Lo basant aa gaya

सुनो, सखी ! बसंत बेला आई है। 

हर्षित हो, मन में, खुशियां समाई हैं। 

प्रफुल्लित हृदय में, प्रेमरस समाया। 

प्रकृति का आंचल झूमकर लहराया।

 


धानी चुनर ओढ़ प्रकृति ने ली अंगड़ाई है।

पीत वर्ण,पुष्पों ने प्रकृति कैसी सजाई है ?

पावन धरा...... ! आज सजी इठलाई  है। 

आम्र मंजरी ने, डाली -डाली महकाई है।   


नवयौवना सी ये धरा ! आज मुस्कुराई है  

भ्र्मरों ने स्व  गुंजन से प्रेम धुन सुनाई है।  

देखो ! मधुमास में रंगों की बहार आई है। 

वीणा वादिनी की धुन प्रकृति में समाई है। 


पीले चावल और केसर की महक आई है। 

अब  शरद ऋतु ने, बसंत को दी बधाई है।

पीत वर्ण धरा से ,शिशिर ने ली विदाई है।

हरित डाल पर बैठ,श्यामा ने कूक सुनाई है।  

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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