आजादी कितना सुंदर और अमूल्य शब्द है ? आजादी यानी स्वतंत्रता कौन नहीं चाहता ?हर इंसान को आजाद रहने का अधिकार है। ईश्वर ने सबको समान रूप से और स्वतंत्र बनाया है, सबको अपने-अपने विचारों के आधार पर, अपने अस्तित्व को स्वतंत्र रखने का अधिकार है। पिंजरे में एक पंछी भी यदि वह बंद रहता है, तो वह भी आजाद होने के लिए अपने पंख फड़फड़ाता है ,फिर चाहे वह पिंजरा, सोने का ही क्यों न हो ? पिंजरे में बंद रहने पर तो वह अपनी उड़ान भी भूल जायेगा, पंखों को फड़फड़ाना भूल जाता है इसी प्रकार इंसान भी यदि गुलाम रहता है, किसी के दबाव में रहता है तो उसकी सोच और उसके शब्द स्वतंत्र नहीं होंगे। हर मनुष्य को जीने का अधिकार है ,इसी प्रकार स्वतंत्र रहने का भी अधिकार है।
हमारे देश के अनेक लोगों ने, स्वतंत्रता के महत्व को समझा और तब उन्होंने वर्षों की गुलामी के पश्चात अपने देश को स्वतंत्र करने का बीड़ा उठाया। यह आजादी हमें यूं ही नहीं मिल गई , इस आजादी को प्राप्त करने के लिए, अनेक लोगों ने अपने देश के लिए बलिदान दिए,अनेक त्याग किये। कुछ ऐसे नेता हुए हैं जिनके नाम हम जानते हैं,जैसे -बापू ,सुभाषचंद्र बोस ,चंद्रशेखर आजाद ,भगत सिंह ,सरदार वल्लभ भाई पटेल इत्यादि देश प्रेमी ,आजादी के दीवाने हुए किंतु कुछ लोग तो ऐसे हैं जो गुमनाम ही शहीद हो गए।
जीव हो या इंसान सभी को स्वतंत्रता का अधिकार मिलना चाहिए। देश ही नहीं बल्कि इंसान को अपनी सोच और अपने व्यक्तित्व की भी रक्षा करनी चाहिए। उसे अपने विचारों से भी, स्वतंत्र होना चाहिए। ऐसे विचार जो देश और समाज के लिए, उदाहरण हों ,हमें अपनी आजादी की रक्षा करनी चाहिए किंतु अपने देश के प्रति भी अपने कर्तव्य निभाने चाहिए।
हमारे देश में अनेक बाहरी विदेशी लोग आए, मुगल भी उनमें से एक थे। उसके पश्चात ,अंग्रेजों ने भी यहां पर शासन किया जिसके कारण हम ही नहीं, हमारी सोच भी कुंठित होकर रह गई। तब हमारे देश के नेताओं ने, लोगों ने मिलकर ,अपने को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाया। जिसके परिणाम स्वरूप अनेक बलिदानों के पश्चात ,हमें यह आजादी प्राप्त हुई। हम अंग्रेजों से तो स्वतंत्र हो चुके हैं किंतु अभी भी अपनी कुंठित मानसिकता से आजाद नहीं हुए हैं। हमें अपने देश को तरक्की की राह पर आगे बढ़ाना है और यह तभी संभव हो सकता है जब हम सभी मिलकर एक अच्छी सोच के साथ आगे बढ़ें ।
यह कार्य सबके मिलजुलकर करने से होता है। कभी एक व्यक्ति स्वतंत्र होकर नहीं रह सकता ,दूसरे उसे अपने साथ खींच लेंगे। अकेले में इतनी शक्ति नहीं हो सकती कि वह अकेला ही वह बीड़ा उठाएं। इससे एक कबूतरों की कहानी स्मरण हो आई -जब बहेलिए ने सभी कबूतरों को पकड़ने के लिए ,जाल डाल दिया था और दाने के लालच में भूखे कबूतर उस जाल में फंस गए, तब उन्होंने एकसाथ मिलकर ही, उस जाल को उड़ा कर ले गए और अपने साथी चूहे के पास चले गए ,चूहे ने जाल काट दिया और वो सभी स्वतंत्र हो गए इसी प्रकार यदि एक कबूतर चाहता तो वह नहीं जाल को नहीं उड़ाकर ले जा सकता था सबको मिलकर ही कार्य करना होता है, इसी में देश ,समाज और परिवार की भलाई होती है आजाद रहने से व्यक्ति का अस्तित्व निखरकर आता है ,उसकी सोच किसी पर निर्भर नहीं होती।