Mayajaal

कनक मुद्रिका देख, मन ललचाया जाए। 

तराशा उसे इस तरह, मुंह से निकले हाय !  

ऊपर कुंदन की चमक,नीचे विषैला नाग है।

मन के भाव उमड़े ,देख ! कुछ कहा न जाये।


  आकर्षण कुछ ऐसा,मनोहर! कैसा ये पाश है ? 

बाहरी आकर्षण में उलझा, समझा न ये छल है। 

माया का यह जाल कैसा?छुपा विषधर नाग है। 

आकर्षण से परिपूर्ण, जीवन सा उजला साज़ है। 


 जीवन सी पिटारी में बंद , आकर्षण बहुतेरे हैं। 

 मोह -माया, छल ,लोभ, जैसे जग में फैले नाग हैं। 

चमक !इस जग की, जिसमें उलझा यह संसार है।

फूल हैं ,यदि जीवन में , तो काँटों का भी साथ है।  


पुरानी यादें -

स्मृतियां हैं बहुत, उन यादों का मेला है। 

भीड़ में रहकर भी, हर कोई अकेला है। 

बन जाते रिश्ते ,बहुतेरे समय के संग संग,

न जाने, कौन निभाता ? इनको कब तक ?

यादें ज़हन में रह जातीं, जीवन है तब तक। 

जिन रिश्तों से लगाया, उम्मीदों का रेला है। 

वहीं रह गया, पूर्व धुंधली यादों का मेला है।

ज़िंदगी ने , जीवन से खेल ये कैसा खेला है ? 

कुछ यादें आज भी निभा रही अपनी बातें हैं। 

कुछ वादों के किस्से, कुछ यादों के हिस्से। 

गम और तनहाई संग , उल्फतों ने घेरा है।

आज फिर से उन्हीं, यादों ने डाला डेरा है।   

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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