प्रेम ने, अपनी माँ से बताया- कि पुलिस भी ,उनकी सहायता करना नहीं चाहती,उल्टे हमें ही समझाकर भेज रही थी। इतनी सारी परेशानी एक साथ आकर खड़ी हो गयीं ,प्रेम परेशानी महसूस कर रहा था, उधर उसके पिता को तो जैसे सदमा ही लग गया ,वो कुछ बोल ही नहीं रहे थे। प्रेम अपना क्रोध भी किस पर निकाले ?माँ से बोला - और पढ़ा लो !उन्हें, लड़कियों को आजादी देनी चाहिए , आजादी का यह परिणाम निकला है, यह मायका, इस घर के लोग,उनकी ज़िंदगी में कोई मायने नहीं रखते। यह घर उनके लिए सराय की तरह है, सराय में आदमी आता है, खाता- पीता है, सोता है ,आराम करता है और फिर चला जाता है। वे भी पढ़ीं -लिखीं , जब सक्षम हो गईं , तो सराय से बाहर आ गई उनके लिए मां-बाप, परिवार किसी का कोई महत्व नहीं है। वह रिश्ते जो अब तक चलते आ रहे थे, उनका कोई महत्व नहीं है और जो अब नए रिश्ते बने हैं, उन पर जान भी न्योछावर है , प्रेम! व्यंग्य और आवेश से बोला।
ऐसा नहीं है, इस उम्र में कभी-कभी आदमी बहकावे में आ जाता है, यह उम्र ही ऐसी होती है, इसमें ही तो अपनों का साथ बहुत जरूरी होता है, ताकि वह बात को उसे ठीक से समझाएं ,उसे सही -गलत की जानकारी दें।
मां की बात सुनकर, प्रेम झुँझला गया और बोला-अरे, कोई समझने वाला भी तो हो, उसे ही तो समझाया जाता है जो समझना चाहता है और जो समझना ही नहीं चाहता है, उसे कैसे समझाया जा सकता है ?क्रोध की अधिकता ,विवशता के कारण प्रेम रोने लगा।
उसकी बात सुनकर अंगूरी सहम गई। कुछ देर चुप रही, जबरदस्ती घर में काम ढूंढने का प्रयास कर रही थी। मन बेचैन था, क्या करें ? किससे पूछे ? कहां जाए ? आंखों में आंसू भर आए, सोचने लगी -और मन ही मन बोली -सरस्वती, मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी , क्या हम तुम्हारे लिए बुरा करते, या बुरा सोचते ? कम से कम अपने दिल की बात, अपनी मां से तो कहकर देखी होती , तूने तो वह मौका भी नहीं दिया। एकदम से ही पराया कर दिया। ऐसे समय में पति और पुत्र को क्या समझाएं ? वे अपनी जगह सही हैं किंतु एक बार अपनी बेटी से मिलकर उसे समझाना चाहती थीं -उसका ये फैसला कहीं गलत तो नहीं है किंतु किससे कहें ? वह तो यहां है ही नहीं। ऐसी नाराजगी में पुत्र को समझाना भी तो गलत ही है ,इससे उसका गुस्सा और भड़केगा। अंदर ही अंदर रामखिलावन के विषय में सोचकर, हृदय हिल गया, कहीं इन्हे कुछ हो ना जाए। चुपचाप बैठे हैं, कुछ जवाब ही नहीं दे रहे, न ही, कुछ कह- सुन रहे हैं। अंगूरी बौराई सी हो गई, हृदय की घुटन, गले की सिसकियों में बढ़ती जा रही थी, कहीं पति या बेटा न सुन लें यही सोचकर, अपनी धोती का पल्ला मुंह पर रखा और अंदर कमरे में भाग गई ,वहां जाकर जोर-जोर से रोने लगी।
एक तरफ बेटी, अपने विवाह की तैयारी में व्यस्त है, दूसरी तरफ उसके माता-पिता उन पलों को सोच रहे थे-जब सरस्वती उनकी जिंदगी में आई थी, कितनी खुशियां लेकर आई थी ? हम दोनों कितने प्रसन्न थे ?उसके साथ ही, उनके कितने अरमान भी उससे जुड़ गए थे ? सोचते थे, इसे घर पर रखकर, या गांव में रहकर इसकी जिंदगी को बर्बाद नहीं करेंगे। इसे पढ़ा- लिखाकर, स्वावलंबी बनाएंगे ! हमारी बेटी, हमारे घर का ही नहीं , हमारे गांव का नाम भी रोशन करेगी इसीलिए तो उसका नाम सरस्वती रखा था, सरस्वती इसके हृदय में निवास करेगी।
सरस्वती की मां ! सुनती हो, मैं तो सोच रहा हूं, इसका बाहर के शहर में ही, कहीं दाखिला करवा देता हूं।
रामखिलावन की बात सुनकर, अंगूरी हंसने लगी और बोली -बाप बनने की खुशी में क्या बोरा गए हो ? अभी हमारी बेटी 2 साल की हुई है, अभी ठीक से बोलना भी नहीं सीखी है।
हम इसके भविष्य के लिए अभी नहीं सोचेंगे तो और कब सोचेंगे ? यह तो पहले से ही निश्चय करना होगा कि इसको कहां पढ़ाना है ? मैंने सुना है, शहर में दाखिले इतनी आसानी से नहीं होते।
सब कुछ हो जाता है, यदि बच्चा होशियार है, तो उसका कहीं भी दाखिला हो सकता है, आप चिंतित ना हो समय जैसा आएगा, वैसे ही हम आगे बढ़ते जाएंगे। अभी तो हम इस गांव के स्कूल में ही दाखिला दिलवाएंगे अभी बहुत छोटी है। थोड़ी समझदार हो जाएगी आठवीं के बाद यहां स्कूल है भी नहीं, उसके पश्चात देखते हैं क्या करना है ? आप इतने उतावले मत होइए ! यह सभी बातें सोचकर, रामखिलावन को लगा जैसे कोई उसका सीना खींच रहा है , उसे अंदर से कोई कचोट रहा है, इससे पहले कि वह कुछ और ज्यादा महसूस करता तभी बाहर, किसी ने दरवाजा खटखटाया। घर में तो जैसे, भूत लोट रहे थे, इतना सन्नाटा पसरा हुआ था। उसे दरवाजे की खटखटाहट भी, कानों को चुभ रही थी। लगता था, जैसे- किसी में इतनी शक्ति ही नहीं, कि वह उठकर दरवाजा खोल दें। तब प्रेम उठता है और दरवाजा खोलता है। उसके सामने एक पुलिस वाला खड़ा था। जी कहिए !
आपके कथनानुसार , हमने अरशद और सरस्वती की तलाश की थी। आप लोग यह तो जानते नहीं है, कि अरशद किस कंपनी में काम करता था ? आपकी बेटी के साथ ही था या उसकी अलग कंपनी थी।
जी, उसकी अलग कंपनी थी लेकिन कंपनी का नाम मुझे भी पता नहीं है।ये सभी बातें हम थाने में भी इत्मीनान से कर सकते थे किन्तु आप लोग तो जैसे हमारी बात सुनना ही नहीं चाहते थे।
उसने प्रेम की बातों को नजरअंदाज किया और बोला -वही तो....... यहां पर सैकड़ो कंपनियां खुली हुई हैं , अब ऐसे में, किस-किसके पास जाकर 'अरशद' नाम के व्यक्ति को ढूंढे या उसके विषय में पूछें ?
साहब !आप यह क्या कह रहे हैं ? एक आम आदमी की सहायता पुलिस नहीं करेगी तो और कौन करेगा ?
पुलिसवाला बड़बड़ाया -पहले तो बच्चों का ध्यान नहीं रखते ,उन्हें इतनी छूट दे देते हैं और जब वे ऐसी हरकतें करते हैं ,तो हमारी भागा- दौड़ी हो जाती है।
क्या, आप कुछ कह रहे हैं ?
पुलिसवाले ने कोई स्पष्टीकरण देना नहीं चाहा और बोला -हमें लगता है ,तुम्हारी बहन का निक़ाह नहीं होगा बल्कि वो कोर्ट में जाकर विवाह करेगी।
साहब !आपको कैसे मालूम हुआ ?