Ganv ki dayan

''डायन ''तो 'डायन' होती है, अब इसमें शहर की क्या या गांव की क्या ? 'डायन' शब्द से ही पता चल जाता है। यह भी नारी जाति का ही एक रूप है। एक औरत ही डायन हो सकती है।  औरत ही औरत को' डायन' भी कह देती है। इसका क्या कारण हो सकता है ? क्या किसी ने डायन को देखा है ? वह कैसी होती है? शक्ल- सूरत से कैसी होती है? इंसानों जैसी या फिर हैवानों जैसी। इंसान, तो डायनों  पर भी भारी पड़ जाता है क्योंकि उसने इंसानों को धर्म और जाति में ही नहीं, बल्कि डायनों को भी गांव की और शहरी कहकर  उन्हें भी बांट दिया है। अब हम स्वभावनुसार भी डायनों को दो हिस्सों में विभाजित करते हैं- अच्छी डायन और बुरी डायन भी होती होगीं।


 खैर ! डायन कैसी भी रही हों, हमारा तो उनसे कोई पाला नहीं पड़ा है और न ही पड़ने वाला है, किंतु मुझे लगता है -जो सुंदर और खूबसूरत होती हैं और लोगों के घर बर्बाद कर देती हैं, उनके बसे- बसाये  घर को तोड़ देती हैं।  तो तब एक औरत, जिसका दिल टूटता है, जिसका घर टूटता है, वह, उस औरत को 'डायन' ही समझ लेती है। 

उस महिला का उस दूसरी महिला को' डायन' कहना सही भी बनता है, जिस औरत का घर टूट रहा है, उसका पति उससे छीन लिया है , इस दुनिया में उससे बड़ी 'डायन 'उसे और कौन नजर आएगी ?

'डायन' का प्रकार एक दूसरा भी है, जो डायन गरीब होती है, सबसे बड़ा दुख तो उसे इसी बात का है कि वह एक' गरीब डायन' है। हर पुरुष, उसकी गरीबी पर तरस नहीं खाता, किंतु उसकी जवानी पर तरस अवश्य  खाता है। उसकी जिंदगी में सबसे बड़ा दुख तो ,यही है कि वह गरीब है। ऐसे में यदि वह किसी व्यक्ति के संपर्क में नहीं आती है, अपने चरित्र और अस्मिता को बचाए रखना चाहती है। तब उसे उसके सम्पर्क में आने वाले लोगों से कठोर होना होगा और उनसे रुखा व्यवहार करना होगा। तभी वह इस समाज से अपने को बचा कर रख सकती है और उसके इस व्यवहार के कारण, उसे डायन की उपाधि से संबोधित किया जाए या सुशोभित किया जाए तो गलत नहीं होगा। सुंदर और गरीब, बेबस, लाचार डायन , शहर में भी मिल सकती हैं और गांव में भी मिल जाती है। 

और तो और जो महिला, समय से पहले विधवा हो गई, या किसी के बच्चे नहीं हुए तो उनको भी कुछ महिलाएं डायन कहकर ही पुकारती थीं। यह दोष उनका नहीं था, यह दोस्त स्थिति का था, क्योंकि यदि कोई जवान विधवा होती है और साथ ही साथ वह सुंदर भी है, तो अन्य महिलाओं को उससे डर होता था, कहीं हमारे पति को, उससे  हमदर्दी न हो जाए और हमारा बसा -बसाया घर, जिसे हमने इतने  परिश्रम से सजाया है ,असमय टूट न जाए इसलिए भी उनकी [विधवा महिला की ]अवहेलना की जाती थी।

 जिस महिला के घर में बच्चों की किलकारियां नहीं गूंजती थी,उसे भी 'डायन 'कह देते थे, बल्कि आजकल तो यह धीरे-धीरे फैशन में शामिल होता जा रहा है।जो महिलाएं बच्चा पैदा करना ही नहीं चाहतीं , वो बच्चे गोद ले लेती हैं। उनका शारीरिक सौष्ठव भी बना रहता है। इसी  के साथ-साथ पला -पलाया बच्चा भी मिल जाता है किंतु उस समय में, जब लोग सोचते थे , कि वंश की परंपरा को चलाने के लिए, घर में दो-चार बच्चे तो होने ही चाहिए और जिस महिला के एक भी बच्चा नहीं होता उन्हें' बांझ' के नाम से संबोधित किया जाता था।

 इतने पर भी उस औरत की ममता नहीं मरती थी, और वह जब ललचायी नजरों से दूसरे के बच्चे को देखती , उसकी ममता उमड़ती ,अन्य महिलाओं को उससे कोई हमदर्दी नहीं होती और उसे 'डायन' के नाम से संबोधित कर देते उन्हें लगता यदि यह हमारे बच्चे के पास आएगी तो इसकी बुरी नजर लग जाएगी। उसकी ममता उन्हें दिखलाई नहीं देती थी।  ऐसा नहीं है ,कि सब सही थी पुत्ररत्न  की प्राप्ति के लिए , बहुत सी महिलाएं अपने, मार्ग से चलते-चलते किसी अन्य मार्ग की तरफ चल देती थीं। तंत्र मंत्र, जादू -टोना करने लगती थीं जिसके परिणाम स्वरुप कुछ बच्चों को हानि भी हो जाती थी। तब उन्हें 'बच्चा चोर ''या डायन' के नाम से संबोधित किया जाता था।

डायन हो या चुड़ैल ! नारी जाति में से ही , उसके कर्मों के आधार पर उसे संबोधित किया जाता था बाकी कोई ऐसी' चुड़ैल जाति' नहीं है या उसका कोई विशिष्ट रूप नहीं है। अब वह डायन गांव की हो या शहर की क्या फर्क पड़ता है ? झाड़ू वाली चुड़ैल ,उड़ती चुड़ैल ,चोटी वाली चुड़ैल ये सब कहानी -किस्सों की चुड़ैलें हैं। 


प्यारी डायन -

एक डायन ,प्यारी कैसे हो सकती है ?

यदि वह प्यारी है ,तो डायन नहीं हो सकती। 

रूप बदल  सकती है ,अपनी फितरत नहीं।

'दूध' पिलाया सर्प को,'' विष ''ही उगलेगा।  

कितना भी प्यार से पालो ?अंत में वही डसेगा।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post