बचपन के वो दिन भी, क्या, दिन थे ?
दोस्तों संग ,खेलना -कूदना, जीतना।
मित भाषी ,मौन रह जीवन समझना।
खींचता, नवीन वस्तुओं का आकर्षण।
विकल मन,जानने- समझने का प्रयास।
छल -कपट न ईर्ष्या,दोस्तों संग जाना।
स्वयं ही सब , करने का प्रयास करना।
किसी मित्र के झूठ -छल से आहत होना।
छोड़ उसे,अकेले जीवन में आगे बढ़ना।
सच्चे दोस्त से, उम्रभर साथ निभाना।
बचपन के दोस्त मिले, जब पचपन में।
गंभीर हो गए थे ,कुछ अधेड़ हो गये थे।
मुस्कुराहट आज भी खिली चेहरों पर,
जब बचपन के मित्र एकत्र हो गए थे।
वे दिन याद कर फिर से जवान हो गए थे।
ज़िंदगी से कुछ दर्द मिले ,कुछ शिकवे थे
आई नमी को, मुस्कुराहटों से छुपा गए थे।
मिले तज़ुर्बों से, कुछ समझदार हो गये थे।
चाहत थी ,बचपन को एक बार जीने की ,
उन्हें एहसास हुआ पचपन के हो गए थे।
घुटनों में थोड़ा दर्द है,थुलथुले हो गए थे।
उछलकूद से परे, कुछ' दादा' हो गए थे।
आज उनके मित्र, पोते -पोती बन गए थे।
संग खेलते उनसे, फिर से बच्चे हो गए थे।
खेल -खेल में करते कोशिशें ,धुंआ उड़ाने की ,
अब वही खेल रहे,दोस्त स्याने जो हो गए थे।
खेलते रमी,करते चैट!बदलीआदतें बचपन की,
गुल्ली -डंडा ! अब वे खेल पुराने जो हो गए थे।
बचपन के दोस्त,पचपन में भी स्याने हो गए थे।