दिव्या को जब होश आया तो उसने अपने को एक बंद कमरे में पाया, मैं समझ नहीं पाई कि वह यहां कैसे आई है ? वह सोचने का प्रयास करती है, तभी उसे स्मरण होता है, कि वह तो पलाश के साथ थी, तब वह यहां कैसे आई ? और' पलाश' कहां गया ?वो तो मेरे साथ था, क्या उसके साथ भी कुछ हुआ है ?यही सब सोच -सोचकर दिव्या घबरा रही थी। बंद कमरे में नजरें घुमाकर देखती है , उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, बंद कमरे में उसे घुटन महसूस हो रही थी। उस कमरे से बाहर आने के लिए, वह दरवाजा खटखटाती है लेकिन कोई भी उसकी आवाज नहीं सुनता है। समझ ही नहीं आ रहा ,इस सीलन और बदबू भरे कमरे में वह यहां कैसे आई ? पलाश ,कहाँ है ?उसने मुझे बचाने का प्रयास भी नहीं किया।
मन किसी आशंका से भर उठा, सोच रही थी -कहीं पलाश ने ही तो मुझे धोखा नहीं दे दिया। धोखा दिया भी है, तो मुझे यहाँ कैद करने का क्या उद्देश्य हो सकता है ? मुझे यहां कौन लाया ,किसने बंद किया है ? आखिर पलाश कहां गया ? अनेक प्रश्न उसके मन में घूम रहे थे।
तभी दरवाजे के नीचे की झिरकी में से उसे रौशनी में दिखलाई पड़ता है, जैसे उस दरवाजे के करीब कोई है। वह एकदम से चौकन्नी हो जाती है ,और अपने आस -पास कुछ तलाशने लगती है। मन ही मन सोचती है -हो सकता है ,उसे ढूंढते हुए ही, कोई यहाँ आया हो या फिर कोई दुश्मन भी हो सकता है। उस स्थान पर कोई भी ऐसी चीज नहीं थी ,जिससे वह अपनी सुरक्षा कर सके। वह बहुत घबराई हुई थी ,आखिर वह करे तो क्या करे ? जो भी होगा ,देखा जायेगा,यह सोचकर वह पूरी ताकत से चिल्ला दी -कोई है ,प्लीज़ ! मुझे बचाओ ! रोते हुए ,जोर -जोर से दरवाज़ा पीटने लगती है, कोई ,मुझे यहाँ से बाहर निकालो !
तभी जैसे किसी ने दरवाजा खोला -वह एकदम शांत खड़ी हो गयी ,किन्तु दरवाजा थोड़ा सा ही खुला कोई भी अंदर नहीं आया,किसी ने एक थाली अंदर खिसका दी और दुबारा दरवाजा बंद कर दिया। तब दिव्या जोर से दरवाजे की तरफ दौड़ी ,खोलो, दरवाजा ! मुझे यहाँ से बाहर निकालो !किन्तु सब व्यर्थ !न ही कोई आहट ,न ही आवाज़। इतना तो उसे मालूम चल रहा था ,बाहर की रौशनी से पता चल रहा था ,अब दिन का समय है। भूख तो बड़े जोरों की लगी थी किन्तु भोजन नहीं किया। कमरे में बड़ी देर तक टहलती रही ,बीच -बीच में अपने बचाव की गुहार लगाती, किन्तु कोई मदद नहीं थी। अब उसे अपने फोन का स्मरण हुआ किन्तु उसका फोन भी उसके पास नहीं है। किससे सहायता की गुहार लगाए ?कुछ समझ नहीं आ रहा था। पलाश !पलाश !तुम कहाँ हो ?
जिन्दा रहने के लिए भोजन तो करना ही होगा ,यही सोचकर,उसने खाना खाया। भोजन खाते ही, उसे चक्कर सा आने लगा। तभी दीवार के एक तरफ का दरवाजा खुला ,दिव्या ने देखा ,पलाश !उसके सामने खड़ा है। पलाश !तुम कहाँ चले गए थे ?देखो !मुझे न जाने किसने यहाँ बंद कर दिया ? मुझे यहां से ले चलो ! पलाश कुछ नहीं बोला और दिव्या को एक कमरे में ले गया और दिव्या को एक पलंग पर लिटा दिया।
नहीं, मुझे यहाँ नहीं लेटना है ,मुझे मेरे घर छोड़ आओ !मेरे घरवाले मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। वह बोले जा रही थी, किन्तु पलाश कुछ नहीं बोला ,उसके वस्त्र उतारने लगा। ये तुम क्या कर रहे हो ?छोडो ,मुझे !वह समझ रही थी ,उसके साथ कुछ गलत हो रहा है किन्तु विरोध करने के बावजूद भी ,वह अपने में नहीं थी। पलाश ! मुझे छोड़ दो ! मुझे जाने दो !कहती रही।
तीन दिन तक वह उसी कमरे में रही और प्रतिदिन उसका बलात्कार होता रहा ,वह रोती, किन्तु कुछ नहीं कर पाती।उसने महसूस किया जब भी वो भोजन करती है ,तभी उसकी हालत ऐसी होती है। तीसरे दिन उसने कुछ खाया भी नहीं था ,आज थोड़े होश में थी ,जब पलाश ! अंदर आया , दिव्या आज होश में थी ,उस ने वहां रखा 'स्टूल' पलाश पर फ़ेंककर मारा ,जो सीधे जाकर उसके कंधे पर लगा। उसने क्रोध से दिव्या की तरफ देखा।
दिव्या !उससे रोते हुए हाथ जोड़कर बोली -पलाश ! क्या तुम वही 'पलाश ' हो ? जिसे मैंने प्यार किया ,मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? तुम तो मुझसे प्यार करते थे न..... हम दोंनो शादी करने वाले थे।
उसकी बात सुनकर पलाश ! मुस्कुराया और बोला -चलो !आज सगाई कर लेते हैं ,कहते हुए उसने अपनी जेब से अंगूठी निकाली और दिव्या की तरफ बढ़ा।
अभी मुझे मेरे घर जाने दो !वह उठने का प्रयास करती है किन्तु शरीर में कमजोरी महसूस हो रही थी। तुरंत ही पलाश ! ने दिव्या को ऐसे दबोचा जैसे-' बिल्ली चूहे को दबोचती है ,बोला -आज ही हमारी सगाई होगी। दिव्या ने पलाश की तरफ देखा ,उसकी आँखों में एक पागलपन था। वह डर गयी और बोली -मुझे जाने दो !मुझे अपने घर जाना है।
तब पलाश ने उसके हाथों को जबरदस्ती पकड़ा और उसकी अँगुलियों में बलात अंगूठी पहनाने लगा। दिव्या उसके पंजे से छूटने का प्रयास कर रही थी। तब उसने दिव्या को ,बिस्तर पर गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ बैठा ,उसके हाथों को सहलाया और उनमें अंगूठी डाली और उसके हाथों को चूमा ,बोला -आज हमारी सगाई हो गयी है ,तुमने साफ कपड़े भी नहीं पहने ,कहते हुए उसके कपड़े उतारने लगा।
मुझे छोड़ दो ! मुझे जाने दो ! पलाश ने उसके दोनों हाथों को उसके दुपट्टे से ही बांध दिया। आज बिना नशे भी दिव्या कुछ न कर सकी और उस दिन को कोस रही थी ,जब वो पलाश से मिली थी। तब वह बोला -आज तुम्हें सभी कष्टों से मुक्ति दे दूंगा। तभी उसने एक दराज खोला और बोला -तुम्हारी निशानी के रूप में ,अब तुम्हारा हाथ मेरे पास रहेगा ,मैं पूरी दुनिया को दिखाऊंगा कि देखो ! दिव्या और मैंने सगाई कर ली है,यह हाथ हमारे प्रेम की गवाही देगा। इस तरह अकेले में सगाई से मजा नहीं आया ,कहते हुए ,दिव्या का वो हाथ उसके तन से जुदा कर दिया ,जिसमें पलाश ने अंगूठी पहनाई थी, दिव्या की एक बेहद दर्दनाक चीख निकली।
नहीं ,नहीं मेरी जान !इतना शोर -शराबा नहीं करते ,कहते हुए दूसरे कमरे से उस्तरा उठा लाया और बोला -अभी तुम्हारा शृंगार बाक़ी है ,कहते हुए ,उस्तरे से उसके बाल उतारने लगा ,बड़ी मेहनत से ,उसने दिव्या के सर से एक -एक बाल काट दिया।
गंजी दिव्या को देख ,मुस्कुराया,जानेमन !अब खूबसूरत लग रही हो !यही वो गेशू हैं ,जो मनचलों को बहकाते हैं ,अपनी गर्दन को हिलाते हुए आँख मूंदकर कुछ सोचने लगा ,तब अचानक उठा और उसी उस्तरे से दिव्या की गर्दन काट दी। गर्म लहू की धार बह निकली और फ़र्श पर फैल गयी।
आख़िर ये पलाश कौन है ? उसकी दिव्या से क्या दुश्मनी थी ?उसने दिव्या के संग प्रेम का नाटक क्यों किया ?इतने वहशी तरीके से,दिव्या को मारने के पीछे उसका क्या उद्देश्य था ?आइये जानते हैं -अगले भाग में