Balika vadhu [43]

सरस्वती के जाने के पश्चात, परिवार में, दुख समा गया था। सभी का मन दुखी था, सरस्वती से मिलने के लिए, रामखिलावन और प्रेम ने, बहुत प्रयास किया, किंतु उन्हें सरस्वती नहीं मिली। तब उन्होंने पुलिस में, इसकी सूचना देना ही उचित समझा। उन्हें लगा -अब उनकी सहायता पुलिस ही कर सकती है किंतु उस समय पुलिस ने , इनकी बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। दिया भी हो, उनके व्यवहार से प्रेम और उसके पिता दोनों ही क्षुब्ध थे। अगले दिन, एक सिपाही उनके घर के द्वार पर आता है और कुछ पूछताछ करता है। थोड़ी बहुत जानकारी के पश्चात, वह अपना अनुमान बताता है, मुझे लगता है -वह निकाह नहीं, कोर्ट में जाकर विवाह करेंगी। 

यह सुनकर दोनों बाप -बेटा परेशान हो जाते हैं और पूछा -यह बात आप इतने विश्वास से कैसे कह सकते हैं ?


इसमें यकीन क्या करना ?अधिकतर पढ़े -लिखे युवा ऐसा ही करते हैं।

तब वे उस पुलिसवाले से कहते हैं - हम लोग भी उधर जा रहे हैं, और आप भी हमारे पीछे आ जाइए ! आप पता लगाइए ! क्या यह बात सही है ?

हां, वहां पर पहले से ही रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है , इससे हमें जानकारी मिल सकती है। उसके पश्चात, यदि वहां उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है ,तब आगे की प्रक्रिया आरंभ करेंगे, कहकर वह पुलिस वाला वहां चला जाता है।

पुलिस वाले की बात सुनकर, रामखिलावन के मन में अपनी बेटी से मिलने की उत्कंठा बलवती हो जाती है और वह उठ खड़े होते हैं और प्रेम से कहते हैं -चलो ! एक बार वहां भी देख आते हैं, उन्हें सरस्वती के मिलने की पूरी उम्मीद लग रही थी। इसी इच्छा के चलते, उनका थका हुआ शरीर पुनर्जीवित हो उठा था।प्रेम ने उनकी तरफ देखा और पूछा -हम वहां क्यों जा रहे हैं ?

क्या मतलब ?अपनी बेटी के पास जा रहे हैं ,उन्हें प्रेम का यह सवाल मूर्खतापूर्ण लगा। 

मेरा मतलब है ,हम क्या वहां गवाह बनने जा रहे हैं ,यदि वे वहां विवाह कर रही हैं ,तो हम क्या कर सकते हैं ?हमारा जाना व्यर्थ है। 

व्यर्थ नहीं ,एक उम्मीद है ,हम वहां जाकर उसे मनाएंगे और उसे, उस विवाह को न करने के लिए समझायेंगे। प्रेम को उम्मीद तो नहीं थी ,किन्तु वृद्ध होते पिता की आँखों में आई विश्वास की चमक को समय से पहले कमजोर पड़ने देना नहीं चाहता था। दोनों बाप- बेटा, कोर्ट में पहुंच जाते हैं। जगह-जगह पूछताछ करने पर बड़ी मुश्किल से पता चलता है, कि इस नाम के युवक और युवती कल कोर्ट में शादी के लिए आ रहे हैं। 

चलिए, पापा !अब हम चलते हैं, रामखिलावन जी जानना चाहते थे -कि उन्होंने वहां का कुछ पता तो लिखवाया होगा कि यह लोग कहां से आ रहे हैं ? किंतु उन्होंने कोई भी ऐसी जानकारी देने से इनकार कर दिया। तब प्रेम दृढ़ संकल्प से बोला -कल आते हैं। 

अब उनका एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा था , किंतु उन्हें कल तक  का इंतजार तो करना ही होगा। एक उम्मीद जाग गई थी कि बेटी को समझा -बुझाकर,कैसे भी हो, अपने साथ ले आएंगे। अंगूरी ने भी समझाया-वहां पर कोई भी, बखेड़ा मत करना ! अपनी बेटी को समझाने का प्रयास करना और उसे प्यार से अपने घर वापस ले आना। इन्हीं बातों को सोचते -सोचते, चिंतन -मनन करते-करते, अगला दिन भी आ गया। एक-एक पल, एक-एक वर्ष के समान लग रहा था। तभी प्रेम के मन में एक विचार आया-यदि अरशद और सरस्वती यह दोनों ही नहीं हुये, कोई और हुआ तो क्या होगा ? अपने पिता से कहना चाहता था , किंतु उनकी मानसिक की स्थिति को देखते हुए वह शांत रहा। अपने मन के विचारों को वहीं पर दफन कर दिया। 

जब वे लोग वहां पहुंचे, 9:00 बजे थे,अभी तक तो कोई नहीं आया था। वे वहीं खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा करने लगे। बेचैनी से बार -बार घड़ी देख रहे थे ,कभी आते हुए लोगों में उन्हें ढूंढने का प्रयास करते। कुछ लोग आ चुके थे। तब तक वो पुलिसवाला भी आ चुका था,उसे एहतियात के तौर पर बुलाया गया था। वो भी खानापूर्ति के लिए आ गया था। प्रेम ने वकील से पूछा - वे लोग कब आ  हैं ?उसी ने तो उनकी सहायता की थी। 

उन्हें 11:00 बजे तक का समय दिया गया था,अभी वो ये बता ही रहा था ,तभी लगभग 10:30 बजे के करीब दुल्हन के वस्त्रों में, उन्हें सरस्वती दिखलाइ दी। 

बेटी को देखकर, रामखिलावन तो जैसे निढ़ाल हो गए , भावुक होकर, रो देना चाहते थे अपने को नियंत्रित करते रहे किंतु संभाल नहीं पा रहे थे और वही बेंच पर बैठ गए। प्रेम को इतनी सामाजिक जानकारी नहीं थी किंतु इतना छोटा भी नहीं था वह अपनी बहन को किसी और के साथ देखकर ,अपने को संभाल न सका । वह सीधा सरस्वती के पास पहुंच गया, उसे देखते ही सरस्वती के  चेहरे की मुस्कान ,गायब हो गयी और बोली -तुम यहाँ ! 

प्रेम को तो जैसे उसके ऐसे व्यवहार की आदत सी हो गई थी , सरस्वती को देखते ही बोला -आपको हम लोगों की कुछ परवाह है या नहीं , तीन दिनों से हम लोग आपको ढूंढ रहे हैं। बिना बताए कहां चली गई थीं ? तुमने एक बार भी विवाह करने से पहले, हमसे पूछा या हमें बताने का प्रयास भी नहीं किया। अब  मिल ही गई हो, तो चलो !घर चलते हैं ,मां का रो-रो कर बुरा हाल है।सरस्वती के साथ जो लोग आये थे ,उनसे तो जैसे प्रेम को कोई मतलब ही नहीं था ,न ही, उसने उस ओर ध्यान दिया।  

सरस्वती ने, प्रेम की बात सुनी और अपने साथ आए लोगों की तरफ देखा और बोली -मैं अभी कहीं नहीं जा रही हूं , मेरी शादी होने वाली है। 

यह तुम क्या बकवास कर रही हो ? तुमने देखा नहीं ,सामने पापा बैठे हैं, उनकी क्या हालत हो चुकी है ? तुम उनसे मिलने भी नहीं चलोगी। प्रेम के बार-बार कहने पर, वह अपने पिता से मिलने के लिए आगे बढ़ती है तुरंत ही अरशद उसका हाथ पकड़ लेता है और कहता है -शीघ्र ही हमारा नंबर आने वाला है, कहीं  इधर-उधर नहीं जाना है उसे जैसे ड़र था कि कहीं ये अपने परिवार के बहकावे में न आ जाये। 

हाँ ,अभी आती हूँ ,कहकर प्रेम के साथ चली जाती है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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