प्रेम ,अपनी बहन सरस्वती से कहता है -उसे पापा बुला रहे हैं ,तब सरस्वती न जाने ,क्या सोचकर उनसे मिलने के लिए तैयार हो जाती है ?
किन्तु तभी उसे अरशद रोककर कहता है-तुम्हें जल्दी आना होगा।
उसके इस तरह सरस्वती को रोकने के कारण प्रेम को क्रोध आता है और उससे कहता है - तुम कौन होते हो ?इन्हें रोकने वाले, अपने पिता से मिलने जा रही हैं, प्रेम आगे बढ़कर बोला। अरशद ने प्रेम की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया।
तब सरस्वती बोली -अभी आती हूं, कहकर अपने पिता की तरफ आगे बढ़ गई और अपने पिता के सामने जा खड़ी हुई।
रामखिलावन जी ने जब अपनी बेटी को उस रूप में देखा, तो उनका हृदय रो दिया -वर्षों से तमन्ना थी, तुम्हें इस रूप में देखने की किंतु इस तरह देखना पड़ेगा यह नहीं सोचा था। बेटा ! तेरी मां घर पर तेरी प्रतीक्षा कर रही है, चल !अपनी मां से मिल ले,वो भावुक हो गए थे।
रामखिलावन इतना बूढ़ा भी नहीं था ,किन्तु लगता था ,बेटी के दुःख ने उसे समय से पहले बूढ़ा कर दिया।
पापा मैं आऊंगी,आज मेरी शादी है ,उसके पश्चात हम दोनों साथ में आएंगे कहकर वापस जाने लगी।
नहीं ,तू अभी हमारे साथ चल !वो सिपाही भी साथ में ही था। विवश होकर उससे बोले -साहब !आप इसे समझाइये। ये यह शादी न करे।
देखिये ! मैं इसे समझाने का प्रयास कर सकता हूँ किन्तु आपको भी समझना चाहिए ,अब ये बालिग है ,इससे हम जबरदस्ती नहीं कर सकते और न ही आप !इसको अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है ,अब आपकी समझदारी तो इसी में है ,इसे आप आशीर्वाद देकर विदा कीजिये। आपकी जबरदस्ती से यहां व्यर्थ में ही बखेड़ा खड़ा हो जायेगा।
साहब !आप यह क्या कह रहे हैं ?वर्षों से जिसे पाल -पोषकर इतना बड़ा किया उसे कैसे अंधे कुंएं में ढकेल दें ?कहते हुए रामखिलावन अपने को और अधिक संभाल न सका और रोने लगा।
तुम समझते क्यों नहीं ? जब वो स्वयं ही कुएं में गिरना चाहती है ,तो उसे कैसे रोका जा सकता है ?
ऐसा आप कह सकते हैं ,किन्तु मैं उसे इस तरह अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने नहीं दूंगा। कहते हुए उसने अपनी बेटी की तरफ कातर नजरों से देखा और प्रेम से बोला -उसे बुलाकर ला !
पापा ! वो सुननेवाली नहीं है ,अब तो आपको यही सोचना होगा ,हमारे कोई बेटी थी ही नहीं,अपने क्रोध को दबाते हुए प्रेम बोला।
अरे उसे बचा ले !न जाने ,ये लोग इसे कहाँ ले जायेंगे ? एक बार उसे ले आ !
न चाहते हुए भी ,प्रेम सरस्वती के समीप गया और बोला -आपको, पापा बुला रहे हैं।
अभी ,कैसे आ सकती हूँ ?हमारा नंबर आने वाला है ,अरशद प्रेम की तरफ देख मुस्कुराया,तब सरस्वती से बोला -थोड़ी देर की ही बात है ,जाओ !आखिरी बार मिल लो !हो सकता है,कुछ कहना चाहते हों। जब नंबर आएगा तो मैं तुम्हें बुला लूंगा। वो प्रेम को दिखला देना चाहता है कि देखो !मेरा इस पर कितना प्रभाव है ?या फिर वो इतना अच्छा है ,जैसा दिखा रहा है।
जैसे ही सरस्वती ,उनके करीब आई ,इससे पहले की कुछ कहती बाप ने उसके पैरों में अपनी पगड़ी रख दी और कातर स्वर में बोला -बेटी ,घर की इज्जत होती है ,परिवार का मान होती है। मैं तेरे पैरों पर अपनी पगड़ी रखता हूँ ,अभी भी देर नहीं हुई ,चल अपने घर चलते हैं। तेरी माँ अभी भी दरवाजे पर खड़ी तेरी राह ताक रही होगी।
सरस्वती को,अपने पिता पर तरस आना तो दूर ,बल्कि उनके इस व्यवहार पर उसे क्रोध ही आया। जब उसके जीवन में ऐसा ख़ुशी का मौका आया है ,ये उसमें खलल डाल रहे हैं। तभी अरशद की आवाज आई -शाहीन आओ !वो तुरंत ही बाप की पगड़ी को छोड़ उधर दौड़ पड़ी। उसका नाम सुनकर दोनों आश्चर्यचकित रह गए ,अब वो उनकी सरस्वती नहीं ,शाहीन जो बन गयी थी।
रामखिलावन के मष्तिष्क में ये शब्द हथौड़े की तरह लग रहे थे -शाहीन !शाहीन ! उसने कितने प्यार से अपनी बेटी का नाम रखा था ?सरस्वती !और आज ये शाहीन है। रामखिलावन उठा और प्रेम से बोला -चलो !
कहाँ ?
घर वापस चलो ! ये मेरी बेटी नहीं ,प्रेम ने अपने पिता को सहारा देकर खड़ा किया और उनके सर पर पगड़ी रखी और दोनों बाप -बेटा वहां से चल दिए। उन्हें जाते हुए ,शाहीन देख रही थी किन्तु अपने परिवार से जुदा होने का शायद उसे इतना दुःख नहीं था ,जितना अपने नए जीवन में प्रवेश करने की उत्कंठा। उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और आगे बढ़ गई। पुलिस वाला भी शायद समझ चुका था, कि यहां खड़े रहने का अब कोई लाभ नहीं है।
घर जाकर रामखिलावन बिस्तर पर लेट गया, अंगूरी ने इधर-उधर देखा और पूछा -क्या सरस्वती नहीं मिली ? प्रेम कुछ कहना चाहता था, किंतु रामखिलावन ने उसे रोक दिया और बोला -हमारी सरस्वती खो गई है, हमारी सरस्वती इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो गई है , उसका मिलना अब नामुमकिन है, कहते हुए रोने लगा। रामखिलावन अब ऐसा लग रहा था जैसे उसमें जान ही नहीं बची है। वर्षों से बीमार रहा है, बेटी ने इतना बड़ा विश्वासघात जो किया था। अब तो मन को समझाने की भी कोई वजह ही नहीं बची है।बिस्तर पर लेटे-लेटे अंगूरी से बोला -बहुत प्यास लगी है, थोड़ा पानी पिला दो !
अंगूरी पानी लेने अंदर चली गई, तब वह प्रेम से बोला -सामान बांध लो ! कल हम अपने घर, अपने गांव वापस जाएंगे। प्रेम पूछना चाहता था -' क्या मुझे यहां रहकर अब पढ़ाई नहीं करनी है किंतु उसे यह अपना प्रश्न इन परिस्थितियों में कुछ बोना सा लगा और वह चुपचाप अपने कमरे में चला गया।
अगले दिन,संपूर्ण सामान समेटकर वह लोग, गांव वापस आ गए। गांव के लोग बड़े ही प्रसन्न मुद्रा में, खुश होते हुए उनसे मिले और बोले -अब तो बेटी के पास कई दिनों तक रहकर आए हो ! किंतु बीमार लग रहे हो क्या सब ठीक है ?
रामखिलावन ने हाँ में गर्दन हिलाई, जबरदस्ती मुस्कुराने का प्रयास भी किया। घर आकर सोचने लगा, अब तो यह बात हमने छुपा दी है कि बेटी ने ग़ैर धर्म के लड़के से कानूनन विवाह कर लिया है किंतु कब तक ?जब गांव के लोग पूछेंगे -कि बेटी का विवाह कब कर रहे हो या बेटी कहां है ? तो वह क्या जवाब देगा ? लोग उसे ताने मारेंगे। वह ये सब कैसे सहन करेगा ?अपने मन को समझाना चाहता था ,उसकी ज़िंदगी थी ,विवाह तो तब भी करना था। अब वो कैसे भी जिए या मरे मेरी बला से...... बेटी के मरने की बात सोच उसकी रूह काँप गयी ,उसे श्राप भी नहीं दे सकता ,मैंने ऐसा सोचा भी क्यों ?
अंगूरी ने ,प्रेम से सारी बातें पूछीं और दुःखी मन अपने बिस्तर पर लेट गयी।