगी कभी-कभी तो खीज़ उठती। कभी उसका ध्यान बदलने का प्रयास करता, और उसे नया कार्य दे देता ताकि वह अपने कार्य में इतनी व्यस्त हो जाए कि अपने दर्द अपनी परेशानी को ही भूल जाए।

तू, ये समर सर से किस तरह से बात करती है ?वो हमारे सीनियर हैं ,आज तक कभी किसी से गलत तरीके से बात नहीं की ,उन्हें काम से ही मतलब रहता है किन्तु उन्होंने तुझे स्वयं बुलाया है।उत्सुकता से पूछा - क्या कह रहे थे ?

अरे वो ही ,तुम काम किसी दूसरे के हाथ क्यों भेजती हो ?अरे मेरी मर्जी ,तुम्हें काम से मतलब होना चाहिए ,तो कह रहे हैं -तुम्हें ही फाइल लेकर आनी होगी। 

वैसे वो बहुत अच्छे हैं ,हो सकता है ,उनका तुझ पर दिल आ गया हो ,तुझे अपने समीप बुलाना चाहते हैं,कहकर वो हंस दी।  

दिल ! माई फुट ,मैं ऐसे लोगों को बहुत अच्छे से जानती हूँ ,ज्यादा चिकचिक की तो छोडूंगी नहीं ,फिर चाहे मेरी नौकरी ही क्यों न चली जाये ?मन ही मन शिवांगी कड़वाहट से भर गयी ,सोचने लगी ,एक इंसान से प्यार किया तो था। क्या मिला ?वो अनजान बना रहा ,जिसने समझना चाहा ,जिस पर विश्वास किया वो मौक़ापरस्त निकली। सभी जगह फ़रेब भरा हुआ है। रिश्ते भी स्वार्थ से जुड़े हैं ,स्वार्थ पूरा ,रिश्ता समाप्त !

नीलिमा बहुत दिनों से देख रही थी, उसकी छोटी बेटी शिवांगी, हमेशा गंभीर रहती है, अब पहले की तरह हंसती - खिलखिलाती नहीं है, न जाने इसे क्या हुआ है ? मेरा बच्चा ! तुम ऐसी क्यों रहती हो ? अब तो सब कुछ ठीक हो गया है। 

क्या ठीक हुआ है ? मम्मा ! एक महिला की मौत हुई है, उसके पति जेल में हैं। 

 किंतु जैसा हमने सोचा था वैसा ही तो चल रहा था। तुम्हें मैंने बहुत पहले भी समझाने का प्रयास किया था किंतु तुम समझना ही नहीं चाहती थीं, वह तुम्हारी भावनाओं का लाभ उठा रही थी। मुझे बाद में पता चला, कि तुम तुषार को पसंद करती थीं , यदि विवाह नहीं होता तो हम कैसे न कैसे? इस बात को समझ लेते, शायद तेरी बहन कल्पना ही समझ जाती। बेटा, रिश्ता तो दोनों तरफ से होता है, यदि तुषार तुम्हें पसंद करता तो वह कल्पना से विवाह नहीं करता। क्यों, भ्रम में रहकर जीना चाहती हो ?वो महिला तुझे सब्ज़बाग दिखाकर भर्मित कर रही थी। 

मम्मा !मैं समझने का प्रयास कर रही हूं, अभी मुझे इन सब से बाहर निकलने में थोड़ा समय लगेगा। 

इतना समय भी न लग जाए, कि वह लौटाया न जा सके ,बिता हुआ समय वापस नहीं आ सकता। अपनी जिंदगी को एक नया मौका दो ! हम सफर पर चलते हैं, तब भी कई मोड़ आते हैं, हमें अपनी मंजिल पाने के लिए उन मोड़ों को पार करना होता है। यह भी तुम्हारी जिंदगी में एक मोड़ आया था, अब तुम्हें उस मोड से, मुड़कर आगे बढ़ जाना चाहिए। पीछे जाने से या पीछे मुड़कर देखने से कोई लाभ नहीं हे। जिंदगी यहीं समाप्त नहीं हो जाती, अब तुम्हारे पापा नहीं रहे तो क्या मैंने जीना छोड़ दिया ? मैं अपने बच्चों के साथ आगे बढ़ती रही हूं, तुम्हें भी आगे बढ़ना होगा। ठहरा हुआ पानी तो गंदा हो जाता है। कीचड़ भी बन जाता है। यदि तुम्हें कोई मिले, तुमसे प्यार करें तुम्हें समझना चाहे , तो आगे बढ़ जाओ ! मैं आज हूं कल नहीं , अपने भाई का ख्याल रखना और अपनी जिंदगी को संवार लेना किंतु मैं चाहती हूं मेरे जीते जी ही यह सब हो जाए। 

मम्मा ! आप ऐसी बातें क्यों करती है ?

यही तो जिंदगी की हकीकत है, सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए , जो अटल सत्य है ! उसको हम झुठला नहीं  सकते हैं। मानव को एक न एक दिन जाना ही होता है ,मैं हमेशा तुम लोगो के साथ नहीं रहूंगी ,इस भ्र्म में क्यों जीना चाहती हो ? नीलिमा की बातों ने असर किया। धीरे-धीरे शिवांगी के व्यवहार में बदलाव आने लगा , अब वह जिंदगी को नए नजरिये से देखने लगी। 

आज नववर्ष की रात्रि पर,उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी 

  शिवांगी को लगता था, समर बहुत खड़ूस है, और मुझसे जबरन ही ज्यादा काम ले रहा है।समर सोचता था -ये ऐसी नहीं है ,जैसी अपने को दिखाती है। दोनों एक -दूसरे से प्रभावित तो थे , तब भी दोनों के बीच नजदीकियाँ नहीं बढ़ पा रही थीं। आज पूरे दफ्तर में, सजावट हो रही थी, नए साल के उपलक्ष में, तैयारी चल रही थीं। अनेक खेल, और नाच -गाने का प्रबंध किया गया था। जहां पर न कोई बॉस होगा, और न कोई सहयोगी सब मिलजुल कर, मौज- मस्ती करेंगे। 

आज शिवांगी भी, लाल रंग की एक सुंदर ड्रेस पहन कर आई थी। आज कुछ ज्यादा ही गज़ब ढा रही थी ,वह प्रसन्न दिखलाई दे रही थी। शायद ,इस कार्यक्रम का असर है। सभी ने खूब खेल खेले,आज समर को देखकर भी ,चुप नहीं हुई और मुस्कुराई। समर ! यही तो चाहता था,उसे लगता था -ये लड़की अवश्य ही मन में कोई दर्द पाले  हुए है ,जब पहली बार उसे देखा था ,मन में बस गयी थी किन्तु उसका उदास चेहरा उसे अच्छा नहीं लग रहा था। वह चाहता था ,अन्य लड़कियों की तरह ये भी प्रसन्न रहे उससे बात करना चाहता था ,किन्तु अब धीरे -धीरे उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा।

वो उदास ,अकड़ू ,घमंडी लड़की कहाँ गयी ?समर ने उसके नजदीक आकर पूछा। 

मुझे क्या मालूम ?आप किसके विषय में बात कर रहे हैं ? मैं किसी ऐसी लड़की को नहीं जानती। 

ऐसी, एक लड़की यहाँ आती थी, दिल में तो आती थी किन्तु जेहन में नहीं आती थी। शिवांगी समर के करीब बैठकर उसकी बातें ध्यान से सुनने लगी ,और कुछ बताइये ! उसके विषय में। 

अब उसके विषय में तुम्हें क्या बतलाऊँ ?तभी एकदम से उसकी तरफ मुड़कर देखा और पूछा - क्या तुम ऐसी लड़की को जानती हो ,जो अपनी ''नाक पर मक्खी भी बैठने नहीं देती थी। ''

नहीं, मैंने ऐसी किसी लड़की को नहीं देखा ,मैं तो एक भोली -भाली, सीधी -सच्ची लड़की को जानती हूँ। 

मैं उस लड़की से पूछना चाहता हूँ ,क्या वो सीधी -सच्ची,प्यारी लड़की ,समर को पसंद करती है। 

वो खड़ूस !जो अपना सारा काम भी उसी से करवा लेता है। 

हाँ -हाँ वही जो तुम्हारी मेहनत के बल पर अपना घर चला रहा है ,अब वो खड़ूस चाहता है ,कि अकड़ू ,घमंडी लड़की को अपने घर ले जाये, उसके दिल के साथ -साथ उसके घर की मालकिन भी बन जाये । 

उस खड़ूस ने ,उसमें ऐसा क्या देख लिया ?मुँह बनाते हुए शिवांगी ने पूछा। 

उस पर दिल जो आ गया है ,तभी शिल्पा आकर बोली -आओ !जल्दी अब तुम्हारा नृत्य होगा। शिवांगी को अपने साथ खेंचकर ले गयी। आज शिवांगी ने भी ,टूटकर नृत्य किया -''स्वांसो की माला संग, सिमरु मैं ,पी का नाम। ''

आज बहुत दिनों पश्चात, शिवांगी समर को अपने घर लेकर आई और अपनी मां से मिलवाया -शिवांगी के बदले हुए व्यवहार से वह महसूस कर रही थी, अवश्य ही, इसकी जिंदगी में कोई आ गया है किंतु कभी उससे पूछा नहीं, सोचती थी - जब समय आएगा,यह अपने आप ही बता देगी। समर को अपने सामने देखकर नीलिमा समझ गई कि यही वह लड़का है जो मेरी बेटी की जिंदगी में खुशियां लेकर आया है , उसके मन में जीने की उमंगें जगाई हैं।

 थोड़ी औपचारिक बातें होने के पश्चात, समर ने नीलिमा से कहा -कहने को तो मैं इसका बॉस हूं किंतु यह हमेशा मेरी बॉस बन कर रही है। अब यदि मेरी यह मेरी जिंदगी में नहीं आई , तो मुझे लगता है -मुझ पर कौन हुकूमत करेगा ? मुझे इसकी आदत जो पड़ गई है, मैं चाहता हूं, आपका यह 'अनमोल हीरा' मुझे मिल जाए, कहकर मुस्कुराने लगा। 

समर के इस तरह बोलने पर, शिवांगी चिढ़ गई और बोली-तुम ,मम्मा  से मेरा हाथ मांगने आए हो, या शिकायतें करने आए हो। इस तरह से हाथ मांगा जाता है, जब किसी से कोई चीज मांगते हैं, तो याचना करनी पड़ती है, याचक बनकर मेरा हाथ मांगो। 

यह याचक कैसे रहा ?  नीलिमा  ने पूछा , अरे जिसने मेरी अनमोल लड़की को पसंद कर लिया वह तो वैसे ही धनवान हो गया। मुझसे  कुछ मांगने की आवश्यकता ही नहीं , कहकर नीलिमा ही हंस दी। 

यह हुई न बात ! आंटी जी तो मुझे आज्ञा हैं,आपका यह अनमोल भार मैं अपने ऊपर ले लूँ।  

तुमने किसे आंटी कहा? नीलिमा एकदम गंभीर होते हुए बोली -अब मम्मी कहने का समय है, आंटी नहीं अब शीघ्र ही अपने मम्मी -पापा को ले आओ ! और अपनी अमानत को यहां से ले जाओ ! इसकी रक्षा करते -करते मैं बूढी होती जा रही हूँ ,यह बात सुनकर सभी हंसने लगे। 

एक दिन अचानक कल्पना घर आ गई और बोली -मम्मा ! आपने मेरी सभी परेशानियां सरलता से हल कर दीं। आपने भी न क्या योजना बनाई थी? बहुत ही अच्छी योजना थी। 

नहीं, नहीं ऐसा कुछ नहीं है ,बस समय के साथ मैं ढलती चली गई ,योजना भी कारगर होती चली गई और तुम्हारी सभी परेशानियां भी मैंने दूर कर दीं। 

आप, इतना सब कैसे सोच लेती हैं ?

अपने बच्चों की खातिर सोचना  ही पड़ता है, मैंने जब चंपा को उस घर में, तुम्हारी सास के रूप में देखा था। मैं तभी समझ गई थी, यह तुम्हें चैन से नहीं जीने देगी, उससे पहले मैं चम्पा को पहचान गयी थी किंतु यह नहीं जानती थी यही तुम्हारी सास बन जाएगी। तुषार इसका ही सौतेला बेटा है , इसे मैं मजा चखाना  चाहती हूं ,जो उसने मेरी जिंदगी के साथ किया है , उसका दंड तो उसे मिलना ही चाहिए था। हम भी इंसान हैं, और गलतियाँ तो हर इंसान से होती हैं , लेकिन जो इंसान, जान बूझ कर बार-बार गलतियां कर रहा है। उसके लिए क्षमा नहीं है। वह तुम्हारी जिंदगी में कांटे ही बोती रहती औरएक दिन जब मैंने देखा कि वह शिवांगी को भी बरगला रही है, इसके कर्मों की सजा तो इसको भुगतनी ही होगी।

 एक दिन जावेरी प्रसाद जी के रहते , किंतु उनसे छुपकर मैंने उससे  बात की और मैंने उन्हें यह दिखला दिया कि इसकी हकीकत क्या है ? मैं जानती थी ,वे बाहर खड़े होकर ही मेरी बातें सुन रहे हैं और मैं जानबूझकर उन्हें सुना रही थी। उन्हें मैंने बतलाया -कि उसने मेरी सौतन बनने का किस तरह से प्रयास किया ? अब तुम मेरी बेटी को बरगला रही हो और मेरी बड़ी बेटी का घर बर्बाद करना चाहती हो।

 वे सभी बातें जावेरी प्रसाद जी ने सुन ली थी। मैंने उनके अंदर का क्रोध देखा था, उन दिनों में वैसे ही वे चंपा के व्यवहार से परेशान थे और चंपा ने उनसे जबअपने मन की बात कही , तो उनका क्रोध बेकाबू हो गया और उन्होंने उसे धक्का दे दिया जिसके कारण वह उस कोने से टकराकर मर गई।अब उस घर की तू अकेली मालकिन है ,तेरी बहन को उसने बरगलाया था ,अब वो भी समर की तरफ बढ़ रही है। अब मेरी दोनों बेटियां अपनी -अपनी जगह खुश रहेंगी। बस इस बात का दुःख है ,हमारी इस योजना में जावेरी प्रसाद जी काम आये ,उन्हें जेल जाना पड़ा ,गहरी स्वांस लेते हुए नीलिमा मुस्कुरा दी।   



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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