कभी उठती, कभी गिरती,
कभी मचलती सी जिंदगी नजर आती है।
कभी बदहवास दौड़ती,
तो कभी दम लेने को थम सी जाती है।
कभी अपनों से मिलाती,
रिश्तों की, पहचान कराती नजर आती है।
कभी रंगों भरी, फूलों सी,
कभी दर्द भरी'' दास्तां'' नजर आती है।
कभी अंधकूप में धकेलती.......
कभी अल्हड़ सी भटकती नजर आती है।[जीवन की तलाश में ]
कभी हंसती , गुदगुदाती सी......
तो कभी'' आईना'' दिखलाती नजर आती है।
कभी उदास ,हताश ,निराश !नजर आती है।
कभी यह उमंगों से भर, आगे बढ़ जाती है।
''बचपन'' से खेल खिलाती है,
तो कभी बुजुर्ग सी गंभीर हो जाती है।
ए...... जिंदगी ! तू कितने रंग दिखलाती है ?