कनक मुद्रिका देख, मन ललचाया जाए।
तराशा उसे इस तरह, मुंह से निकले हाय !
ऊपर कुंदन की चमक,नीचे विषैला नाग है।
मन के भाव उमड़े ,देख ! कुछ कहा न जाये।
आकर्षण कुछ ऐसा,मनोहर! कैसा ये पाश है ?
बाहरी आकर्षण में उलझा, समझा न ये छल है।
माया का यह जाल कैसा?छुपा विषधर नाग है।
आकर्षण से परिपूर्ण, जीवन सा उजला साज़ है।
जीवन सी पिटारी में बंद , आकर्षण बहुतेरे हैं।
मोह -माया, छल ,लोभ, जैसे जग में फैले नाग हैं।
चमक !इस जग की, जिसमें उलझा यह संसार है।
फूल हैं ,यदि जीवन में , तो काँटों का भी साथ है।
पुरानी यादें -
स्मृतियां हैं बहुत, उन यादों का मेला है।
भीड़ में रहकर भी, हर कोई अकेला है।
बन जाते रिश्ते ,बहुतेरे समय के संग संग,
न जाने, कौन निभाता ? इनको कब तक ?
यादें ज़हन में रह जातीं, जीवन है तब तक।
जिन रिश्तों से लगाया, उम्मीदों का रेला है।
वहीं रह गया, पूर्व धुंधली यादों का मेला है।
ज़िंदगी ने , जीवन से खेल ये कैसा खेला है ?
कुछ यादें आज भी निभा रही अपनी बातें हैं।
कुछ वादों के किस्से, कुछ यादों के हिस्से।
गम और तनहाई संग , उल्फतों ने घेरा है।
आज फिर से उन्हीं, यादों ने डाला डेरा है।